शुक्रवार, 30 नवंबर 2012

संगति का प्रभाव

एक धनी व्यक्ति ने रामकृष्ण परमहंस जी से निवेदन किया-भगवन,यह रुपयों की थैली मैं आपके चरणों में भेंट करना चाहता हूँ।कृपया आप इसे स्वीकार करें।इसे आप परोपकार के कामों में लगा दीजिये।`स्वामी जी ने कहा-भाई,अगर मैं तुम्हारा धन ले लूगाँ,तो मेरा मन इसमें लग जाएगा,और इससे मेरी मानसिक शांति भंग हो जाएगी।धनिक ने तर्क दिया -स्वामी जी आप तो परम हंस हैं।आपका मन तेल के बिन्दु के समान है।जो कामिनी-कंचन के महासमुद्र में रह कर भी सदैव उससे अलग रहता है।परमहंस जी गम्भीर हो गये,ओर कहा-`भाई, क्या तुम नहीं जानते कि अच्छे से अच्छा तेल भी बहुत दिनों तक पानी के सम्पर्क में रहकर अशुध्द हो जाता है।`यह सुनकर धनिक ने अपना आग्रह त्याग दिया।   

दशरथ का हमको लाल चाहिए

नगर अयोध्या के राजा दशरथ का हमको लाल चाहिए,
लक्ष्मण भरत शत्रुध्न भाई सीता का सौभाग्य चाहिए।
बल सुन्दरता शील गुणों का वह सच्चा आधार चाहिये,
सुखों भरा वह प्रजातन्त्र का रामराज्य साकार चाहिये।।1।।
माता कौशल्या का वेटा धीर वीर रणधीर चाहिए,
रावण का बध करने वाला मर्यादा प्रणवीर चाहिए।।2।।
भारत के सुंदर भावों को एक अनोखी लीक चाहिये,
तम का नाशक तेज प्रकाशक युद्द्वीर निर्भीक चाहिए।।3।।
इस भूतल को स्वर्ग बनाने सभी गुणों का धाम चाहिए,
सीमा की रक्षI के हित में आज देश को राम चाहिए।।4।।
                                     नगर अयोध्या----- 

मंगलवार, 27 नवंबर 2012

वन्दे जननी भारत धरणी

वन्दे जननी भारत धरणी,शस्य श्यामला प्यारी,
 नमो नमो सब जग की जननी, कोटि कोटि सुखकारी।।
उन्नत सुंदर भाल हिमाचल ,हिममय मुकुट विराजे उज्ज्वल,
चरण पखारे विमल सिन्धु जल, श्यामल अंचल धारी।
गंगा,यमुना ,सिन्धु,नर्मदा देती पुण्य पियूष सर्वदा,
मथुरा,माया,पुरी,व्दारिका विचरे जहाँ मुरारी।।1।।
कल्याणी तू जग की मित्रा,नैसर्गिक सुषमा विचित्रा,
तेरी लीला सुभग पवित्रा ,गुरुवर मुनिवर धारी ।
मंगल करणी दारिद हरणी, तू है संकट हारी ।
ऋषिवर शूरजनों  की धरणी, हरती तम भ्रम भारी।।2।।
शक्तिशालिनी दुर्गे तू है विभव-पालिनी लक्ष्म़ी तू है,
वुध्दिदायिनी विद्या तू है,सब सुख सृजन हारी।
जग में तेरे लिए जियेगें,तेरा प्रेम पियूष पियेगें।
तेरी सेवा सदा करेगें, तेरे सूत बलधारी।।3।।
बन्दे जननी------ 

आज विश्व में विजय पताका

      आज विश्व में विजय पताका,माँ हमको फहराने दो,
   हम हिन्दू हैं हिन्दीभाषी,यह संदेश सुनाने दो।   
जिस झंडे को श्रीकृष्ण ने दुनिया में लहराया था,
जिस झंडे को अर्जुन योध्दा लेकर कर में धाया  था ।
जिस झंडे से वीर शिवा ने मुगलों को थर्राया था,
जिस झंडे पर राणा सांगा ने सर्वस्व गंवाया था।
उसी ध्वजा को छक्षसाल बालक की भाँति उठाने दो।।1।।
भभक उठे अग्नि सम शोणित जग में हा-हा कार उठे,
दहल जाये दुष्टों की छाती रणचंडी साकार उठे।
शंखनाद सुन फिर भारत के वीरों की ललकार उठे,
हर-हर-हर-हर महादेव के नारों से संसार जगे।
उथल-पुथल मच जाये देश में यह तूफान उठाने दो।।2।।
बप्पा रावल की तलवारें हमनें कर में धारी हैं,
जैमल-फत्ता, झासीरानी, राणा ज़ेसे बलशाली हैं।
बन्दा-गुरु,हरिसिंह,नलवा के हम वंशज अवतारी हैं,
विश्व जीतने की अभिलाषा से यह भुजा पसारी है।
भगवा ध्वज का अमर चिन्ह यह तारों में जड्वाने दो।।3।।
                         हम हिन्दू हैं हिन्दीभाषी,यह संदेश सुनाने दो।     

शुक्रवार, 16 नवंबर 2012

आकांक्षा-

ईश करे कि अंत:करण में धू-धू धधकती अक्षय ध्येयनिष्ठा की तीव्र प्रज्वलित ज्वालाओं में हमारे सभी संदेह और मनोविकार नष्ट हो जाएँ। अहर्निश ज्वलन से प्रदीप्त और कुंदन की भांति तपी हुई अपनी मानसिक ऊर्जा के वेगवती प्रवाह पर हम श्रेष्ठ विचार-तत्व का बांध निर्मित करें।संगठन के नेतृत्व और उसकी कार्यपध्दती में अटूट निष्ठां व अगाध श्रध्दा का भक्ति-भाव रख इस बांध से उत्सर्जित ऊर्जा को इस नित्य सिध्द शाखा के अज्रस्व,अखंड व् प्रचंड प्रवाह में विलीन कर दें।विवेक की छेनी से,बुध्दि की हथौडी से,ज्ञान के प्रकाश में,समर्पण की आखों के साथ,कर्म के हाथों हम अपने अंत:करण में भारत माँ की दिव्य प्रतिमा गढ़ संगठन  के कार्य में लय हो जांए।लय अर्थात जेसे दूध में शर्करा,घी में बूरा।
``लोटती है विजय चरणों पर उन्हीं के जो बढे हैं,
 तुच्छ कर स्व आपदाएं धर्म पथ पर जो अड़े हैं।
विश्व है झुकता उन्हीं के सामने जो हैं झुकाते
बदलकर बिगड़ी दशा बो गीत जय के गाते ।
बढ़ संभलकर बन उन्हीं सा,प्राप्त कर तू फल अभीप्सित ।
विजय है तेरी सुनिश्चित ,
विजय है तेरी सुनिश्चित।``



            

गुरुवार, 15 नवंबर 2012

मनुष्य की पहचान
उसके धन या आसन से नहीं होती 
उसके मन से होती है 
मन की फकीरी पर 
कुवेर की सम्पदा भी रोती है।