संस्थापिका एवं आद्य प्रमुख संचालिका वं.मौसीजी |
व्यक्तिगत जीवन राष्ट्र सेविका समिती की आद्य संस्थापिका श्रीमती लक्ष्मीबाई केलकर उपाख्या वं. मौसीजी के जीवन के बारे में जानने के लिए सभी निश्चित ही उत्सुक होंगे। माँ जैसी ममताका वर्षाव करनेवाली वं. मौसीजी का जन्म आषाढ शुद्ध दशमी के अवसरपर ५ जुलै १९०५ को नागपूर के दाते परिवार में हुआ। तरोताजा प्रफुल्लित कुसुम जैसी बालिका देखते ही डॉक्टर ने उनका नामकरण ‘कमल' रख दिया। (जो आगे जाकर यथार्थ सिद्ध हुआ।) दाते परिवार लौकिकार्थ से विशेष संपन्न नही था, परंतु वैचारिक रूपसे पूर्णतः, संपन्न था। छोटी कमल ने अपनी ताईजी से सुश्रुषा का गुण, पिताजी से तन-मन-धन से सामाजिक कार्य का तथा माताजी से निर्भयता, राष्ट्रप्रेम के गुण विरासत में लिए, आत्मसात किये। लो. तिलकजी की प्रतिमा घर में रखकर, पास-पडोसकी महिलाओं को एकत्रित करके उनकी माताजी ‘केसरी' नामक समाचार पत्रका वाचन करती थी। जिन दिनो सरकारी नौकरों को केसरी घरमें रखने की अनुमती नही थी, उन दिनों में कमल की माताजी अपने नाम पर केसरी खरीदती थी। अपनी चाची ताईजी के साथ वह गोरक्षा हेतु भिक्षा के लिए तथा कीर्तनों में जाती थी और जानेअंजाने संस्कार ग्रहण कर रही थी। जिसका प्रभाव उनकी बाल्यावस्थासे ही दिखाई देने लगा। उन दिनों में स्वतंत्र बालिका विद्यालय न होने के कारण उन्हें मिशनरी स्कूल में प्रवेश लेना पडा। वहाँ की शिक्षा और घर में मिलनेवाली शिक्षामें महान अंतर का प्रतीत होने से उनके मनमें निरंतर संघर्ष चलता रहता था और यही संघर्ष एक दिन वास्तव रूप में उभर आया विद्यालय में प्रार्थना के समय आँखे बंद रखने का नियम था। एक दिन कमल ने बीच में ही आँखे खोली, तो उसे डांट पडी। तो निर्भय कमल ने तुरंत उस अध्यापिका से प्रश्न किया ‘अगर आपकी आँखे बंद थी तो आपको कैसे पता चला की मैने आँखे खोली थी?' जिसका उत्तर अध्यापिका के पास नही था। कमल ने उस विद्यालय में जाना छोड दिया। अब उनकी आगे की शिक्षा हिन्दु प्रेमी व्यक्तियों द्वारा स्थापित ‘हिन्दु मुलींची शाळा' इस विद्यालय में हुई। उन दिनों की प्रथा के अनुसार कमलकी शिक्षा चौथी कक्षा तक पहुँचते ही उसके विवाह के प्रयास शुरू हो गये। कमल बचपन से ही अपने विचारों के बारे में सचेत थी, उसमें आत्मविश्वास ओतप्रोत भरा था। वाचन, श्रवण, मनन से वह परिपक्व हो चुकी थी। अन्याय कारक घटनाओं से उसे बचपन से ही चीढ थी। दहेज प्रथा की शिकार बनी बंगाल की स्नेहलता के पत्रने उनके अंदर के स्फुल्लिंग को चेतावनी सी मिली और उन्होंने सभी को बिना दहेज दिये और लिए विवाह के लिए आग्रहपूर्वक प्रेरित किया और स्वयं भी इसी विचारधारा का अनुकरण किया। विवाह के पश्चात् लगभग १४ वर्ष की आयुमें ही वह दो बच्चों की माँ, बन गयी। विवाह के बाद वह ‘कमल' से ‘लक्ष्मी' बनी। उनके पती पुरुषोत्तम राव केलकर वर्धा के प्रख्यात विधिज्ञ (वकील) थे। उनकी रहन-सहन और विशिष्ट स्वभाव के कारण लोग उन्हें सरदार कहते थे। कमल को वैवाहिक जीवन का सुख १०-१२ साल ही मिला, राजयक्ष्मा के कारण अल्पायुमें ही पुरुषोत्तम राव परलोक सिधारे। अब लक्ष्मी के सामने ८ संतानो की - २ बेटियाँ और ६ बेटे की जिम्मेदारी थी। पतिनिधन का वज्राघात, बच्चों की देखभाल, गृहस्थी की जिम्मेदारी इन आपत्तियों से लक्ष्मी सी हो गयी। विवाहोत्तर जीवन : अपने पती के जीवनकाल में भी लक्ष्मी अपनी गृहस्थी की सभी जिम्मेदारियों को निभाते हुए कांग्रेस की प्रभात फेरी, पिकेटींग आदि कार्यक्रमों में सक्रिय थी। पती निधन के पश्चात् भी उनके कार्यक्रम चलते ही रहे, जिस समय विधवा होते ही महिला को बाहर के दरवाजे बंद किये जाते थे। ऐसे समय लक्ष्मी का यह व्यवहार प्रवाह को विरूद्ध दिशा में मोडने वाला था। वह वर्धा के गांधी आश्रम में प्रार्थना के लिए उपस्थित रहती थी। प्रार्थना के समय गांधीजी द्वारा इस कथन ने उन्हें अंतर्मुख बनाया कि सीता के जीवन से ही राम की निर्मिती होती है, अतः महिलाओंने अपने सामने सदैव सीताजी का आदर्श रखना चाहिए। अब लक्ष्मी ने सीता में स्त्री की वास्तविक भूमिका को खोजने के लिए रामायण का अध्ययन शुरु किया। महिलाओं की स्थिती, उनके ऊपर लादे गये बंधन, अपहरण, अत्याचार तो वह स्वयं देखती थी, समाचार पढती थी। धीरे-धीरे जीवन पद्धती में परिवर्तन हो रहा था। स्त्री की ओर देखने का दृष्टीकोण बदलने लगा था, उसे पढने को प्रवृत्त किया जाने लगा। केशवपन प्रथा का भी जोरदार विरोध हो रहा था। स्त्री को एक स्वतंत्र व्यक्तित्व के रूपमें माना जाने लगा। स्त्री को निर्भयता से डटकर खडा होना आवश्यक है इसकी आवश्यकता वह स्वयं ही अनुभव कर रही थी। बंगाल में कुसुमबाला को घसीटकर ले जाकर उसका अपहरण करते समय गुंडोंने उस के पति को सुनाया कि, कानून तुम लोगों के लिए है। हमारा कानून हमारी बाहुओं में है। ऐसी घटनाओं से महिलाओं की असुरक्षितता प्रकट होती थी और परिणाम स्वरुप लक्ष्मीजी के मन में दिनरात विचार मंथन चलता रहता था कि अब महिलाओं को स्वसंरक्षणक्षम कैसे बनाये। कौन सा मार्ग ढूँढे? लगभग इसी समय अपने पुत्र मनोहर और दिनकर के माध्यम से उनका परिचय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से हुआ और इसी प्रकार का संगठन महिलाओं के लिए भी बनाने की आवश्यकता की बात उनके मन ने ठान ली। उनके मन में डॉ. हेडगेवारजी से भेंट करने की इच्छा जाग उठी और संयोगवश यह अवसर शीघ्र ही उन्हें प्राप्त हुआ। उन्होंने अपने बेटों से डॉक्टर हेडगेवारजी से अपने स्वयंसेवक बेटों की अभिभावक के नाते मिलने की इच्छा प्रदर्शित की। उन दिनों पिता या घर के पुरुष को ही अभिभावक समझा जाता था। इसलिए बेटों ने अधिकारियों से पूछकर अनुमति ले ली और अनुमति मिलने पर कार्यक्रम के समय वे उपस्थित रही। वार्तालाप के लिए अलग से समय माँगने पर डॉक्टर साहबने स्वीकृती दे दी। उस समय वं. मौसीजीने महिलाओ के लिए भी राष्ट्रीय दृष्टी से संघटित होने की आवश्यकता की बात बतायी। तथा महिला व्यक्तिगत ही नहीं अपितु सामाजिक दृष्टी से सुरक्षित होने की बातको भी उठाया। वं. मौसीजी का दृढनिश्चय तथा प्रगल्भता को देखकर डॉक्टरजी ने उन्हें इस कार्य से पूरा सहकार्य देने का आश्वासन दिया। अब मौसीजी के विचारों को वास्तविक रूप प्राप्त हुआ और राष्ट्र सेविका समिति का जन्म होकर वर्धा में उसका कार्य प्रारंभ हुआ। महिलाएँ प्रतिदिन निश्चित समय पर एकत्रित होने लगीं, मातृभूमी के प्रति अपने दायित्व के रूपमें सोचने लगी। प्रार्थना तैयार हुई, जिससे मन में हिन्दुत्व जगे, शक्ति, बुद्धि प्राप्त हो, स्त्री सुशीला, सुधीरा समर्थ बनें। इस तरह महिलाओं का प्रतिदिन एकत्रित होना, सैनिकी पद्धतिका प्रशिक्षण लेना यह बात उस समय के समाज द्वारा विरोध भी हुआ, लेकिन मौसीजी अपने विचार से परे नहीं हटी। गृहस्थी के साथ-साथ यह कार्य करना रस्सीखेच जैसा ही था। स्वयं सिद्धता : स्वयं को निरंतर संगठन के ढाँचे में ढालने का उनका प्रयास निरंतर जारी था। प्रारंभ में उन्हे भाषण देने का अभ्यास नहीं था। वक्तृत्वशैली भी नहीं थी। लेकिन समाज जागरण के हेतु से समाज को मार्गदर्शन करने की आंतरिक, अत्यंतिक इच्छा थी, जिससे आगे का मार्ग सुगम हुआ। विषय का अध्ययन करना, उसमें से महत्त्वपूर्ण मुद्दे निकालना और उन्हें प्रभावी भाषा में जनता के सामने प्रस्तुत करना - यह बातें अभ्यासपूर्वक आत्मसात की और आत्मविश्वासपूर्वक अपने विचार व्यक्त करनेवाली उत्कृष्ट वक्ता बन गई। मधुर आवाज, स्पष्ट उच्चारण, भावस्पर्शी शब्दों का चयन इन सबका मनोहारी संगम होने के कारण उनका वक्तृत्व श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देता था। उन्हें समिति की शाखा-शाखाओं में जनसंपर्क हेतु जाना पडता था, इसलिए मौसीजीने साइकिल चलाना सीख लिया, तैरना भी उन्हें आता था। उनकी बेटी वत्सला की पढने में रुचि देखकर घरपर शिक्षक बुलाकर उसकी पढाईका प्रबंध किया। वर्धा में विद्यालय शुरु करने के लिए अपनी देवरानी को प्रोत्साहित किया और वहाँ पढाने के लिए आयी कालिंदीताई, वेणुताई जैसी शिक्षिकाओं का रहने का प्रबंध अपने स्वयं के घर में किया, जिन शिक्षिकाओं ने उन्हें समिति का कार्य में भी सहयोग दिया। गहरा चिंतन : वं. मौसीजीने संगठन की चौखट स्वयं तैयार की थी। जिसमें उन्होंने अपने स्वयं के विचारों से ध्येय धोरण के रंग भरे थे। स्वसंरक्ष हेतु समिती में दी जानेवाली शारीरिक शिक्षा कहीं उसकी शारीरिक रचना या स्वास्थ्य में बाध तो नही बनेगी इस बातपर भी वह सोचती थी। १९५३ में उन्होंने स्त्रीजीवन विकास परिषद का आयोजन करके डॉक्टरोंको एकत्रित किया और महिलाओं के सौष्ठव के बारे में परिचर्चा आयोजित की। योगासन का महत्व जानकर उन्होंने स्वयं योगासनों की शिक्षा ली। योगमूर्ति जनार्दन स्वामीजी को अनेक स्थानोंपर आमंत्रित करके सेविकाओं को योगासनों का शास्त्रशुद्ध प्रशिक्षण दिया। समिती के शिक्षा वर्गो में भी योगासन का समावेश किया गया। सेविका कैसी हो उनके सामने इसकी स्पष्ट रूपरेखा थी कि वह संतुलित व्यक्तित्ववाली हो तभी वह समाज के लिए पोषक और प्रेरक सिद्ध होगी। अतः उन्होंने देवी अष्टभुजा की प्रतिमाआराध्यदेवता के रूप में सेविकाओं के सामने रखी। देवी के आठ हाथों में धारण किये आयुधों का वह वर्णन करके बताती थी जिसमें से उनकी अलौकिक प्रतिभा तथा प्रगल्भ और गहरे चिंतन की ज्योति झलकती थी। रामभक्ति : मौसीजी राम की निस्सीम भक्त थी। उन्होंने रामायण पर उपलब्ध अनेक ग्रंथों का अध्ययन किया और उसमें का राष्ट्रीय दृष्टीकोण अपने १३ दिनों के रामायण के प्रवचन के माध्यम से जनता के सामने लाकर स्पष्ट किया। उन्होंने लगभग १०८ प्रवचन किये और लोगों को समझाया राम को केवल भगवान समझकर उसकी पूजा मत करो, वह एक राष्ट्रपुरुष है, उसका अनुकरण करो। इन प्रवचनों से प्राप्त, धनराशि का विनियोग उन्होंने समिती के कार्यालय निर्माण करने के लिए किया। आज उनके वक्तृत्व की अमोल निधी ‘पथदर्शिर्नी श्रीराम कथा' के रूप में हमारे पास है। वं. मौसीजी की स्मरण शक्ति अद्भुत तेज थी। एक बार परिचय होने के बाद वह उस व्यक्ति को नाम सहित हमेशा याद रखती थी। जीवन के अंतिम चरण में जब वह चिकीत्सालय में भर्ती थी, तो सेविकाओं से भजन गीत गाने को कहती थी और बीच में अगर गानेवाली भूल गयी तो तुरंत आगे के शब्द बताती थी। व्यवस्थित सरल जीवन, कलात्मक, सांस्कृतिक दृष्टि : वं. मौसीजी का रहन सहन का ढंग अत्यंत सीधासाधारण था। वह हमेशा स्वच्छ और सफेद सूती साडी ही पहनती थी। अपने कपडे स्वयं धोने का उनका परिपाठ था। उनका हर काम कलात्मक रहता था। समय मिलते ही सिलाई कडाई चालू रहती थी। भगवान के सामने रंगोली सजाना, पूजा करना उसमें भी एक विशेषता थी। हर उत्सव में चाहे वह शाखा में हो या घर में, सांस्कृतिक प्रतीकों के प्रदर्शन का उनका आग्रह रहता था। हर परिवार में एक राष्ट्रीय कोना हो, जहाँ परिवार के सदस्य मिलकर समाज के, राष्ट्र के बारे में दिन में एक बार सोचे इसलिए वह हमेशा प्रयत्नशील थी। वर्ष प्रतिपदा (गुढी पाडवा) के दिन गुढी के बजाय अपने घरोंपर हमारी संस्कृती का प्रतीक भगवा ध्वज फहराया जाय यह उन्हीकी कल्पना थी। पूजा के लिए छोटे-छोटे ध्वल उन्होने ही बनवाएँ। वंदे मातरम् माँ की प्रार्थना है अतः वह गाते समय हाथ जोडने की प्रथा उन्होंने शुरु की। पाककला में वह निपुण थी। परोसने में भी उनकी कला तथा मातृभाव का अनुभव होता था। कुशल संघटक : ‘दो महलायें कभी एकत्र आकर कार्य करना संभव नहीं है' यह जनापवाद उन्होंने झूठा साबित कर दिया है। आव्हान के रूप में महिलाओं का सशक्त संगठन स्थापित करके यह सिद् कर दिया कि समिती की सेंकडों सेविकाएँ मिलजुलकर आपस में आत्मीयता से ध्येय निष्ठा से राष्ट्र के लिए विधायक काम सशक्तता से कर सकती है। पूना में श्रीमती सरस्वतीबाई आपटे द्वारा महिलाओं के संगठन के कार्यकी शुरुआत की जानकारी मिलनेपर मौसीजी स्वयं पूना जाकर सरस्वतीबाईजी से मिली। मौसीजी के कुशल, आत्मीय और सौहाद्र्र व्यवहार से, प्रसन्न व्यक्तित्व से प्रभावित होकर सरस्वतीबाईजी ने अपने संगठन को राष्ट्र सेविका समिती में संम्मिलित कर दिया। पत्र व्यवहार से मौसीजी सभी के साथ निरंतर संपर्क बनाये रखती थी। अखंड प्रवास का सिलसिला और सेविकाओं से मिलना निरंतर शुरु ही रहता था। प्रातः स्मरण, देवी अष्टभुजा स्तोत्र, पूजा, नमस्कार इत्यादि रचनायें उन्होंने की महिलाओं की संगीत में रूचि और भक्तिभाव को देखते हुए उन्होंने भजन मण्डलके लिए प्रोत्साहित किया। अनेक चित्रकारों को एकत्रित करके उनके सामने प्रदर्शनी के विषय रखे और चित्र निकालने का आव्हान किया। कला के द्वारा राष्ट्रीय विचारधारा पुष्ट करने मे सहयोग वाली बात की नईदृष्टी प्राप्त होनेवाली बात एक चित्रकार ने ही कही। समितीद्वारा उन्होंने अनेक प्रदर्शनियों का आयोजन करवाया। साहसी वृत्ती : अगस्त १९४७ कर समय था। प्रिय मातृभूमि का विभाजन होनेवाला था। मौसीजी को सिंध प्रांत की सेविका जेठी देवानी का पत्र आया कि सेविकाएँ सिंध प्रांत छोडने से पहले मौसीजी के दर्शन और मार्गदर्शन चाहती है। इससे हमारा दुःख हल्का हो जायेगा। हम यह भी चाहते है कि आप हमें श्रध्दापूर्वक कर्तव्यपालन करने की प्रतिज्ञा दे। देश में भयावह वातावरण होते हुए भी मौसीजी ने सिंध जानेका साहसी निर्णय लिया और १३ अगस्त १९४७ को साथी कार्यकर्ता वेणुताई को साथ लेकर हवाई जहाज से बम्बई से कराची गयी। हवाई जहाज मे दूसरी कोई महिला नही थी। श्री जयप्रकाश नारायणजी और पूना के श्री. देव थे वे अहमदाबाद उतर गये। अब हवाई जहाज में थी ये दो महिलाएँ और बाकर सारे मुस्लिम, जो घोषणाएँ दे रहे थे - लडके लिया पाकिस्तान, हँस के लेंगे हिन्दुस्थान। कराची तक यही दौर चलता रहा। कराची में दामाद श्री चोळकर ने आकर गन्तव्य स्थान पर पहुँचाया। दूसरे दिन १४ अगस्त को कराची में एक उत्सव संपन्न हुआ। एक घर के छतपर १२०० सेविकाएँ एकत्रित हुई। गंभीर वातावरण में वं. मौसीजी ने प्रतिज्ञा का उच्चारण किया, सेविकाओं ने दृढता पर्वक उसका अनुकरण किया। मन की संकल्पशक्तिको आवाहन करनेवाली प्रतिज्ञा ने दुःखी सेविकाओं को समाधान मिला। अन्त में मौसीजी ने कहा, ‘धैर्यशाली बनो, अपने शील का रक्षण करो, संगठन पर विश्वास रखो और अपनी मातृभूमिकी सेवा का व्रत जारी रखो यह अपनी कसौटी का क्षण है।' वं. मौसीजी से पूछा गया - हमारी इज्जत खतरे में है। हम क्या करें? कहाँ जाएँ? वं. मौसीजीने आश्वासन दिया - ‘आपके भारत आनेपर आपकी सभी समस्याओं का समाधान किया जायेगा।' अनेक परिवार भारत आये। उनके रहने का प्रबंध मुंबई के परिवारों में पूरी गोपनीयता रखते हुए किया गया। इस तरह असंख्य युवतियों और महिलाओं का आश्रय और सुरक्षितता देकर वं. मौसीजी ने अपने साहसी नेतृत्व का परिचय दिलाया। व्यक्ति निष्ठा नहीं : व. मौसीजी के जीवन का एक प्रसंग। एक शाखा में मौसीजी के आगमन की पूर्वसूचना मिलते ही सेविकाओं ने उनके स्वागत की जोरदार तैयारियाँ की। उनके लिए गौरवपर गीत रचकर गाया गया। बौद्धिक के समय वं. मौसीजीने सेविकाओं से कई प्रश्न कि और कहा कि इस गीत में एक परिवर्तन चाहिए। इसमें आपने मौसीजी कार्य के प्रति समर्पण की भावना की बात जतायी है, लेकिन यह किसी एक व्यक्ति का कार्य नही है अपितु आपको राष्ट्र सेविका समिती के राष्ट्र कार्य के प्रति समर्पण की भावना रखनी है। ऐसे कई गुणों के कारण ही वह वंदनीय बन गई। ऐसे व्यक्तित्व को ही वंदनीय कहा जाता है। वंदनीय इसलिए नहीं कि उनके पास लम्बी उपाधियाँ थी या वह धनवान थी। न तो उनके पास कोई सिद्धी थी, न वह कोई तंत्र-मंत्र जानती थी। यह तो एक आम महिलाओं जैसी एक सरल, सीधा साधा गृहस्थी जीवन व्यतीत करनेवाली स्त्री। बाल्यकालसे ही प्राप्त राष्ट्रीय संस्कार और बुद्धिमत्ता और तेजस्विता के साथ-साथ राष्ट्रकार्य के प्रति आत्यंतिक आस्था के कारण ही उन्होंने यह अद्वितीय कार्य कर दिखाया। राष्ट्र सेविका समिती की स्थापना, अखिल भारतवर्ष में उसका प्रचार और प्रसार तथा निर्माण की हुई कार्य पद्धती जिसपर आज भी समिती का कार्य सरलता से चल रहा है। इन्हीं गुणों से उन्हें वंदनीय बताया। यह शांत, पवित्र तेजस्वी जीवन २७ नवम्बर १९७८, कार्तिक (मार्गशीर्ष) कृष्ण द्वादशी, युगाब्द ५०८० को पंचत्व में विलीन हो गया। देह नष्ट हुआ, कीर्ति, प्रेरणा अमर है, निरंतर चलती रही है और आगे भी रहेगी। किं साधितं त्वया मृत्यो। अपहृत्येद् ज्ञान निधिम्।।नश्वरशरीरं भस्मीकृतम्। अनश्वरथशासि का ते गतिः।।दीपज्योति प्रणाम दीपज्योति प्रणाम तुझे नित दीपज्योति प्रणाम। शुभंकरी तू जग कल्याणी, मातृशक्ति प्रेरक तू मानी कोटि-कोटि हृदयों में अंकित मंगलमय तव नाम। रामायण वाल्मिकी कृर्ती तू, लवकुश जननी स्वयं स्फूर्ती तू दिव्य चरित सीता से ज्योतित प्रकट हुये श्रीराम। ध्येयमार्ग का दीपस्तंभ तू, कोटी करों का स्नेहबंध तू कण क क्षण-क्षण राष्ट्र समर्पित किये कर्म निष्काम। ज्योतिर्मय है मार्ग हमारा, चंचल मन क्यों भ्रम में हारा। तव जीवन की स्मृति सुमनों में प्रेरक शक्ति महान।। |
सोमवार, 2 जून 2014
शनिवार, 31 मई 2014
रविवार, 9 फ़रवरी 2014
रविवार, 26 जनवरी 2014
हमारे आदर्श वाक्य-
हमारे संबिधान निर्माताओं में भिन्न-भिन्न पूजा पद्दीतियों को माननेवाले लोग थे,किन्तु वे सभी जानते थे कि भारत जैसे वहुविध समाज का प्रजातांत्रिक वने रहना तभी संभव है जव हम हमारे परम्परागत हिन्दू मूल्यों को महत्व देगें,इसीलिए हिन्दू परम्परा की मूल व्यवस्था ने संविधान रूप में प्रशासनिक इकाईओं को प्रेरित किया। यथा-
ये सभी आदर्श वाक्य हमारी हिन्दू परम्परा के आदर्श वाक्य हैं जो हमारे संबिधान के आधार हैं।
हमारे संबिधान निर्माताओं में भिन्न-भिन्न पूजा पद्दीतियों को माननेवाले लोग थे,किन्तु वे सभी जानते थे कि भारत जैसे वहुविध समाज का प्रजातांत्रिक वने रहना तभी संभव है जव हम हमारे परम्परागत हिन्दू मूल्यों को महत्व देगें,इसीलिए हिन्दू परम्परा की मूल व्यवस्था ने संविधान रूप में प्रशासनिक इकाईओं को प्रेरित किया। यथा-
१- भारत सरकार- सत्यमेव जयते (अशोक चक्र )
२- लोक सभा- धर्मचक्र प्रवर्तनाय
३-सर्वोच्च न्यायालय -यतो धर्म: ततो जय:
४-आकाशवाणी -बहुजन हिताय
५-दूरदर्शन-सत्यम शिवम् सुन्दरम
६-भारतीय सेना-सेवा अस्माकं धर्म
७-भारतीय जल सेना-शन्नो वरुण:
८-भारतीय वायु सेना-नभ: स्पृशम् दीप्तम
९-दिल्ली विश्वविद्यालय -निष्ठां धृति सत्यम
हमारा सूत्र वाक्य है-यतो धर्म: ततो जय:
ये सभी आदर्श वाक्य हमारी हिन्दू परम्परा के आदर्श वाक्य हैं जो हमारे संबिधान के आधार हैं।
रविवार, 28 जुलाई 2013
बैठक में पारित प्रस्ताव
ऊँ
राष्ट्र सेविका समिति
देवी अहल्या मन्दिर, धन्तोली, नागपुर
अखिल भारतीय कार्यकारिणी तथा प्रतिनिधिमण्डल बैठक
देवलापार जुलाई २०१३
प्रस्ताव क्रमांक १-
उत्तराखण्ड में आई दैवी विपदा-
दिनांक १५-१६ जून २०१३ को उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्र में अतिवृष्टि एवं बादल फटने से दैवी आपदा निर्माण हुई/ भागीरथी अलकनन्दा,गंगा,सोलानी,रमताऊ,पथरी,आदि नदियों में भीषण बाढ़ आयी जो अनेक गाँव, अनेक मकान,अनेक व्यक्तियों को अपने साथ बहा ले गयी/ लगभग १०,००० से अधिक व्यक्ति इस त्रासदी में मारे गये होंगें, ऐसा अनुमान है/
उत्तराखण्ड का ५३,४८० वर्ग कि. मी. से ४०. ००० वर्ग कि. मी . क्षेत्र इस प्रलय से बाधित हुआ है/ प्रदेश के १५ ,७६१ गांवों में से ६०० से अधिक गाँव बाढ़ प्रभावित हैं और २०० गाँव पूर्णत: नष्ट हो गये हैं इस प्रदेश का ८६% क्षेत्र पहाड़ी है जो अधिक प्रभावित हुआ है/
इस प्रलयकारी बाढ़ में उत्तराखंड के अधिकांश मार्ग वह गये हैं/राष्ट्रिय मार्ग १०९,७२,७८,आदि अनेक स्थानों पर टूट गये या बह गये हैं/अत: आवागमन अत्यंत प्रभावित हो गया है केदारनाथ रामबाड़ा,गौरीकुंड,चमोली,चंबा,रुद्रप्रयाग उत्तरकाशी आदि स्थानों पर प्रलय का परिणाम तीव्र हुआ है चारो यात्रा करनेवाले अनेक तीर्थयात्री केदारनाथ,बद्रीनाथ अटक गये थे
प्रलय की इस विभीषिका में भारतीय सेना एवं इंडो तिब्बत बार्डर फ़ोर्स के बहादुर जबानों ने जानपर खेलकर स्थानीय लोगों की और तीर्थयात्रियों की जान बचाई और उन्हें ढाढस बधाया ,उनकी मदद की, विविध धार्मिक संस्थानों व् मठों का भी कार्य में सहयोग रहा है इसका कृतज्ञता पूर्वक व् गौरवपूर्ण उल्लेख राष्ट्र सेविका समिति करती है/
बाढ़ की इस विभीषिका को देखते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने सेवा भारती व् अन्य सहयोगी संगठनो के साथ मिलकर उत्तराखंड दैवी आपदा पीड़ित समिति का गठन किया और मदद कार्य प्रारंभ किये/ राष्ट्र्सेविका समिति का भी इस कार्य में पूर्ण सहयोग है/ मदद कार्य करते समय दो बड़ी चुनौतियाँ सामने थीं-
१- स्थानीय लोग जिनके परिवारवाले इस प्रलय में मारे गये हैं और वो विस्थापित हो गये हैं,उन्हें आवास कपडे भोजन और पानी उपलब्ध कराना/
२--तीर्थयात्री और पर्यटकों को उनके गंतव्य स्थान तक पहुँचाने में मदद करना/
जहाँ रास्ते टूट गये हैं वहां पर कार्यकर्ता पीठ पर सहायता सामिग्री बांधकर कई कि,मी पैदल चलकर गये हैं/अनेक स्थानों पर विस्थापितों के रहने की और भोजन की व्यवस्था की गयी है/ चारो धाम यात्रा का बेस केम्प चंबा के शिबिर में २२ जून से १२,००० से भी अधिक पीड़ितों को भोजन कराया गया है/
राष्ट्र्सेविका समिति का मानना है कि यह जितनी दैवी आपदा है उतनी ही मनुष्य निर्मित आपदा भी है/ विकास के नाम पर उत्तराखंड समवेत समूचे उत्तर भारत के पहाड़ी क्षेत्र के साथ जो खिलबाड़ की जा रही है उससे पर्यावरण में असंतुलन निर्माण हुआ है और इसी कारण ऐसी आपदाएं बार बार आ रहीं हैं/ जून २०१३ के त्रासदी का लघुरूप उत्तराखंड में सितम्वर २०१० में भी देखा गया था किन्तु उससे सीख न लेते हुए हमने प्रकृति के साथ खिलबाड़ जारी रखा/
उत्तराखंड में जल विद्युत् निर्माण करने के नाम पर अनेक विद्युत् निर्माण गृह वनाये गये/ वर्तमान में २०० जल विद्युत् योजनाये चल रही हैं जिनमें ३,१६,४७५ मेगावाट विजली निर्माण होती है/ ६०० प्रस्ताव और हैं यहाँ २५,००० मेगावाट बिजली निर्माण हो सकती है ऐसा विकास का पक्ष लेने बालों का मत है यदि ये प्रस्तावित योजनायें प्रत्यक्ष में आती हैं तो उत्तराखंड की जो दुर्दशा होगी वह कल्पना से भी परे है/उत्तराखंड में ४२ बांध तैयार हैं और २०३ बांध प्रस्ताविक हैं अर्थात प्रत्येक ६-७ क़ि,मी,पर एक बांध मिलेगा/ एक वासुकी ताल (गाँधीसरोवर) के टूटने से इतना प्रलय आया जब इतने बांध बनेगें तो पर्यावरण तो नष्ट होगा ही/ परन्तु प्रदेश को प्रलय का खतरा हमेशा बना रहेगा यह क्षेत्र भुकम्पप्रवण क्षेत्र है अभी १९९१ और १९९९ में उत्तरकाशी के आसपास विनाशकारी भूकम्प आया था घाटी में मानव की बढती दखलंदाजी आपदाओं को न्योता दे रही है इसके ये उदाहरण हैं/
अन्तरिक्ष उपग्रह केन्द्र के वृत्त में इस विनाश का मुख्य कारण मन्दाकिनी नदी का बोल्डर आना बताया गया युसेक ने सरकार को दिए वृत्त में यह बात कही है साथ ही वेहिसाव निर्माणकार्यों पर आक्षेप लिया है/ यात्राकाल में श्रध्दालुओं के साथ केवल धनप्राप्ति की होड़ से आनेबाले लोगों की अनावश्यक भीड़ जमा होती है घाटी में आनेबाले पर्यावरणविदों का भी कहना है कि दशकों से प्राकृतिक संसाधनों से किये जा रहे खिलवाड़ का यह परिणाम है जल,जंगल एवं खनिज संपति का शोषण हो रहा है/
अत: राष्ट्र सेविका समिति का स्पष्ट मत है कि पर्यावरण तथा निसर्ग से खिलवाड़ करके निर्माण होने वाली प्रत्येक योजना छोड़ देनी चाहिए/ विकास की अवधारणा भारतीय परिप्रेक्ष्य में अर्थात पर्यावरण को संतुलित रखते हुएक्रियान्वित करनी चाहिए \\
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प्रस्ताव क्रमांक २-
चीन भारत की आंतरिक एवं वाह्य सुरक्षा तथा अर्थव्यवस्था के लिए खतरनाक चुनौती वन गया है परन्तु यह दुर्भाग्य है कि देश के सभी चिंतकों, सुरक्षा विशेषज्ञों एवं सैन्य सलाहकारों की चेतावनी के वावजूद केंद्र सरकार न केवल इस खतरे की अनदेखी कर रही है अपितु इस दिशा में आपराधिक लापरवाही वरत रही है/ भारत और चीन की सीमा पर मेंकमोहन लें यह कल्पित सीमा रेखा है और यही भारत और चीन के तनावपूर्ण सम्बन्धों की जड है/ कुछ दिन पूर्व चीन की सेनाएं जिस तरह भारत की सीमाओं में घुस गयी थीं और जिस प्रकार भारत सरकार ने इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त की थी उससे चीन के इरादे और भारत सरकार की इस बिषय में लापरवाही दोनों ही स्पष्ट हो जाते हैं/
चीनी सेनाएं भारतीय सीमा के २७ कि,मी,अंदर घुसकर अपने टेंट गाड़ देती है, और चीनी सीमा का फलक भी लगा देती है परन्तु केंद्र सरकार पहले तो इस बिषय पर उलझी रहती है कि चीनी सेनाएं १५ कि. मी. घुसी हैं या २० क़ि. मी . उसके बाद भारत के प्रधानमन्त्री इसको स्थानीय समस्या कहकर भारत की संप्रभुता पर हुए इस हमले को हल्के से लेती है भारतीय प्रचारतंत्र तथा कुछ राजनीतिज्ञों के व्दारा शोर मचाये जाने पर चीनी प्रचारतंत्र और भारत सरकार को धमकाते हुए इस शोर को बंद करने की चेतावनी देते हैं अन्ततो गत्वा चीन ने अपने सैनिक कुछ पीछे तो हटा लिए परन्तु भारत सरकार ने भी अपने सैनिकों को अपनी ही सीमा में स्थित कुछ बंकर हटाने का आदेश दिया १९५० में चीन ने ९०,००० वर्ग कि. मी . क्षेत्र पर अपना दावा प्रस्तुत कर दिया था /१९६२ में सीधे युध्द में भारत की पराजय हुई उसके बाद भी प्रत्यक्ष युध्द के बिना भारतीय भूमि पर चीन का अधिकार बना रहा है इस सम्पूर्ण बिषय पर भारतीय सरकार प्रखर प्रतिकार की कोई योजना नहीं बना पाई है/
चीन व् पाकिस्तान का गठबन्धन इस खतरे को कई गुना बढ़ा रहा है/ ग्वादर बंदरगाह को विकसित करने के नाम पर चीन ने पाकिस्तान और पाकव्यास कश्मीर में अपना अस्तित्व दृढ किया है आज पाकव्यास कश्मीर के गिलगिट एवं बल्तिस्तान में चीन के १२,००० से अधिक सैनिक तैनात हैं और बहाँ पर चीन ने सैकड़ों मिसाइलें भी लगा दी हैं/ श्री लंका में भी हनाबंतोता बंदरगाह को विकसित किया है/ वगलादेश के चिटगांव कोक्सबा जार में भी चीन की पूरी दखलंदाजी है / म्यांमार,नेपाल वांगलादेश और श्री लंका को अपने शिकंजे में कसकर भारत को चारो और से घेर लिया है/
चीन अरुणाचल प्रदेश को भारत का हिस्सा नहीं मानता /और डंके की चोट पर ब्रह्मपुत्र पर बांध बनाने की योजना विकसित की है जिससे अरुणाचल प्रदेश की जलापूर्ति व् जलनीति प्रभावित होगी /दुर्भाग्य से महाराष्ट्र शासन के पाठ्यपुस्तकों में से भी पूरा अरुणाचल प्रदेश ही गायव कर दिया गया यह अत्यंत निंदनीय है/
चीन भारत को खोखला करनेबाले नक्सली आन्दोलन को अपरोक्ष मदद दे रहा है/ नक्सली आतंकियों के पास चीनी बनाबट की बंदूकें और अस्त्र शस्त्र मिलना इस बात का प्रमाण है पूर्वाचंल के आतंकवादी संगठन और बांग्लादेशी आतंकबादी संगठन हज़ा के आतंकियो के पास से भी चीनी बनावट के शस्त्र मिले हैं/
चीन ने योजनाबध्द तरीके से भारतीय अर्थव्यवस्था को कमजोर बनाने का प्रयास जारी रखा है/ भारतीय बाजारों में चीनी उत्पाद इतने अधिक आ गये हैं कि अब कई क्षेत्रो में भारतीय कारखानों पर ताले लग चुके हैं /चीनी उत्पादों पर यह निर्भरता भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक विनाशकारी संकेत है/ चीन ने अब तिब्बत के क्षेत्र से निकल रही नदियो पर असंबैधानिक रूप से बांध बनाकर इन नदियों को हथियार के रूप में उपयोग करने की नीति अपनाई है/
अभी अभी चिन और पाकिस्तान के बिच १८ बिलियन डालर्स का करार हुआ है जिसमें दोनों देशों के बीच २०० कि. मी . लंबा सुरंग बनाने का निश्चय किया है/ यह सुरंग पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह से उत्तर पश्चिम चीन तक बनाया जायेगा इससे तेल आदि उत्पादों का आयत निर्यात आसान हो जायेगा और पाकिस्तान की आर्थिक व्यवस्था सुदृढ़ होगी/ सबसे चिंता का बिषय है कि इस प्रकार का निर्माण भविष्य में केदारनाथ जैसी आपदा को खुला निमंत्रण दे रहा है इसका प्रखर विरोध होना चाहिए/
हाल ही में हमारे विदेशमंत्री महोदय सलमान खुर्शीद ने कहा कि हमें भारत और चीन के सीमारेखा के बिषय में निर्णय लेने की कोई जल्दी नहीं है इससे ही भारत सरकार की भूमिका स्पष्ट हो जाती है
अत: राष्ट्र सेविका समिति की यह प्रतिनिधि सभा भारत सरकार की भूमिका का प्रखर बिरोध करते हुए सरकार से मांग करती है क़ि अव उन्हें कुम्भकर्णी निद्रा को त्याग कर चीन की रणनीति का अध्ययन कर मुंह तोड़ जबाब देने की तैयारी करनी चाहिए/ हमारे देश में चीन की हर चुनौती का जबाब देने की पूरी क्षमता है /इस चुनौती का उत्तर देने के लिए हमारे निम्नलिखित सुझाब हैं-
१-चीन के षडयन्त्रोंका अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रचार किया जाना चाहिए जिससे चीन पर दबाब बनाया जा सके/
२-चीन की सैन्य क्षमता को ध्यान में रखते हुए भारत की सेना का आधुनिकीकरण किया जाना चाहिए/
३- भारतीय बाजारों में चीनी उत्पादों की खुली एवं निर्बाध विक्री पर रोक लगाई जानी चाहिए/
४-भारत के संवेदनशील क्षेत्रो में चीनी नागरिकों के प्रवेश पर रोक लगनी चाहिए/
५-भारत समेत १४ देशों की सीमाएं चीन से जुडी हुई हैं और भारत छोड़कर बाकि १३ देश तुलना में छोटे हैं /उन्हें अपने अस्तित्व की चिंता है/ ये चाहते हैं कि चीन विरोधी अभियान का भारत नेतृत्व करे और चीन के चंगुल से उन्हें बचाए/ अत: राष्ट्र सेविका समिति की यह प्रतिनिधि सभा भारत सरकार से अनुरोध करती है क़ि इस बिषय पर ठोस कदम उठाये /
राष्ट्र सेविका समिति
देवी अहल्या मन्दिर, धन्तोली, नागपुर
अखिल भारतीय कार्यकारिणी तथा प्रतिनिधिमण्डल बैठक
देवलापार जुलाई २०१३
प्रस्ताव क्रमांक १-
उत्तराखण्ड में आई दैवी विपदा-
दिनांक १५-१६ जून २०१३ को उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्र में अतिवृष्टि एवं बादल फटने से दैवी आपदा निर्माण हुई/ भागीरथी अलकनन्दा,गंगा,सोलानी,रमताऊ,पथरी,आदि नदियों में भीषण बाढ़ आयी जो अनेक गाँव, अनेक मकान,अनेक व्यक्तियों को अपने साथ बहा ले गयी/ लगभग १०,००० से अधिक व्यक्ति इस त्रासदी में मारे गये होंगें, ऐसा अनुमान है/
उत्तराखण्ड का ५३,४८० वर्ग कि. मी. से ४०. ००० वर्ग कि. मी . क्षेत्र इस प्रलय से बाधित हुआ है/ प्रदेश के १५ ,७६१ गांवों में से ६०० से अधिक गाँव बाढ़ प्रभावित हैं और २०० गाँव पूर्णत: नष्ट हो गये हैं इस प्रदेश का ८६% क्षेत्र पहाड़ी है जो अधिक प्रभावित हुआ है/
इस प्रलयकारी बाढ़ में उत्तराखंड के अधिकांश मार्ग वह गये हैं/राष्ट्रिय मार्ग १०९,७२,७८,आदि अनेक स्थानों पर टूट गये या बह गये हैं/अत: आवागमन अत्यंत प्रभावित हो गया है केदारनाथ रामबाड़ा,गौरीकुंड,चमोली,चंबा,रुद्रप्रयाग उत्तरकाशी आदि स्थानों पर प्रलय का परिणाम तीव्र हुआ है चारो यात्रा करनेवाले अनेक तीर्थयात्री केदारनाथ,बद्रीनाथ अटक गये थे
प्रलय की इस विभीषिका में भारतीय सेना एवं इंडो तिब्बत बार्डर फ़ोर्स के बहादुर जबानों ने जानपर खेलकर स्थानीय लोगों की और तीर्थयात्रियों की जान बचाई और उन्हें ढाढस बधाया ,उनकी मदद की, विविध धार्मिक संस्थानों व् मठों का भी कार्य में सहयोग रहा है इसका कृतज्ञता पूर्वक व् गौरवपूर्ण उल्लेख राष्ट्र सेविका समिति करती है/
बाढ़ की इस विभीषिका को देखते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने सेवा भारती व् अन्य सहयोगी संगठनो के साथ मिलकर उत्तराखंड दैवी आपदा पीड़ित समिति का गठन किया और मदद कार्य प्रारंभ किये/ राष्ट्र्सेविका समिति का भी इस कार्य में पूर्ण सहयोग है/ मदद कार्य करते समय दो बड़ी चुनौतियाँ सामने थीं-
१- स्थानीय लोग जिनके परिवारवाले इस प्रलय में मारे गये हैं और वो विस्थापित हो गये हैं,उन्हें आवास कपडे भोजन और पानी उपलब्ध कराना/
२--तीर्थयात्री और पर्यटकों को उनके गंतव्य स्थान तक पहुँचाने में मदद करना/
जहाँ रास्ते टूट गये हैं वहां पर कार्यकर्ता पीठ पर सहायता सामिग्री बांधकर कई कि,मी पैदल चलकर गये हैं/अनेक स्थानों पर विस्थापितों के रहने की और भोजन की व्यवस्था की गयी है/ चारो धाम यात्रा का बेस केम्प चंबा के शिबिर में २२ जून से १२,००० से भी अधिक पीड़ितों को भोजन कराया गया है/
राष्ट्र्सेविका समिति का मानना है कि यह जितनी दैवी आपदा है उतनी ही मनुष्य निर्मित आपदा भी है/ विकास के नाम पर उत्तराखंड समवेत समूचे उत्तर भारत के पहाड़ी क्षेत्र के साथ जो खिलबाड़ की जा रही है उससे पर्यावरण में असंतुलन निर्माण हुआ है और इसी कारण ऐसी आपदाएं बार बार आ रहीं हैं/ जून २०१३ के त्रासदी का लघुरूप उत्तराखंड में सितम्वर २०१० में भी देखा गया था किन्तु उससे सीख न लेते हुए हमने प्रकृति के साथ खिलबाड़ जारी रखा/
उत्तराखंड में जल विद्युत् निर्माण करने के नाम पर अनेक विद्युत् निर्माण गृह वनाये गये/ वर्तमान में २०० जल विद्युत् योजनाये चल रही हैं जिनमें ३,१६,४७५ मेगावाट विजली निर्माण होती है/ ६०० प्रस्ताव और हैं यहाँ २५,००० मेगावाट बिजली निर्माण हो सकती है ऐसा विकास का पक्ष लेने बालों का मत है यदि ये प्रस्तावित योजनायें प्रत्यक्ष में आती हैं तो उत्तराखंड की जो दुर्दशा होगी वह कल्पना से भी परे है/उत्तराखंड में ४२ बांध तैयार हैं और २०३ बांध प्रस्ताविक हैं अर्थात प्रत्येक ६-७ क़ि,मी,पर एक बांध मिलेगा/ एक वासुकी ताल (गाँधीसरोवर) के टूटने से इतना प्रलय आया जब इतने बांध बनेगें तो पर्यावरण तो नष्ट होगा ही/ परन्तु प्रदेश को प्रलय का खतरा हमेशा बना रहेगा यह क्षेत्र भुकम्पप्रवण क्षेत्र है अभी १९९१ और १९९९ में उत्तरकाशी के आसपास विनाशकारी भूकम्प आया था घाटी में मानव की बढती दखलंदाजी आपदाओं को न्योता दे रही है इसके ये उदाहरण हैं/
अन्तरिक्ष उपग्रह केन्द्र के वृत्त में इस विनाश का मुख्य कारण मन्दाकिनी नदी का बोल्डर आना बताया गया युसेक ने सरकार को दिए वृत्त में यह बात कही है साथ ही वेहिसाव निर्माणकार्यों पर आक्षेप लिया है/ यात्राकाल में श्रध्दालुओं के साथ केवल धनप्राप्ति की होड़ से आनेबाले लोगों की अनावश्यक भीड़ जमा होती है घाटी में आनेबाले पर्यावरणविदों का भी कहना है कि दशकों से प्राकृतिक संसाधनों से किये जा रहे खिलवाड़ का यह परिणाम है जल,जंगल एवं खनिज संपति का शोषण हो रहा है/
अत: राष्ट्र सेविका समिति का स्पष्ट मत है कि पर्यावरण तथा निसर्ग से खिलवाड़ करके निर्माण होने वाली प्रत्येक योजना छोड़ देनी चाहिए/ विकास की अवधारणा भारतीय परिप्रेक्ष्य में अर्थात पर्यावरण को संतुलित रखते हुएक्रियान्वित करनी चाहिए \\
_________________________________________________________________________________
प्रस्ताव क्रमांक २-
चीन भारत की आंतरिक एवं वाह्य सुरक्षा तथा अर्थव्यवस्था के लिए खतरनाक चुनौती वन गया है परन्तु यह दुर्भाग्य है कि देश के सभी चिंतकों, सुरक्षा विशेषज्ञों एवं सैन्य सलाहकारों की चेतावनी के वावजूद केंद्र सरकार न केवल इस खतरे की अनदेखी कर रही है अपितु इस दिशा में आपराधिक लापरवाही वरत रही है/ भारत और चीन की सीमा पर मेंकमोहन लें यह कल्पित सीमा रेखा है और यही भारत और चीन के तनावपूर्ण सम्बन्धों की जड है/ कुछ दिन पूर्व चीन की सेनाएं जिस तरह भारत की सीमाओं में घुस गयी थीं और जिस प्रकार भारत सरकार ने इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त की थी उससे चीन के इरादे और भारत सरकार की इस बिषय में लापरवाही दोनों ही स्पष्ट हो जाते हैं/
चीनी सेनाएं भारतीय सीमा के २७ कि,मी,अंदर घुसकर अपने टेंट गाड़ देती है, और चीनी सीमा का फलक भी लगा देती है परन्तु केंद्र सरकार पहले तो इस बिषय पर उलझी रहती है कि चीनी सेनाएं १५ कि. मी. घुसी हैं या २० क़ि. मी . उसके बाद भारत के प्रधानमन्त्री इसको स्थानीय समस्या कहकर भारत की संप्रभुता पर हुए इस हमले को हल्के से लेती है भारतीय प्रचारतंत्र तथा कुछ राजनीतिज्ञों के व्दारा शोर मचाये जाने पर चीनी प्रचारतंत्र और भारत सरकार को धमकाते हुए इस शोर को बंद करने की चेतावनी देते हैं अन्ततो गत्वा चीन ने अपने सैनिक कुछ पीछे तो हटा लिए परन्तु भारत सरकार ने भी अपने सैनिकों को अपनी ही सीमा में स्थित कुछ बंकर हटाने का आदेश दिया १९५० में चीन ने ९०,००० वर्ग कि. मी . क्षेत्र पर अपना दावा प्रस्तुत कर दिया था /१९६२ में सीधे युध्द में भारत की पराजय हुई उसके बाद भी प्रत्यक्ष युध्द के बिना भारतीय भूमि पर चीन का अधिकार बना रहा है इस सम्पूर्ण बिषय पर भारतीय सरकार प्रखर प्रतिकार की कोई योजना नहीं बना पाई है/
चीन व् पाकिस्तान का गठबन्धन इस खतरे को कई गुना बढ़ा रहा है/ ग्वादर बंदरगाह को विकसित करने के नाम पर चीन ने पाकिस्तान और पाकव्यास कश्मीर में अपना अस्तित्व दृढ किया है आज पाकव्यास कश्मीर के गिलगिट एवं बल्तिस्तान में चीन के १२,००० से अधिक सैनिक तैनात हैं और बहाँ पर चीन ने सैकड़ों मिसाइलें भी लगा दी हैं/ श्री लंका में भी हनाबंतोता बंदरगाह को विकसित किया है/ वगलादेश के चिटगांव कोक्सबा जार में भी चीन की पूरी दखलंदाजी है / म्यांमार,नेपाल वांगलादेश और श्री लंका को अपने शिकंजे में कसकर भारत को चारो और से घेर लिया है/
चीन अरुणाचल प्रदेश को भारत का हिस्सा नहीं मानता /और डंके की चोट पर ब्रह्मपुत्र पर बांध बनाने की योजना विकसित की है जिससे अरुणाचल प्रदेश की जलापूर्ति व् जलनीति प्रभावित होगी /दुर्भाग्य से महाराष्ट्र शासन के पाठ्यपुस्तकों में से भी पूरा अरुणाचल प्रदेश ही गायव कर दिया गया यह अत्यंत निंदनीय है/
चीन भारत को खोखला करनेबाले नक्सली आन्दोलन को अपरोक्ष मदद दे रहा है/ नक्सली आतंकियों के पास चीनी बनाबट की बंदूकें और अस्त्र शस्त्र मिलना इस बात का प्रमाण है पूर्वाचंल के आतंकवादी संगठन और बांग्लादेशी आतंकबादी संगठन हज़ा के आतंकियो के पास से भी चीनी बनावट के शस्त्र मिले हैं/
चीन ने योजनाबध्द तरीके से भारतीय अर्थव्यवस्था को कमजोर बनाने का प्रयास जारी रखा है/ भारतीय बाजारों में चीनी उत्पाद इतने अधिक आ गये हैं कि अब कई क्षेत्रो में भारतीय कारखानों पर ताले लग चुके हैं /चीनी उत्पादों पर यह निर्भरता भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक विनाशकारी संकेत है/ चीन ने अब तिब्बत के क्षेत्र से निकल रही नदियो पर असंबैधानिक रूप से बांध बनाकर इन नदियों को हथियार के रूप में उपयोग करने की नीति अपनाई है/
अभी अभी चिन और पाकिस्तान के बिच १८ बिलियन डालर्स का करार हुआ है जिसमें दोनों देशों के बीच २०० कि. मी . लंबा सुरंग बनाने का निश्चय किया है/ यह सुरंग पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह से उत्तर पश्चिम चीन तक बनाया जायेगा इससे तेल आदि उत्पादों का आयत निर्यात आसान हो जायेगा और पाकिस्तान की आर्थिक व्यवस्था सुदृढ़ होगी/ सबसे चिंता का बिषय है कि इस प्रकार का निर्माण भविष्य में केदारनाथ जैसी आपदा को खुला निमंत्रण दे रहा है इसका प्रखर विरोध होना चाहिए/
हाल ही में हमारे विदेशमंत्री महोदय सलमान खुर्शीद ने कहा कि हमें भारत और चीन के सीमारेखा के बिषय में निर्णय लेने की कोई जल्दी नहीं है इससे ही भारत सरकार की भूमिका स्पष्ट हो जाती है
अत: राष्ट्र सेविका समिति की यह प्रतिनिधि सभा भारत सरकार की भूमिका का प्रखर बिरोध करते हुए सरकार से मांग करती है क़ि अव उन्हें कुम्भकर्णी निद्रा को त्याग कर चीन की रणनीति का अध्ययन कर मुंह तोड़ जबाब देने की तैयारी करनी चाहिए/ हमारे देश में चीन की हर चुनौती का जबाब देने की पूरी क्षमता है /इस चुनौती का उत्तर देने के लिए हमारे निम्नलिखित सुझाब हैं-
१-चीन के षडयन्त्रोंका अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रचार किया जाना चाहिए जिससे चीन पर दबाब बनाया जा सके/
२-चीन की सैन्य क्षमता को ध्यान में रखते हुए भारत की सेना का आधुनिकीकरण किया जाना चाहिए/
३- भारतीय बाजारों में चीनी उत्पादों की खुली एवं निर्बाध विक्री पर रोक लगाई जानी चाहिए/
४-भारत के संवेदनशील क्षेत्रो में चीनी नागरिकों के प्रवेश पर रोक लगनी चाहिए/
५-भारत समेत १४ देशों की सीमाएं चीन से जुडी हुई हैं और भारत छोड़कर बाकि १३ देश तुलना में छोटे हैं /उन्हें अपने अस्तित्व की चिंता है/ ये चाहते हैं कि चीन विरोधी अभियान का भारत नेतृत्व करे और चीन के चंगुल से उन्हें बचाए/ अत: राष्ट्र सेविका समिति की यह प्रतिनिधि सभा भारत सरकार से अनुरोध करती है क़ि इस बिषय पर ठोस कदम उठाये /
शनिवार, 27 जुलाई 2013
व्यक्तिगत जीवन को राष्ट्रजीवन से जोड़ने का आदर्श उदाहर
स्रोत: News Bharati Hindi तारीख: 7/18/2013 7:30:09 PM |
(18 जुलाई, जयन्ती पर विशेष)
आज व्यक्तिगत जीवन की उन्नति के लिए हर कोई भरसक प्रयत्न करता है। परन्तु व्यक्तिगत जीवन को राष्ट्रजीवन से अलग नहीं किया जा सकता। राष्ट्रजीवन यदि सुरक्षित न रहे तो व्यक्तिगत जीवन भी असुरक्षित रहता है। समाजहित के लिए मैंने मेरे व्यक्तिगत जीवन में क्या किया, यह प्रश्न प्रत्येक व्यक्ति द्वारा स्वयं को पूछा जाना चाहिए। इस परिवेश में व्यक्तिगत जीवन को राष्ट्रजीवन से जोड़ने का आदर्श उदाहरण है - राष्ट्र सेविका समिति की संस्थापिका वन्दनीय मौसी केलकर।
- अलका इनामदार
स्वतंत्रता के पूर्व महिलाओं में समाज के प्रति दायित्व का बोध नगण्य था। जनसंख्यात्मक दृष्टि से देश में पचास प्रतिशत महिलाएं सामाजिक दायित्वों के प्रति उदासीन थीं। परन्तु वन्दनीय मौसी (कमल दाते) इस सन्दर्भ में सबसे अलग थीं। गोरक्षण एवं भूदान आन्दोलन में उनके पिता और उनकी बुआ की सक्रिय सहभागिता कु.कमल दाते के मन को संस्कारित कर रहे थे। घर पर लोकमान्य तिलक द्वारा सम्पादित दैनिक केसरी का नियमित रूप से वाचन होता था। इस प्रकार कु.कमल बड़ी हो रही थी। विवाह की स्थिति में बिन वरदक्षिणा के विवाह करने का उन्होंने निश्चय किया और इसमें वे सफल रहीं। समाज की कुप्रथाओं के विरुद्ध उन्होंने संघर्ष किया। आगे चलकर उन्होंने राष्ट्र सेविका समिति की स्थापना की। उनका मानना था कि सड़कों पर आकर आन्दोलन के बजाय व्यक्तिगत आचरण के द्वारा होने वाला सामाजिक परिवर्तन अधिक स्थायी होता है। और यही कारण है कि वह व्यक्तिगत शीलता का आग्रह रखती थीं, चाहे वह दहेज़प्रथा का विषय हो अथवा स्त्री शिक्षा का।
समय, क्षमता और सदगुण
विवाह के पश्चात कु.कमल दाते लक्ष्मीबाई केलकर हो गई। पति के सामाजिक प्रतिष्ठा के चलते वर्धा स्थित महिला क्लब में उनको प्रवेश मिला। परन्तु वहां के वातावरण में उनका मन नहीं लगा। मिलनसार स्वभाव के कारण उन्होंने वहां के महिला सदस्यों को करीब से जाना। तब उन्हें ज्ञात हुआ कि सभी लोग सदगुणी हैं। परन्तु क्लब में आकर वे अपना समय और क्षमता व्यर्थ गवांते हैं। इसलिए, बाद में उन महिलाओं को संगठित कर उन्होंने वर्धा में कन्या शाला की स्थापना की। इस माध्यम से मौसी ने समाज को सन्देश दिया कि समाज में क्षमताशील सदगुणी महिलाओं की कमी नहीं है। सही दिशा देकर विविध प्रकल्पों में उनकी सहभागिता बढ़ायी जा सकती है। सिर्फ कार्यकर्ताओं को इस दृष्टि से अपने स्वभाव में थोड़ा परिवर्तन लाने की आवश्यकता है।
स्वयं दृष्टि, समाज दृष्टि
स्वतंत्रता आन्दोलन में धीरे-धीरे महिलाओं की सहभागिता बढ़ने लगी थी। देश की राष्ट्रीय एवं सामाजिक परिवेश के बदलते पृष्ठभूमि में स्त्री का स्वयं की ओर देखने की दृष्टि और समाज द्वारा स्त्री की ओर देखने की दृष्टि किस तरह की है, इसपर मौसी का चिंतन शुरू था।
अपने सभी प्रकार के पारिवारिक और व्यक्तिगत कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए, शिक्षा और संगठन के माध्यम से महिलाओं की स्थिति में सुधार लाने का उन्होंने निश्चय किया। उनके इस चिंतन का प्रगट रूप अर्थात ‘राष्ट्र सेविका समिति’ की शाखा।
सीता और द्रोपदी की तरह प्रत्येक स्त्री के हृदय में आत्मतेज जाग्रत होना चाहिए, और इसी के बल पर उसने आत्मरक्षा करना चाहिए, जिससे कि उसे अपनी पवित्रता और मान-सम्मान की हानी का दंश न झेलना पड़े। ऐसी धारणा उन्होंने शाखाओं के माध्यम से प्रत्येक सेविका के मन में दृढ़ किया।
श्रीरामकथा
भारतीयों के मन पर राज करनेवाले रामायण की कथा को पूजाघरों की सीमा से बाहर निकालकर उसे समाजाभिमुख करने की दृष्टि से कार्य किया। प्रभु श्रीरामचन्द्र की सत्यनिष्ठा, प्रामाणिकता, समाज के प्रति ममत्व, ये सभी सदगुण सामान्य व्यक्ति के लिए भी सहज आचरणीय है। ऐसा कहा जाता है कि रामायण काल में सभी सुन्दर थे। परन्तु उन सबकी सुन्दरता शारीरिक सौंदर्य से सम्बंधित नहीं था, वरन नैतिकता, स्वाभिमान, सत्यनिष्ठा आदि का तेज प्रत्येक के मुखमंडल पर प्रतिबिम्बित होता था। रामकथा के माध्यम से रामराज्य कैसा था, तत्कालीन समाज का आचरण किस प्रकार था, इसका बड़ा मार्मिक चित्रण मौसी करती थी।
समिति के कार्यों का सैद्धांतिक पक्ष समाजपर्यंत पहुंचाने के लिए मौसी ने रामकथा को आधार बनाया, और जगह-जगह रामायण पर प्रवचन के कार्यक्रमों का आयोजन किया।
समाज का नब्ज टटोलने में उन्हें विशेषज्ञता प्राप्त थी। इसी प्रकार समाज स्वस्थ्य और सुदृढ़ रहे इस दृष्टि से अनेकविध उन्होंने उपाय योजना बनाई। स्त्री जीवन विकास परिषद, विभिन्न स्थानों पर प्रकल्पों का निर्माण, विविध विषयों पर प्रदर्शनी तैयार करना, आदि इसके कुछ उदाहरण हैं।
सामान्य महिला, सेविका और कार्यकर्ता
संगठन के लिए मौसी ने सर्वप्रथम स्वयं के जीवन में परिवर्तन लाया और इसके बाद दूसरों को भी इस दृष्टि से तैयार किया। सम्पर्क के लिए अधिक समय मिले इसलिए उन्होंने साइकल सीखी। मन के विचारों को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करने के लिए उन्होंने प्रयत्नपूर्वक वक्तृता सीखी। गैर मराठी राज्यों में कार्य करने के लिए हिन्दी भाषा में निपुणता प्राप्त की। महिलाओं के उत्तम गुणों की पहचान कर उन्हें समिति के कार्य से जोड़ा। मौसी जिस प्रान्त में जाती, वहां की बोली-भाषा के आत्मीयता प्रकट करनेवाले कुछ शब्दों को आग्रहपूर्वक अवश्य सीख लेतीं।
उनके सम्पर्क में आनेवाली प्रत्येक स्त्री का सेविका, और सेविका से कार्यकर्ता के रूप में परिवर्तन सहजता से हो जाता। इस तरह वह स्वयं के और दूसरों के व्यक्तिगत जीवन को सामाजिक व राष्ट्रजीवन से जोड़ती गईं।
मिट्टी की मूर्ति जिस प्रकार पानी में घुल जाती है उसी प्रकार समिति की सेविका ने भी समाजरूपी सागर में उतर जाना चाहिए, रोम-रोम में उसे अंगीकृत करना चाहिए और उसके प्रत्येक स्पंदन वह प्रगट होना चाहिए। अर्थात व्यक्तिगत जीवन को राष्ट्रजीवन से जोड़ने की यह प्रक्रिया सतत शुरू रहनी चाहिए, ऐसी उनकी अपेक्षा थी।
वन्दनीय मौसी के जन्मदिन पर उनकी इस अपेक्षा को पूर्ण दायित्व बोध के साथ स्वीकार करना ही उनके प्रति सच्ची आदरांजलि होगी।
सह कार्यवाहिका,
राष्ट्र सेविका समिति
सोमवार, 22 जुलाई 2013
गुरु पूर्णिमा
नमस्कार,
गुरु पूर्णिमा की हार्दिक बधाई। गुरु शिष्य की परम्परा को दृढ़ करने बाला यह पर्व भारतबर्ष में अनादिकाल से मनाया जाता है। भगवान बिष्णु के अवतार महर्षि वेदव्यास का जन्मदिन होने के कारण इसे व्यास पूर्णिमा भी कहते हैं। गुरुपूर्णिमा अर्थात ज्ञान के स्रोत की उपासना का दिन।और जिस स्रोत से हमें यह ज्ञान प्राप्त हुआ,हम भारतीयों की दृष्टि में सवसे बड़ा ,आदरणीय श्रध्दा स्पद या गुरु रूप में पूजनीय हैं।
महर्षि वेदव्यास ने सम्पूर्ण विश्व को अथाह ज्ञान सम्पदा प्रदान की,अत इस शुभ पर्व पर उनका परिचय जानना भी आवश्यक हो जाता है। ऋषि पराशर एवं सत्यवती के पुत्र वेदव्यास का
जन्म जम्बुव्दीप में हुआ।जन्म से श्यामवर्ण का होने के कारण उनका नाम कृष्ण व्दैपायन पड़ा। नर और नारायण की साधनास्थली बदरीवन में तपस्या करने के कारण उनका एक नाम वादरायण भी है। महर्षि व्यास नेलोगों की धारणा -शक्ति को कम होता हुआ देख मूल बेद को चार भागों में बिभाजित किया और मन्त्रों एवं सूक्तोंको संहिता रूप में व्यवस्थित किया।प्रत्येक संहिता की अनेक शाखा -प्रशाखा बनीं।वेदों का सम्पादन विस्तार से करने के कारण ही उनका नाम वेदव्यास पड़ा। आदिपुराण को लुप्त होते देख 18पुराण और उपपुराणों की संरचना की।18000श्लोकों बाली श्रीमद्भागवत पुराण की रचना की। उपनिषदों के सार को समझने के लिए ब्रम्हसुत्र बनाया। महाभारत के रूप में भारत के सांस्कृतिक विश्वकोश की रचना महर्षि वेदव्यास ने की। जिसकेबिषय में कहा जाता है-यन्ना भारते ,तन्ना भारते , अर्थात जो महाभारत में नहीं,बह कहीं नहीं। इसीलिए प्रसिध्द है-व्यासोच्छिष्टं जगत्सर्वं ।
इस प्रकार विश्व को अथाह ज्ञान संपदा देने के कारण महर्षि वेदव्यास विश्वगुरु के रूप में बंदित हुए।और इस महान ऋषि के प्रति श्रध्दा प्रकट करने के लिए उनके जन्मदिन को व्यास पूर्णिमा के रूप में हम भारतीयों ने स्वीकार किया।तभी से इस दिन को अपने गुरु के प्रति समर्पण प्रकट करने के रूप में मनाया जाने लगा।
गुरु पूर्णिमा की हार्दिक बधाई। गुरु शिष्य की परम्परा को दृढ़ करने बाला यह पर्व भारतबर्ष में अनादिकाल से मनाया जाता है। भगवान बिष्णु के अवतार महर्षि वेदव्यास का जन्मदिन होने के कारण इसे व्यास पूर्णिमा भी कहते हैं। गुरुपूर्णिमा अर्थात ज्ञान के स्रोत की उपासना का दिन।और जिस स्रोत से हमें यह ज्ञान प्राप्त हुआ,हम भारतीयों की दृष्टि में सवसे बड़ा ,आदरणीय श्रध्दा स्पद या गुरु रूप में पूजनीय हैं।
महर्षि वेदव्यास ने सम्पूर्ण विश्व को अथाह ज्ञान सम्पदा प्रदान की,अत इस शुभ पर्व पर उनका परिचय जानना भी आवश्यक हो जाता है। ऋषि पराशर एवं सत्यवती के पुत्र वेदव्यास का
जन्म जम्बुव्दीप में हुआ।जन्म से श्यामवर्ण का होने के कारण उनका नाम कृष्ण व्दैपायन पड़ा। नर और नारायण की साधनास्थली बदरीवन में तपस्या करने के कारण उनका एक नाम वादरायण भी है। महर्षि व्यास नेलोगों की धारणा -शक्ति को कम होता हुआ देख मूल बेद को चार भागों में बिभाजित किया और मन्त्रों एवं सूक्तोंको संहिता रूप में व्यवस्थित किया।प्रत्येक संहिता की अनेक शाखा -प्रशाखा बनीं।वेदों का सम्पादन विस्तार से करने के कारण ही उनका नाम वेदव्यास पड़ा। आदिपुराण को लुप्त होते देख 18पुराण और उपपुराणों की संरचना की।18000श्लोकों बाली श्रीमद्भागवत पुराण की रचना की। उपनिषदों के सार को समझने के लिए ब्रम्हसुत्र बनाया। महाभारत के रूप में भारत के सांस्कृतिक विश्वकोश की रचना महर्षि वेदव्यास ने की। जिसकेबिषय में कहा जाता है-यन्ना भारते ,तन्ना भारते , अर्थात जो महाभारत में नहीं,बह कहीं नहीं। इसीलिए प्रसिध्द है-व्यासोच्छिष्टं जगत्सर्वं ।
इस प्रकार विश्व को अथाह ज्ञान संपदा देने के कारण महर्षि वेदव्यास विश्वगुरु के रूप में बंदित हुए।और इस महान ऋषि के प्रति श्रध्दा प्रकट करने के लिए उनके जन्मदिन को व्यास पूर्णिमा के रूप में हम भारतीयों ने स्वीकार किया।तभी से इस दिन को अपने गुरु के प्रति समर्पण प्रकट करने के रूप में मनाया जाने लगा।
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