रविवार, 26 जनवरी 2014

हमारे आदर्श वाक्य-
हमारे संबिधान निर्माताओं में भिन्न-भिन्न पूजा पद्दीतियों को माननेवाले लोग थे,किन्तु वे सभी जानते थे कि भारत जैसे वहुविध समाज का प्रजातांत्रिक वने रहना तभी संभव है जव हम हमारे परम्परागत हिन्दू मूल्यों को महत्व देगें,इसीलिए हिन्दू परम्परा की मूल व्यवस्था ने संविधान रूप में प्रशासनिक इकाईओं को प्रेरित किया। यथा-
१- भारत सरकार- सत्यमेव जयते (अशोक चक्र )
२- लोक सभा- धर्मचक्र प्रवर्तनाय 
३-सर्वोच्च न्यायालय -यतो धर्म: ततो जय:
४-आकाशवाणी -बहुजन हिताय 
५-दूरदर्शन-सत्यम शिवम् सुन्दरम 
६-भारतीय सेना-सेवा अस्माकं धर्म 
७-भारतीय जल सेना-शन्नो वरुण: 
८-भारतीय वायु सेना-नभ: स्पृशम् दीप्तम 
९-दिल्ली विश्वविद्यालय -निष्ठां धृति सत्यम 
हमारा सूत्र वाक्य है-यतो धर्म: ततो जय:

ये सभी आदर्श वाक्य हमारी हिन्दू परम्परा के आदर्श वाक्य हैं जो हमारे संबिधान के आधार हैं। 

रविवार, 28 जुलाई 2013

बैठक में पारित प्रस्ताव

                                                                      ऊँ
                 
                                                         राष्ट्र सेविका समिति 
                                                    देवी अहल्या मन्दिर, धन्तोली, नागपुर

                          अखिल भारतीय कार्यकारिणी तथा प्रतिनिधिमण्डल बैठक 
                                                 देवलापार जुलाई २०१३
प्रस्ताव क्रमांक १-

उत्तराखण्ड में आई दैवी विपदा-
दिनांक १५-१६ जून २०१३ को उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्र में अतिवृष्टि एवं बादल फटने से दैवी आपदा निर्माण हुई/ भागीरथी अलकनन्दा,गंगा,सोलानी,रमताऊ,पथरी,आदि नदियों में भीषण बाढ़ आयी जो अनेक गाँव, अनेक मकान,अनेक व्यक्तियों को अपने साथ बहा ले गयी/ लगभग १०,००० से अधिक व्यक्ति इस त्रासदी में मारे गये होंगें, ऐसा अनुमान है/

उत्तराखण्ड का ५३,४८० वर्ग कि. मी. से ४०. ००० वर्ग कि. मी . क्षेत्र इस प्रलय से बाधित हुआ है/ प्रदेश के १५ ,७६१ गांवों में से ६०० से अधिक गाँव बाढ़ प्रभावित हैं  और २०० गाँव पूर्णत: नष्ट हो गये हैं इस प्रदेश का ८६% क्षेत्र पहाड़ी है जो अधिक प्रभावित हुआ है/

इस प्रलयकारी बाढ़ में उत्तराखंड के अधिकांश मार्ग वह गये हैं/राष्ट्रिय मार्ग १०९,७२,७८,आदि अनेक स्थानों पर टूट गये या बह गये हैं/अत: आवागमन अत्यंत प्रभावित हो गया है केदारनाथ रामबाड़ा,गौरीकुंड,चमोली,चंबा,रुद्रप्रयाग  उत्तरकाशी आदि स्थानों पर प्रलय का परिणाम तीव्र हुआ है  चारो  यात्रा करनेवाले अनेक तीर्थयात्री केदारनाथ,बद्रीनाथ  अटक गये थे

प्रलय की इस विभीषिका में भारतीय सेना  एवं इंडो तिब्बत बार्डर फ़ोर्स के बहादुर जबानों ने जानपर खेलकर स्थानीय लोगों की और तीर्थयात्रियों की जान बचाई और उन्हें ढाढस बधाया ,उनकी मदद की, विविध धार्मिक संस्थानों व् मठों का भी कार्य में सहयोग रहा है इसका कृतज्ञता पूर्वक व् गौरवपूर्ण उल्लेख राष्ट्र सेविका समिति करती है/

बाढ़ की इस विभीषिका को देखते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने सेवा भारती व् अन्य सहयोगी संगठनो के साथ मिलकर उत्तराखंड दैवी आपदा पीड़ित समिति का गठन किया और मदद कार्य प्रारंभ किये/ राष्ट्र्सेविका समिति का भी इस कार्य में पूर्ण सहयोग है/ मदद कार्य करते समय दो बड़ी चुनौतियाँ सामने थीं-
१- स्थानीय लोग जिनके परिवारवाले इस प्रलय में मारे गये हैं और वो विस्थापित हो गये हैं,उन्हें आवास कपडे भोजन और पानी उपलब्ध कराना/
२--तीर्थयात्री और पर्यटकों को उनके गंतव्य स्थान तक पहुँचाने में मदद करना/

जहाँ रास्ते टूट गये हैं वहां पर कार्यकर्ता पीठ पर सहायता सामिग्री बांधकर कई कि,मी पैदल चलकर गये हैं/अनेक स्थानों पर विस्थापितों के रहने की और भोजन की व्यवस्था की गयी है/ चारो धाम यात्रा का बेस केम्प चंबा के शिबिर में २२ जून से १२,००० से भी अधिक पीड़ितों को भोजन कराया गया है/

राष्ट्र्सेविका समिति का मानना है कि यह जितनी दैवी आपदा है उतनी ही मनुष्य निर्मित आपदा भी है/ विकास के नाम पर उत्तराखंड समवेत समूचे उत्तर भारत के पहाड़ी क्षेत्र के साथ जो खिलबाड़ की जा रही है उससे पर्यावरण में असंतुलन निर्माण हुआ है और इसी कारण ऐसी आपदाएं बार बार आ रहीं हैं/ जून २०१३ के त्रासदी का लघुरूप उत्तराखंड में सितम्वर २०१० में भी देखा गया था किन्तु उससे सीख न लेते हुए हमने प्रकृति के साथ खिलबाड़ जारी रखा/

उत्तराखंड में जल विद्युत् निर्माण करने के नाम पर अनेक विद्युत् निर्माण गृह वनाये गये/ वर्तमान में २०० जल विद्युत् योजनाये चल रही हैं जिनमें ३,१६,४७५ मेगावाट विजली निर्माण होती है/ ६०० प्रस्ताव और हैं यहाँ २५,००० मेगावाट बिजली निर्माण हो  सकती है ऐसा विकास का पक्ष लेने बालों का मत है यदि ये प्रस्तावित योजनायें प्रत्यक्ष में आती हैं तो उत्तराखंड की जो दुर्दशा होगी वह कल्पना से भी परे है/उत्तराखंड में ४२ बांध तैयार हैं और २०३ बांध प्रस्ताविक हैं अर्थात प्रत्येक ६-७ क़ि,मी,पर एक बांध मिलेगा/ एक वासुकी ताल (गाँधीसरोवर) के टूटने से इतना प्रलय आया जब इतने बांध बनेगें तो पर्यावरण तो नष्ट होगा ही/ परन्तु प्रदेश को प्रलय का खतरा हमेशा बना रहेगा यह क्षेत्र भुकम्पप्रवण क्षेत्र है अभी १९९१ और १९९९ में उत्तरकाशी के आसपास विनाशकारी भूकम्प आया था घाटी में मानव की बढती दखलंदाजी आपदाओं को न्योता दे रही है इसके ये उदाहरण हैं/

अन्तरिक्ष उपग्रह केन्द्र के वृत्त में इस विनाश का मुख्य कारण मन्दाकिनी नदी का बोल्डर आना बताया गया युसेक ने सरकार को दिए वृत्त में यह बात कही है साथ ही वेहिसाव निर्माणकार्यों पर आक्षेप लिया है/ यात्राकाल में श्रध्दालुओं के साथ केवल धनप्राप्ति की होड़ से आनेबाले लोगों की अनावश्यक भीड़ जमा होती है घाटी में आनेबाले पर्यावरणविदों का भी कहना है कि दशकों से प्राकृतिक संसाधनों से किये जा रहे खिलवाड़ का यह परिणाम है जल,जंगल एवं खनिज संपति का शोषण हो रहा है/

अत: राष्ट्र सेविका समिति का स्पष्ट मत है कि पर्यावरण तथा निसर्ग से खिलवाड़ करके निर्माण होने वाली प्रत्येक योजना छोड़ देनी चाहिए/ विकास की अवधारणा भारतीय परिप्रेक्ष्य में अर्थात पर्यावरण को संतुलित रखते हुएक्रियान्वित करनी चाहिए \\
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प्रस्ताव क्रमांक २-

चीन भारत की आंतरिक एवं वाह्य सुरक्षा तथा अर्थव्यवस्था के लिए खतरनाक चुनौती वन गया है परन्तु यह दुर्भाग्य है कि देश के सभी चिंतकों, सुरक्षा विशेषज्ञों एवं सैन्य सलाहकारों की चेतावनी के वावजूद केंद्र सरकार न केवल इस खतरे की अनदेखी कर रही है अपितु इस दिशा में आपराधिक लापरवाही वरत रही है/ भारत और चीन की सीमा पर मेंकमोहन लें यह कल्पित सीमा रेखा है और यही भारत और चीन के तनावपूर्ण सम्बन्धों की जड है/ कुछ दिन पूर्व चीन की सेनाएं जिस तरह भारत की सीमाओं में घुस गयी थीं और जिस प्रकार भारत सरकार ने इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त की थी उससे चीन के इरादे और भारत सरकार की इस बिषय में लापरवाही दोनों ही स्पष्ट हो जाते हैं/

चीनी सेनाएं भारतीय सीमा के २७ कि,मी,अंदर घुसकर अपने टेंट गाड़ देती है, और चीनी सीमा का फलक भी लगा देती है परन्तु केंद्र सरकार पहले तो इस बिषय पर उलझी रहती है कि चीनी सेनाएं १५ कि. मी. घुसी हैं या २० क़ि. मी . उसके बाद भारत के प्रधानमन्त्री इसको स्थानीय समस्या कहकर भारत की संप्रभुता पर हुए इस हमले को  हल्के से लेती है भारतीय प्रचारतंत्र तथा कुछ राजनीतिज्ञों के व्दारा शोर मचाये जाने पर चीनी प्रचारतंत्र और भारत सरकार को धमकाते हुए इस शोर को बंद करने की चेतावनी देते हैं अन्ततो गत्वा चीन ने अपने सैनिक कुछ पीछे तो हटा लिए परन्तु भारत सरकार ने भी अपने सैनिकों को अपनी ही सीमा में स्थित कुछ बंकर हटाने का आदेश दिया १९५० में चीन ने ९०,००० वर्ग कि. मी . क्षेत्र पर अपना दावा प्रस्तुत कर दिया था /१९६२ में सीधे युध्द में भारत की पराजय हुई उसके बाद भी प्रत्यक्ष युध्द के बिना भारतीय भूमि पर चीन का अधिकार बना रहा है इस सम्पूर्ण बिषय पर भारतीय सरकार प्रखर प्रतिकार की कोई योजना नहीं बना पाई है/

चीन व् पाकिस्तान का गठबन्धन इस खतरे को कई गुना बढ़ा रहा है/ ग्वादर बंदरगाह को विकसित करने के नाम पर  चीन ने पाकिस्तान और पाकव्यास कश्मीर में अपना अस्तित्व दृढ किया है आज पाकव्यास कश्मीर के गिलगिट एवं बल्तिस्तान में चीन के १२,००० से अधिक सैनिक तैनात हैं और बहाँ  पर चीन ने सैकड़ों मिसाइलें भी लगा दी हैं/ श्री लंका में भी हनाबंतोता बंदरगाह को विकसित किया है/ वगलादेश के चिटगांव कोक्सबा जार में भी चीन की पूरी दखलंदाजी है / म्यांमार,नेपाल वांगलादेश और श्री लंका को अपने शिकंजे में कसकर भारत को चारो और से घेर लिया है/

चीन अरुणाचल प्रदेश को भारत का हिस्सा नहीं मानता /और डंके की चोट पर ब्रह्मपुत्र पर बांध बनाने की योजना विकसित की है जिससे अरुणाचल प्रदेश की जलापूर्ति व् जलनीति प्रभावित होगी /दुर्भाग्य से महाराष्ट्र शासन के पाठ्यपुस्तकों में से भी पूरा अरुणाचल प्रदेश ही गायव कर दिया गया यह अत्यंत निंदनीय है/

चीन भारत को खोखला करनेबाले नक्सली आन्दोलन को अपरोक्ष मदद दे रहा है/ नक्सली आतंकियों के पास चीनी बनाबट की बंदूकें और अस्त्र शस्त्र मिलना इस बात का प्रमाण है पूर्वाचंल के आतंकवादी संगठन और बांग्लादेशी आतंकबादी संगठन हज़ा के आतंकियो के पास से भी चीनी बनावट के शस्त्र मिले हैं/

चीन ने योजनाबध्द तरीके से भारतीय अर्थव्यवस्था को कमजोर बनाने का प्रयास जारी रखा है/ भारतीय बाजारों में चीनी उत्पाद इतने अधिक आ गये हैं कि अब कई क्षेत्रो में भारतीय कारखानों पर ताले लग चुके हैं /चीनी उत्पादों पर यह निर्भरता भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक विनाशकारी संकेत है/ चीन ने अब तिब्बत के क्षेत्र से निकल रही नदियो पर असंबैधानिक रूप से बांध बनाकर इन नदियों को हथियार के रूप में उपयोग करने की नीति अपनाई है/

अभी अभी चिन और पाकिस्तान के बिच १८ बिलियन डालर्स का करार हुआ है जिसमें दोनों देशों के बीच २०० कि. मी . लंबा सुरंग बनाने का निश्चय किया है/ यह सुरंग पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह से उत्तर पश्चिम चीन तक बनाया जायेगा इससे तेल आदि उत्पादों का आयत निर्यात आसान हो जायेगा और पाकिस्तान की आर्थिक व्यवस्था सुदृढ़ होगी/ सबसे चिंता का बिषय है कि इस प्रकार का निर्माण भविष्य में केदारनाथ जैसी आपदा को खुला निमंत्रण दे रहा है इसका प्रखर विरोध होना चाहिए/

हाल ही में हमारे विदेशमंत्री महोदय सलमान खुर्शीद ने कहा कि हमें भारत और चीन के सीमारेखा के बिषय में निर्णय लेने की कोई  जल्दी नहीं है इससे ही भारत सरकार की भूमिका स्पष्ट हो जाती है

अत: राष्ट्र सेविका समिति की यह प्रतिनिधि सभा भारत सरकार की भूमिका का प्रखर बिरोध करते हुए सरकार से मांग करती है क़ि अव उन्हें कुम्भकर्णी निद्रा को त्याग कर चीन की रणनीति का अध्ययन कर मुंह तोड़ जबाब देने की तैयारी करनी चाहिए/ हमारे देश में चीन की हर चुनौती का जबाब देने की पूरी क्षमता है /इस चुनौती का उत्तर देने के लिए हमारे निम्नलिखित सुझाब हैं-

१-चीन के षडयन्त्रोंका अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रचार किया जाना चाहिए जिससे चीन पर दबाब बनाया जा सके/

२-चीन की सैन्य क्षमता को ध्यान में रखते हुए भारत की सेना का आधुनिकीकरण किया जाना चाहिए/

३- भारतीय बाजारों में चीनी उत्पादों की खुली एवं निर्बाध विक्री पर रोक लगाई जानी चाहिए/

४-भारत के संवेदनशील क्षेत्रो में चीनी नागरिकों के प्रवेश पर रोक लगनी चाहिए/

५-भारत समेत १४ देशों की सीमाएं चीन से जुडी हुई हैं और भारत छोड़कर बाकि १३ देश तुलना में छोटे हैं /उन्हें अपने अस्तित्व की चिंता है/ ये चाहते हैं कि चीन विरोधी अभियान का भारत नेतृत्व करे और चीन के चंगुल से उन्हें बचाए/ अत: राष्ट्र सेविका समिति की यह प्रतिनिधि सभा भारत सरकार से अनुरोध करती है क़ि इस बिषय पर ठोस कदम उठाये /                        
                                
                                         

शनिवार, 27 जुलाई 2013

व्यक्तिगत जीवन को राष्ट्रजीवन से जोड़ने का आदर्श उदाहर

स्रोत: News Bharati Hindi      तारीख: 7/18/2013 7:30:09 PM

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(18 जुलाई, जयन्ती पर विशेष)
आज व्यक्तिगत जीवन की उन्नति के लिए हर कोई भरसक प्रयत्न करता है। परन्तु व्यक्तिगत जीवन को राष्ट्रजीवन से अलग नहीं किया जा सकता। राष्ट्रजीवन यदि सुरक्षित न रहे तो व्यक्तिगत जीवन भी असुरक्षित रहता है। समाजहित के लिए मैंने मेरे व्यक्तिगत जीवन में क्या किया, यह प्रश्न प्रत्येक व्यक्ति द्वारा स्वयं को पूछा जाना चाहिए। इस परिवेश में व्यक्तिगत जीवन को राष्ट्रजीवन से जोड़ने का आदर्श उदाहरण है - राष्ट्र सेविका समिति की संस्थापिका वन्दनीय मौसी केलकर।
- अलका इनामदार
स्वतंत्रता के पूर्व महिलाओं में समाज के प्रति दायित्व का बोध नगण्य था। जनसंख्यात्मक दृष्टि से देश में पचास प्रतिशत महिलाएं सामाजिक दायित्वों के प्रति उदासीन थीं। परन्तु वन्दनीय मौसी (कमल दाते) इस सन्दर्भ में सबसे अलग थीं। गोरक्षण एवं भूदान आन्दोलन में उनके पिता और उनकी बुआ की सक्रिय सहभागिता कु.कमल दाते के मन को संस्कारित कर रहे थे। घर पर लोकमान्य तिलक द्वारा सम्पादित दैनिक केसरी का नियमित रूप से वाचन होता था। इस प्रकार कु.कमल बड़ी हो रही थी। विवाह की स्थिति में बिन वरदक्षिणा के विवाह करने का उन्होंने निश्चय किया और इसमें वे सफल रहीं। समाज की कुप्रथाओं के विरुद्ध उन्होंने संघर्ष किया। आगे चलकर उन्होंने राष्ट्र सेविका समिति की स्थापना की। उनका मानना था कि सड़कों पर आकर आन्दोलन के बजाय व्यक्तिगत आचरण के द्वारा होने वाला सामाजिक परिवर्तन अधिक स्थायी होता है। और यही कारण है कि वह व्यक्तिगत शीलता का आग्रह रखती थीं, चाहे वह दहेज़प्रथा का विषय हो अथवा स्त्री शिक्षा का।
समय, क्षमता और सदगुण
विवाह के पश्चात कु.कमल दाते लक्ष्मीबाई केलकर हो गई। पति के सामाजिक प्रतिष्ठा के चलते वर्धा स्थित महिला क्लब में उनको प्रवेश मिला। परन्तु वहां के वातावरण में उनका मन नहीं लगा। मिलनसार स्वभाव के कारण उन्होंने वहां के महिला सदस्यों को करीब से जाना। तब उन्हें ज्ञात हुआ कि सभी लोग सदगुणी हैं। परन्तु क्लब में आकर वे अपना समय और क्षमता व्यर्थ गवांते हैं। इसलिए, बाद में उन महिलाओं को संगठित कर उन्होंने वर्धा में कन्या शाला की स्थापना की। इस माध्यम से मौसी ने समाज को सन्देश दिया कि समाज में क्षमताशील सदगुणी महिलाओं की कमी नहीं है। सही दिशा देकर विविध प्रकल्पों में उनकी सहभागिता बढ़ायी जा सकती है। सिर्फ कार्यकर्ताओं को इस दृष्टि से अपने स्वभाव में थोड़ा परिवर्तन लाने की आवश्यकता है।  
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स्वयं दृष्टि, समाज दृष्टि
स्वतंत्रता आन्दोलन में धीरे-धीरे महिलाओं की सहभागिता बढ़ने लगी थी। देश की राष्ट्रीय एवं सामाजिक परिवेश के बदलते पृष्ठभूमि में स्त्री का स्वयं की ओर देखने की दृष्टि और समाज द्वारा स्त्री की ओर देखने की दृष्टि किस तरह की है, इसपर मौसी का चिंतन शुरू था।
अपने सभी प्रकार के पारिवारिक और व्यक्तिगत कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए, शिक्षा और संगठन के माध्यम से महिलाओं की स्थिति में सुधार लाने का उन्होंने निश्चय किया। उनके इस चिंतन का प्रगट रूप अर्थात ‘राष्ट्र सेविका समिति’ की शाखा।
सीता और द्रोपदी की तरह प्रत्येक स्त्री के हृदय में आत्मतेज जाग्रत होना चाहिए, और इसी के बल पर उसने आत्मरक्षा करना चाहिए, जिससे कि उसे अपनी पवित्रता और मान-सम्मान की हानी का दंश न झेलना पड़े। ऐसी धारणा उन्होंने शाखाओं के माध्यम से प्रत्येक सेविका के मन में दृढ़ किया।
श्रीरामकथा
भारतीयों के मन पर राज करनेवाले रामायण की कथा को पूजाघरों की सीमा से बाहर निकालकर उसे समाजाभिमुख करने की दृष्टि से कार्य किया। प्रभु श्रीरामचन्द्र की सत्यनिष्ठा, प्रामाणिकता, समाज के प्रति ममत्व, ये सभी सदगुण सामान्य व्यक्ति के लिए भी सहज आचरणीय है। ऐसा कहा जाता है कि रामायण काल में सभी सुन्दर थे। परन्तु उन सबकी सुन्दरता शारीरिक सौंदर्य से सम्बंधित नहीं था, वरन नैतिकता, स्वाभिमान, सत्यनिष्ठा आदि का तेज प्रत्येक के मुखमंडल पर प्रतिबिम्बित होता था। रामकथा के माध्यम से रामराज्य कैसा था, तत्कालीन समाज का आचरण किस प्रकार था, इसका बड़ा मार्मिक चित्रण मौसी करती थी।
समिति के कार्यों का सैद्धांतिक पक्ष समाजपर्यंत पहुंचाने के लिए मौसी ने रामकथा को आधार बनाया, और जगह-जगह रामायण पर प्रवचन के कार्यक्रमों का आयोजन किया।
समाज का नब्ज टटोलने में उन्हें विशेषज्ञता प्राप्त थी। इसी प्रकार समाज स्वस्थ्य और सुदृढ़ रहे इस दृष्टि से अनेकविध उन्होंने उपाय योजना बनाई। स्त्री जीवन विकास परिषद, विभिन्न स्थानों पर प्रकल्पों का निर्माण, विविध विषयों पर प्रदर्शनी तैयार करना, आदि इसके कुछ उदाहरण हैं।
सामान्य महिला, सेविका और कार्यकर्ता
संगठन के लिए मौसी ने सर्वप्रथम स्वयं के जीवन में परिवर्तन लाया और इसके बाद दूसरों को भी इस दृष्टि से तैयार किया। सम्पर्क के लिए अधिक समय मिले इसलिए उन्होंने साइकल सीखी। मन के विचारों को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करने के लिए उन्होंने प्रयत्नपूर्वक वक्तृता सीखी। गैर मराठी राज्यों में कार्य करने के लिए हिन्दी भाषा में निपुणता प्राप्त की। महिलाओं के उत्तम गुणों की पहचान कर उन्हें समिति के कार्य से जोड़ा। मौसी जिस प्रान्त में जाती, वहां की बोली-भाषा के आत्मीयता प्रकट करनेवाले कुछ शब्दों को आग्रहपूर्वक अवश्य सीख लेतीं।
उनके सम्पर्क में आनेवाली प्रत्येक स्त्री का सेविका, और सेविका से कार्यकर्ता के रूप में परिवर्तन सहजता से हो जाता। इस तरह वह स्वयं के और दूसरों के व्यक्तिगत जीवन को सामाजिक व राष्ट्रजीवन से जोड़ती गईं।
मिट्टी की मूर्ति जिस प्रकार पानी में घुल जाती है उसी प्रकार समिति की सेविका ने भी समाजरूपी सागर में उतर जाना चाहिए, रोम-रोम में उसे अंगीकृत करना चाहिए और उसके प्रत्येक स्पंदन वह प्रगट होना चाहिए। अर्थात व्यक्तिगत जीवन को राष्ट्रजीवन से जोड़ने की यह प्रक्रिया सतत शुरू रहनी चाहिए, ऐसी उनकी अपेक्षा थी।
वन्दनीय मौसी के जन्मदिन पर उनकी इस अपेक्षा को पूर्ण दायित्व बोध के साथ स्वीकार करना ही उनके प्रति सच्ची आदरांजलि होगी।
सह कार्यवाहिका,
राष्ट्र सेविका समिति

सोमवार, 22 जुलाई 2013

गुरु पूर्णिमा

नमस्कार,
       गुरु पूर्णिमा की हार्दिक बधाई।  गुरु शिष्य की परम्परा को दृढ़ करने बाला यह पर्व भारतबर्ष में अनादिकाल से मनाया जाता है। भगवान बिष्णु के अवतार महर्षि वेदव्यास का जन्मदिन होने के कारण  इसे व्यास पूर्णिमा भी कहते हैं। गुरुपूर्णिमा अर्थात ज्ञान के स्रोत की उपासना का दिन।और जिस स्रोत से हमें यह ज्ञान प्राप्त  हुआ,हम भारतीयों की दृष्टि में सवसे बड़ा ,आदरणीय श्रध्दा स्पद या गुरु रूप में पूजनीय हैं।
                                      महर्षि वेदव्यास ने सम्पूर्ण विश्व को अथाह ज्ञान सम्पदा प्रदान की,अत इस शुभ पर्व पर उनका परिचय जानना भी आवश्यक हो जाता है। ऋषि पराशर एवं सत्यवती के पुत्र वेदव्यास का
जन्म जम्बुव्दीप में हुआ।जन्म से श्यामवर्ण का होने के कारण  उनका नाम कृष्ण व्दैपायन पड़ा। नर  और नारायण की साधनास्थली बदरीवन में तपस्या करने के कारण  उनका एक नाम वादरायण भी है। महर्षि व्यास नेलोगों की धारणा -शक्ति को कम होता हुआ देख मूल बेद को चार भागों में बिभाजित किया और मन्त्रों एवं सूक्तोंको संहिता रूप में व्यवस्थित किया।प्रत्येक संहिता की अनेक शाखा -प्रशाखा बनीं।वेदों का सम्पादन विस्तार से करने के कारण  ही उनका नाम वेदव्यास पड़ा। आदिपुराण  को लुप्त होते देख 18पुराण  और उपपुराणों की संरचना की।18000श्लोकों बाली श्रीमद्भागवत पुराण  की रचना की। उपनिषदों के सार  को समझने के लिए ब्रम्हसुत्र बनाया। महाभारत के रूप में भारत के सांस्कृतिक विश्वकोश की रचना महर्षि वेदव्यास ने की। जिसकेबिषय में कहा  जाता है-यन्ना भारते ,तन्ना भारते , अर्थात जो महाभारत में नहीं,बह  कहीं  नहीं। इसीलिए प्रसिध्द है-व्यासोच्छिष्टं जगत्सर्वं ।
                                                           इस प्रकार विश्व को अथाह ज्ञान संपदा देने के कारण  महर्षि वेदव्यास विश्वगुरु के रूप में बंदित हुए।और इस महान ऋषि के प्रति श्रध्दा प्रकट करने के लिए उनके जन्मदिन को व्यास पूर्णिमा के रूप में हम भारतीयों ने स्वीकार किया।तभी से इस दिन को अपने गुरु के प्रति समर्पण प्रकट करने के रूप में मनाया जाने लगा।





मंगलवार, 25 जून 2013

मन्त्रों का उच्चारण-

शब्दों की ध्वनि का अलग-अलग अंगों पर एवं वातावरण पर असर होता है। कई शब्दों का उच्चारण कुदरती रूप से होता है। आलस्य के समय कुदरती आ... आ... होता है। रोग की पीड़ा के समय ॐ.... ॐ.... का उच्चारण कुदरती ऊँह.... ऊँह.... के रूप में होता है। यदि कुछ अक्षरों का महत्त्व समझकर उच्चारण किया जाय तो बहुत सारे रोगों से छुटकारा मिल सकता है।
'अ' उच्चारण से जननेन्द्रिय पर अच्छा असर पड़ता है।
'आ' उच्चारण से जीवनशक्ति आदि पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। दमा और खाँसी के रोग में आराम मिलता है, आलस्य दूर होता है।
'इ' उच्चारण से कफ, आँतों का विष और मल दूर होता है। कब्ज, पेड़ू के दर्द, सिरदर्द और हृदयरोग में भी बड़ा लाभ होता है। उदासीनता और क्रोध मिटाने में भी यह अक्षर बड़ा फायदा करता है।
'ओ' उच्चारण से ऊर्जाशक्ति का विकास होता है।
'म' उच्चारण से मानसिक शक्तियाँ विकसित होती हैं। शायद इसीलिए भारत के ऋषियों ने जन्मदात्री के लिए 'माता' शब्द पसंद किया होगा।
'ॐ' का उच्चारण करने से ऊर्जा प्राप्त होती है और मानसिक शक्तियाँ विकसित होती हैं। मस्तिष्क, पेट और सूक्ष्म इन्द्रियों पर सात्त्विक असर होता है।
'ह्रीं' उच्चारण करने से पाचन-तंत्र, गले और हृदय पर अच्छा प्रभाव पड़ता है।
'ह्रं' उच्चारण करने से पेट, जिगर, तिल्ली, आँतों और गर्भाशय पर अच्छा असर पड़ता है।

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बुधवार, 29 मई 2013

मन का संयम

किसी राजा के पास एक बकरा था. एक बार उसने एलान किया की जो कोई एस बकरे को जंगल में चराकर तृप्त करेगा मैं उसे आधा राज्य दे दूंगा. किंतु बकरे का पेट पूरा भरा है या नहीं इसकी परीक्षा मैं खुद करूँगा. 

इस एलान को सुनकर एक मनुष्य राजा के पास आकर कहने लगा की बकरा चरना कोई बड़ी बात नहीं है.वह बकरे को लेकर जंगल में गया और सारे दिन उसे घास चरता रहा. शाम तक उसने बकरे को खूब घास खिलाई और फिर सोचा की सारे दिन इसने इतनी घास खाई है अब तो इसका पेट भर गया होगा तो अब इसको राजा के पास ले चलूँ. बकरे के साथ वह राजा के पास गया. राजा ने थोड़ी सी हरी घास बकरे के सामने रखी तो बकरा उसे खाने लगा. इसपर राजा ने उस मनुष्य से कहा की तूने उसे पेट भर खिलाया ही नहीं वर्ना वह घास क्यों खाने लगता. बहुतों ने बकरे का पेट भरने का प्रयत्न किया किंतु ज्योंही दरबारमें उसके सामने घास डाली जाती की वह खाने लगता.

एक सत्संगी ने सोचा इस एलान का कोई रहस्य है, तत्व है. मैंयुक्ति से काम लूँगा. वह बकरे को चराने के लिए ले गया. जब भी बकरा घास खाने के लिए जाता तो वह उसे लकड़ी से मार देता. सारे दिन में ऐसा कई बार हुआ. 

अंत में बकरे ने सोचा की यदि मैं घास खाने का प्रयत्न करूँगा तो मार खानी पड़ेगी. श्याम को वह सत्संगी बकरे को लेकर राजदरबार में लौटा. बकरे को उसने बिलकुल घास नहीं खिलाई थी फिर भी राजा से कहा मैंने इसको भरपेट खिलाया है. अत: यह अब बिलकुल घास नहीं खायेगा. कर लीजिये परीक्षा. राजा से घास डाली लेकिन उस बकरे ने उसे खाया तो क्या देखा और सूंघा तक नहीं. बकरे के मन में यह बात बैठ गयी थी की घास खाऊंगा तो मार पड़ेगी. अत: उसनेघास नहीं खाई.

यह बकरा हमारा मन ही है. बकरे को घास चराने ले जाने वाला जीवात्मा है. राजा परमात्मा है. मन को मारो, मन पर अंकुश रखो. मन सुधरेगा तो जीवन सुधरेगा. मन को विवेकरूपी लकड़ी से रोज पीटो. भोग से जीव तृप्त नहीं हो सकता. भोगी रोगी होता है. भोगी की भूख कभी शांत नहीं होती. त्याग में ही तृप्ति समाई हुई है