गुरुवार, 14 मार्च 2013

चूल्हा रोटी लडकी

 चूल्हा गोल
 रोटी गोल 
गोलगोल रोटी बेलती लडकी के
 सपने सारे गोल-गोल 
गोल-गोल रोटी बेलती लड़की देख रही है 
चंदा गोल सूरज गोल
 हैं लोगों की नज़रें भी गोल-गोल 
फिर एक दिन गोल-गोल रोटी बेलती लड़की 
बनकर औरत सोच रही है 
माथे की बिंदी गोल चूडी गोल, बाली गोल
 कौन अपना, कौन पराया सब कुछ है गोल-गोल
 गोल-गोल 
रोटी बेलती औरत कभी घर की धुरी बन 
कभी परिवार की परिधि पर 
घूमती रही ताउम्र गोल-गोल 
फिर एक दिन गोल-गोल रोटी बेलती औरत
 होकर बूढी सोच रही है 
दुनिया की हर बात गोल 
दिखती है हर चीज गोल 
 और फिर एक दिन बूढ़ी औरत 
खुद भी हो गई गोल-मोल।