शुक्रवार, 4 सितंबर 2015

 5 सितम्बर 1888 को जन्में सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने अपने प्रारंभिक जीवन में कहा था कि उनके सामने दो कुर्सियां रखी जायें। एक शिक्षक के लिये तथा दूसरी राष्ट्रपति केलिये तो वे शिक्षक की कुर्सी को चुनते। उन्होंने सेवा के रूप में शिक्षा का कार्य किया। बाद में आजाद भारत के उपराष्ट्रपति और राष्ट्रपति बने। शिक्षकीय कार्य करनेवाला यह शख्स उपराष्ट्रपति बना राष्ट्र उनकी जयंती को शिक्षक दिवस के रूप में मनाता है। शिक्षक के रूप में सेवा कर उंचे ओहदे में पहुॅचने वाले व्यक्ति में सिर्फ डां.राधाकृष्णन ही नहीं है बल्कि इनसे 8 वर्ष पहले जन्में मुंशी प्रेमचंद जी ने तो सारी जिंदगी शिक्षा का कार्य किया और साहित्य सृजन तो इतना किया कि उनकी रचनाओं को प्राथमिक, माध्यमिक ,उच्च, उच्चतर, स्नातक, तथा स्नातकोत्तर सभी स्तर के विद्यार्थी पढ़ते हैं। शिक्षा जगत के हर स्तर पर काम करनेवाले महान विभूति (जिनका जन्म 31 जुलाई 1880 को हुआ था) मुंशी प्रेमचंद जी की जयंती मनायी तक नहीं जाती है। डां राधाकृष्णन से 51 वर्ष पूर्व जन्मे महात्मा ज्योतिबा फूले ने शिक्षा से वंचितों को शिक्षा दे डाली। उन्होंने 1848 में पूना में लड़कियों के लिये पाठशाला खोली। 1848 से 52 वर्ष तक 4 वर्षों में उन्होंने विभीन्न स्थानों में 18 पाठशालाऐं खोलकर शिक्षकीय कार्य किया था। जिनके लिये शिक्षा का द्वार बंद था वैसे लोगों को शिक्षित बनाने का कार्य करनेवाले (11 अप्रैल 1827 को जन्में) महात्मा ज्योतिबा फूले की सुधि तक नहीं ली जाती है। इतिहास में देश की प्रथम महिला शिक्षिका सरोजिनी नायडू से लगभग 50 वर्ष पूर्व जन्मी शिक्षा में क्रांति लानेवाली श्रीमति सावित्री फूले को इतिहास में जगह तक नहीं दी गयी है।