शनिवार, 19 मई 2012
शुक्रवार, 18 मई 2012
आज सारी दुनियाँ संस्कृत भाषा के महत्व को स्वीकार कर रही है|अमेरिका संस्कृत को नासा के तकनीकी संदेशों के लिए अपनाना चाहता है|आज संस्कृत बर्णमाला कम्प्यूटर के लिए सर्वश्रेष्ठ भाषा मानी गयी है| ऐसे समय में यह देववाणी अपनी ही धरती पर स्वयं को अपमानित महसूस कर रही है| मेरठ के चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के कुलपति बिक्रमचन्द्र गोयल ने कहा-मैं नास्तिक हूँ,मेरा संस्कृत से कोई प्रेम नहीं| संस्कृत केवल हिन्दुओं की भाषा है,और ग्लोवलाइजेशन के दौर में इसका कोई मतलब नही रह गया है|इसलिए कुलपति वनने के बाद पहला फैसला यह किया कि विश्वविद्यालय में संस्कृत के एम फिल पाठ्यक्रम को बंद करवा दिया| उनकी ही तर्ज पर अव डाँ भीमराव अम्वेड़कर विश्वविद्यालय भी नए सत्र में संस्कृत पाठ्यक्रम को बंद करने की योजना बना रहा है|
अपनी ही भूमि पर राष्ट्रीय भावना को शर्मसार करने बाला यह कृत्य अपने पैरों में कुल्हाड़ी मारने जैसा है| यदि भारत को समझना है तो संस्कृत जानो|`यह बात पाश्चात्य विद्वान भी स्वीकार करते हैं| ऐसे में इस धरती को अपनी माँ मानने बाले विद्वत सुधीजन? इस विषय पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है|
शनिवार, 12 मई 2012
बंदेमातरम
3 नवंबर से 6 नवंबर 2009 तक देवबंद में चले देश के मुस्लिमों के एक बडे सम्मेलन में देश के गृहमंत्री चिदंबरम और प्रसिद्ध योगगुरु बाबा रामदेव को भी अतिथियों के रुप में आमंत्रित किया गया था। जहां बाबा रामदेव ने अपनी योगक्रियाओं का भी प्रदर्शन किया। इस सम्मेलन में 3 नवंबर को जो पच्चीस प्रस्ताव पारित किए गए उनमें एक प्रस्ताव वंदेमातरम् को गैर-इस्लामिक करार देने का भी था। इस समय जब देश में वंदेमातरम् का कोई मुद्दा ही नहीं था तब देवबंद में 10,000 से अधिक मौलवियों के समर्थन से इस तरह का फतवा जारी करना और फिर सम्मेलन के चौथे दिन आमंत्रित अतिथि बाबा रामदेव के बारे में यह जानते हुए भी कि उनके शिविरों में वंदेमातरम् गाया जाता है, उनको अपमानित करनेवाला यह आदेश जारी करना कि बाबा रामदेव के शिविरों में भाग न लें क्योंकि, वहां वंदेमातरम् गाया जाता है। यह साफ-साफ दर्शाता है कि यह सब जानबूझकर किया गया कृत्य है और इससे राजनीति की बू आती है। अन्यथा क्यों नहीं वे उन मुस्लिम लोगों-नेताओं को इस्लाम से खारिज करते जिन्होंने फतवे का विरोध किया, कर रहे हैं या वंदेमातरम् गाते हैं। उदा. प्रसिद्ध गायक-संगीतकार ए. आर. रहमान जिन्होंने तो एक अल्बम ही वंदेमातरम् पर निकाला था जिसकी रिकार्ड तोड बिक्री भी हुई थी। इस परिप्रेक्ष्य में बाबा रामदेव की यह घोषणा निश्चय ही स्वागत योग्य है कि 'मेरे जो कार्यक्रम होते हैं उनमें तिरंगा फहराया जाता है परंतु वंदेमातरम् प्रतिदिन नहीं गाया जाता था। परंतु, अब वंदेमातरम् का गान प्रतिदिन होगा, नियमित रुप से होगा।" इसके लिए वे निश्चय ही धन्यवाद के पात्र हैं।
सोमवार, 7 मई 2012
ग़ीत
चाहे विबश लेखनी हो पर,
मन तो गाता ही रहता|
कितने-कितने संतापों को
कितने-कितने संतापों को
हँस-हँस कर सहता रहता|
लगा कल्पना के पंखों को,
सरल दूर नभ में उड़ना|
सरल नहीं पर पल-पल,मिट-मिट,
गीत-मालिका में गुंथना|
कहता कौन गीत में सागर-
की लहरों का कम्पन है|
गीतों में उर की लहरों का
क्या कुछ कम स्पंदन है|
सदस्यता लें
संदेश (Atom)