शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2012

कुपात्र को कौन दे

एक संत प्रवचन कर रहे थे की ज्ञान,विवेक,शक्ति और भक्ति परमात्मा सत्पात्र को ही देता है अज्ञानियों को नहीं।यह सुनकर एक महिला नाराज होकर बोली-तो इसमें भगवान की क्या विशेषता रही,यदि वह अज्ञानियों को यह सव देता तो उससे संसार में अच्छाई का विकास होता।उस समय तो वे संत चुप हो गए किन्तु दूसरे दिन सवेरे ही उसी मोहल्ले के एक मुर्ख व्यक्ति को उस महिला के आभूषण माँगने के लिए भेजा,महिला ने उस व्यक्ति को आभूषण देने से मना कर दिया।बाद में संत द्वारा माँगने पर अपने आभूषण नि:संकोच दे दिए।संत ने पूछा-अभी दूसरे व्यक्ति को आपने अपने आभूषण क्यों नहीं दिए।महिला बोली-मूर्खों को अच्छी वस्तुएं भी कोई देता है।तुरंत संत ने समझाया-इसीलिए परमात्मा भी कुपात्र को अपनी अच्छी वस्तुएं नहीं देता।महिला को अपने प्रश्न का उत्तर मिल गया। 

तेजोमय भारत

भारत अर्थात प्रकाश या ज्ञान में निरंतर संलग्न रहने बाला।भारत नाम से ही उसके गुण प्रकट होते हैं।दूसरों को ज्ञान या प्रकाश देना यह कार्य भारत का हमेशा से रहा है।यह भाव बहाँ रहने बाले लोगों के व्यवहार से प्रकट होता है।अपनी सेवाबृति के कारण यहाँ के लोगों ने औरों की भी रक्ष1 की है।आध्यात्मिक शिक्ष। और स्वास्थ्य रक्ष। की दृष्टि से भारत के लोग सदैव से और देशों में जाते रहे हैं।यहाँ की आयुर्वेद चिकित्सा सवसे प्राचीन हैं।विश्व को साहित्य, कला, विज्ञान, गणित आदि का अतुल ज्ञान भण्डार देने बाला भारतबर्ष ही है।विश्व में आज भी गीता पठन को महत्त्व दिया जा रहा है।हमारे देश की आई.आई टी इंजीनियर्स के रूप में आज की युवा पीढ़ी की धाक सम्पूर्ण विश्व में है।प्रक्षेपण केंद्र के रूप में बिज्ञान की अनेक तकनीकों के कारण भारतीय प्रतिभा आज भी अपना लोहा विश्व में मनवा चुकी है।वास्तव में"हिन्दुधर्मो विजयताम"यही अंतिम सत्य है।इसीलिए संस्कृति, कला, विज्ञान,नैतिकता और आध्यात्मिकता की दृष्टि से भारत तेजोमय था,है,और रहेगा। 



बुधवार, 22 फ़रवरी 2012

समय का सदुपयोग

एक कलादीर्घा में चित्र प्रदर्शिनी चल रही थी।अनेक प्रसिध्द कलाकारों के चित्र प्रदर्शित किये गए थे।कलाकार भी वहीं उपस्थित थे।एक चित्र को दर्शक बड़े कौतुहल से देख रहे थे।चित्र में एक मानव के चेहरे को घने बालों से ढक रखा था और उसके पैरों पर पंख लगे हुए थे।एक प्रबुध्द दर्शक ने कलाकार से पूछा-यह किसका चित्र है?कलाकार ने कहा-समय का।इसका मुंह क्यों छिपा हुआ है? कलाकार ने उत्तर दिया-इसलिए की जव अवसर(समय) हमारे पास आता है तो हम पहिचान नहीं पाते।"और इसके पैरौ में पंख क्यों लगे हैं? मधुर मुस्कान के साथ कलाकार ने उत्तर दिया"इसलिए कि हाथ आया अवसर (समय)उड़ जाता है और कभी लौटकर नहीं आता" इसलिए हमें समय को पहिचान कर उसका सदुपयोग करना चाहिए। 

मंगलवार, 21 फ़रवरी 2012

देश को जोड़ना

एक दिन विनोवा जी के पास कालेज के कुछ छात्र आए।विनोवा जी ने उन्हें 
कागज़ के कुछ टुकडे देते हुए कहा-इन टुकड़ों से भारत का नक्शा बनाना है।
विध्यार्थी बहुत देर तक सिर खपाने के बाद भी उन टुकड़ों को जोड़कर भारत का नक्शा नहीं बना सके।पास ही एक नौजवान युवक बैठा हुआ यह सब देख रहा था।कुछ साहस करके बिनोवा जी से बोला-आप यदि आज्ञा दें तो मैं इन टुकड़ों को जोड़ दूँ।
                            बिनोवा जी की आज्ञा पाकर कुछ ही देर में उस युवक ने वे टुकडे जोड़कर भारत का नक्शा बना दिया।बिनोवा जी ने उससे पूछा-तुमने इतनी जल्दी इन टुकड़ों को कैसे जोड़ दिया?युवक ने कहा-इन टुकड़ों में एक तरफ भारत का नक्शा है तथा दूसरी तरफ आदमी का।मैंने आदमी को जोड़ा,भारत अपने आप बन गया।
                                         यह सुनकर विनोबा जी बोले- ठीक है,यदि हमें देश  को जोड़ना है तो पहले आदमी को जोड़ना पडेगा।आदमी जुड़ेगा तो देश  अपने आप जुड़ जाएगा।  

शनिवार, 18 फ़रवरी 2012

देशभक्ति का परिचय नित्य जीवन में

आज सर्वत्र देशभक्ति की वात कही जाती है।किन्तु इस देशभक्ति का मापदंड क्या है?वास्तव में देश के लिए,अपनी मातृभूमी के लिए श्रद्धा भक्ति और समर्पण का भाव ही देशभक्ति है।इस देशभक्ति का परिचय  हमारे नित्य के व्यवहार में भी मिलना चाहिए।जैसे-हमारा भोजन शुद्ध और सात्विक हो।फास्ट फ़ूड और कोल्ड ड्रिंक जैसी शरीर को हानि पहुचाने वाली चीजों से हम दूर रहें।हमारा बेश हमारा परिधान अपनी संस्कृति के अनुरूप हो।क्योंकि व्यक्ति जैसा वेश धारण करता है उसका मन भी बैसा ही वन जाता है।मातृभाषा के प्रति श्रद्धा का भाव हो।अपने महापुरुषों,आस्थाकेंद्रों परम्पराओं, रीति-रिवाज और पर्वों के लिए मन में श्रद्धा का भाव  हो।धन का लालच, सुख या भोग का लालच, भ्रष्टाचार, चारित्रिक दुर्वलता, मानसिक गुलामी से स्वंय को दूर रखें।देश की अखण्डता, जीबनमुल्यों की सुरक्षI   के लिए संकल्प शक्ति की दृढ़ता हमारे आचरण का अंग हो, तभी भारत माँ का गौरव बढेगा और हमारा देश पुन:विश्व गुरु का सम्मान प्राप्त कर सकेगा।

शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2012

देशभक्ति

फ्रान्स पर अधिकार करने के वाद जर्मन सरकार ने फ्रेंच की जगह जर्मन भाषा पढाने का आदेश दिया।एक वार पाठशाला के निरीक्षण के लिए आयी जर्मन की रानी ने पढाई से प्रसन्न हो एक फ्रेंच कन्या से इनाम माँगने के लिए कहा।कन्या ने कहा-हमारी पाठशाला में जर्मन भाषा के स्थान पर हमारे देश की फेंच  भाषा पढाई जाय। महारानी द्वारा अन्य कीमती वस्तुयों का प्रलोभन दिए जाने पर उस कन्या ने कहा-महारानी जी, गुलाम शरीर और आत्मा के लिए हमारा श्रंगार या अन्य कोई कीमती वस्तु वेकार है।उसकी देशभक्ति की मन ही मन प्रशंसा करते हुए रानी ने उस पाठशाला में फ्रेंच पढाये जाने का आदेश दे दिया।   

बुधवार, 15 फ़रवरी 2012

नित्य साधना की ज्योति से

               नित्य साधना की ज्योति से,राष्ट्रदेव का ध्यान धरें 
               राष्ट्रधर्म की ध्वजा हाथ ले, भारत का उत्थान करें 
                दिग दिगन्त जयगान करें,दिग दिगन्त जयगान करें।।


                                                धर्मतत्व की कर्मभूमि यह 
                                                   ऋषि-मुनियों की पुन्यधरा 
                                                      सप्त सरित के निर्मल जल से 
                                                        ह्रदय हमारा शुद्ध वना 
                                                         दिव्यमार्ग पर चलते-चलते 
                                                          जीवन को हम सार्थ करें।\१।।
                 शाश्वत संस्कृति धर्म धरा पर  
                   संकट की का ली छाया 
                    भोगवाद के भ्रमजालों में   
                      सत्व हमारा क्यों खोया 
                        भारत माँ के व्रतधारी हम 
                         स्वार्थभाव का त्याग करें।।२।।                 
                                                                   जागे जननी जागे भारत 
                                                                     शक्ती का उद्घोष करें 
                                                                       होगी विजय सुनिश्चित सत की 
                                                                         ऐसा हम व्यवहार करें 
                                                                           सुप्त शक्ति को जागृत करने 
                                                                             जन मन में संचार भरें।।३।\  

मंगलवार, 14 फ़रवरी 2012

ओजोन की संतुलित मात्रा आवश्यक क्यों

सूर्य की कुछ किरणें आक्सीजन को ओजोन में परिवर्तित कर देती हैं।सूर्य की हानिकारक किरणों से जीव राशि का  रक्षण ओजोन की परत द्वारा ही होता है।विश्व में औद्धोगीकरण की वृद्धि से ओजोन का भी क्षरण हुआ है जिसका प्रभाव प्राणी जगत पर पडा है। ओजोन के क्षरण से शरीर पर चकत्ते पड़ जाते हैं।शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है।तीन तरह के त्वचा के कैंसर   होने लगते हैं, इसलिए आज धूप स्नान हानिकारक हो रहा है।रक्त प्रवाह बाधित होने से शरीर में सूजन आ जाती है।सनवर्क होने लगता है।भूमध्य रेखीय क्षत्रों में गोरे लोगों को कैंसर होने की संभावना बढ जाती है।ओजोन के क्षरण से शरीर पर झुर्रियाँ जल्दी पड़ जाती हैं।ब्लड कैंसर और बेस्ट कैंसर बढ जाते हैं। १०% ओजोन की कमी से २० से ३०% तक कैंसर की संभावना बढ जाती है।अमेरिका में काफी लोग इस रोग से मर रहे हैं।आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैड में भी इस प्रकार के केस १०% बढ गए हैं।ओजोन की कमी के समान ही ओजोन की अधिकता भी हानिकारक है।ओजोन की अधिकता से आखों के रोग बढ जाते हैं।फेफड़ों का केंसर भी ओजोन की अधिकता से होता है।ओजोन ज्यादा होने पर नींद और आलस्य अधिक रहता है।जल में मछलियाँ मर जाती हैं।जैव संपदा और वनस्पति पर पीले चकत्ते और रूखापन आ जाता है।क्लोरोफींन की कमी हो जाती है।औद्योगीकरण से पौधे रोगग्रस्त हो जाते हैं।वायुमंडल के तापमान पर प्रभाव, बर्षा में एसिड की मात्रा में बढोत्तरी, समस्त प्राणी जगत की आयु कम हो जाती है\अत; ओजोन की कमी या अधिकता दोनों ही हानिकारक है। 

शनिवार, 11 फ़रवरी 2012

गीता में पर्यावरण पर विचार

गीता में परस्पर पोषण और समभागीदारी का सिद्धांत प्रतिपादित हुआ है।उसे यज्ञ माना गया है।यज्ञ साधना का प्रयोजन प्रकृति के चक्र को वनाये रखना है।इसके लिए हितकर और उपयोगी वस्तुयों का आदान-प्रदान आवश्यक है।जो इस सिद्धांत का उल्लंघन करता है वह चोर है। गीता के श्लोक ३/१२ में इसका उल्लेख किया  गया   है। प्रकृति हवा और शुद्ध पानी देती है।पेड़ वनस्पति हमें भोजन देते हैं। हमारा कर्तव्य है कि हबा को साफ रखें। जव हम पानी प्रदूषित करते हैं तो समूचा चक्र खंडित होता है।इसलिए योगीराज कृष्ण कहते हैं कि ऐन्द्रिक  उपभोग को नियंत्रित करो।जो प्रकृति के चक्र को बाधित करता है वह पाप कर्म करता है\ जव हम सवका हित अपने सामने रखते हैं तो दोहन की अवधारणा सामने आती है।उदाहरण के लिए-वध केवल एक वार किन्तु दूध से पोषण बर्षों तक प्राप्त किया जा सकता है।इसलिए हिन्दू गाय से दूध प्राप्त कर धन्य होता है।गीता के यज्ञ साधना के मूल में यही सिद्धांत है कि प्रकृति का दोहन तो हो किन्तु शोषण कदापि नही। गीता का कर्म सिद्धांत , पाप की अवधारणा ये सभी पर्यावरण संरछन के ही उपाय हैं।  

शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2012

स्वस्थ्य आहार विहार

स्वस्थ्य रहने के लिए आहार क्यों,कव,क्या और कितना करना चाहिए? यह जानना अति आवश्यक है। वास्तव में जीवन के लिए भोजन हो,ना कि भोजन के लिए जीवन।आहार उचित रीति से वनाया और परोसा जाना चाहिए।भोजन करते समय परिवार का वातावरण शांत हो तभी वह शरीर को लाभ पहुचाता है।ऋतू के अनुसार आहार लेना  स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है। आहार पौष्टिक अर्थात ताजा, उचित,रसपूर्ण और नियमित समय पर लिया जाय।अन्न ही ब्रह्म है,यह समझकर भोजन करना चाहिए।विहार में मुख्य रूप से हमारी दिनचर्या,निद्रा,हमारी वेशभूषा और परिवार का वातावरण शामिल होता है।ऋतू परिवर्तन के साथ ही अपनी  दिनचर्या और वेशभूषा में आवश्यक परिवर्तन किये जाने चाहिए। निद्रा की उचित स्थिति अर्थात कव सोना और कव नहीं सोना,कितना और कैसे सोना इसकी जानकारी भी होनी चाहिए।स्वास्थ्य सही रखने के लिए शरीर विज्ञान की जानकारीऔर घरेलू उपचार की जानकारी होनी ही चाहिए।गृहसज्जा, सुशोभन,स्वच्छता,व्यवस्था आदि कार्यों में कुशलता लाना,उचित वोलना, अपने हावभावों का ध्यान रखना,एवं स्वास्थ्यप्रद आदतें डालना स्वस्थ्य आहार-विहार के लछन हैं।  

गुरुवार, 9 फ़रवरी 2012

व्यक्तित्व की श्रेष्ठता

व्यक्ति की पहिचान उसके व्यक्तित्व से ही होती है। आकर्षक व्यक्तित्व से समाज में लोकप्रियता मिलती है।व्यक्तित्व जन्मजात नहीं,बल्कि उसे बदला जा सकता है। श्रेष्ठ व्यक्तित्व के लिए व्यक्ति के मन में अपने जीवन का लछ्य स्पष्ट होना चाहिए।इतना ही नहीं लछ्य प्राप्ति के लिए निरंतर प्रयास भी आवश्यक है।अपने कार्य के प्रति निष्ठा होनी चाहिए।स्व- सहानुभूति को अलग रख आत्ममंथन करना व्यक्तित्व विकास के लिए अति आवश्यक है।मानसिक ऊर्जा को नियमित कर चिंतन दिशा को सदैव स्रजनात्मक रखना चाहिए।महापुरुषों के जीवन से शिच्छा,अच्छे लोगों की संगति व्यक्तित्व विकास का आवश्यक आयाम है।स्वाध्याय करने से ज्ञान की वृध्दि होती है।कथनी-करनी में एकरूपता होने से लोग बात पर विश्वास करते हैं। इन्हीं सभी श्रेष्ठ गुणों के संवर्धन से ही व्यक्तित्व श्रेष्ठ वनता है।   

मंगलवार, 7 फ़रवरी 2012

अर्जुन का अहंकार

महाभारत समाप्त हो चुका था।कृष्ण रथ को युध्दभूमि से वाहर ला रहे थे।रथ में वैठा अर्जुन विजय पर फूला नहीं समा रहा था।भीष्म द्रोण कर्ण जैसे महारथियों का विनाश असाधारण बात थी।अर्जुन को लगा यह उसके बाहुवल का प्रताप है।कृष्ण उसके मन की बात ताड़ गए।युध्द्छेत्र से बाहर आने पर कृष्ण ने अर्जुन से कहा कि बह रथ से उतर जाए। परन्तु गर्वोन्मत्त अर्जुन बोला कि पहले सारथी रथ से उतरता है फिर योध्दा।कृष्ण ने बार-बार अर्जुन से अनुरोध किया परन्तु अर्जुन नहीं माना।क्रुध्द होकर कृष्ण ने अर्जुन को रथ पहले उतरने का आदेश दिया।अर्जुन उतर गया तत्पश्चात कृष्ण जब रथ से उतरे तो रथ में आग लग गयी।देखते ही देखते रथ केवल राख का ढेर रह गया। अर्जुन ने कृष्ण से इसका कारण पूछा तो उन्होंने कहा-तुम विजयी होकर भी भीष्मादी के बाणों की छमता नहीं समझते। भीष्म द्रोण कर्ण आदि के अग्निबाणों से यह रथ पहले ही जर्जर हो चुका था।अगर पहले में रथ से उतरता तो तुम रथ के साथ ही भस्म हो जाते।और इस बिजय का कोई अर्थ ना रहता।अर्जुन का सारा अहंकार छनभर में समाप्त हो गया। 

रविवार, 5 फ़रवरी 2012

चलने का वर दे दो

चलने का वर दे दो चाहे पथ कंटकमय हो चाहे पथ कंटकमय हो ।।

              मैं पुनीत पथ का राही वन 
              सुख संसृति खो ले विद्धुत कण 
                जीवन ज्योति जलाऊ जल जल 
          जलने का वर दे दो चाहे जलन दाहमय हो।।१।।

                दावानल तूफान भले ही 
                 आयें सम्मुख मुझे हटाने 
                   हटूं नही मर मिटू भले ही 
            मरने का वर दे दो चाहे मरण दाहमय हो।।२।।

                  पंथी बढ़ता स्वर्ग डगर पर 
                    तेरे पद चिन्हों पर पग रख 
                      बढ़ती शत-शत पांति नमित हो 
              बढ़ने का वर दे दो चाहे गिरने का भय हो।।३।।

                     काँटों से कट जाए कदम ही 
                       चलें  उन्हीं काँटों पर पुनि पुनि  
                          कट कट अंग गिरे धरती पर 
                सहने का वर दे दो चाहे तिल-तिल कर छय हो।।४।।  








शनिवार, 4 फ़रवरी 2012

माँ की वन्दना

आराधना और बंदना के स्वर हे माँ सुन लीजिये 
वस ज्ञान हमको दीजिये माँ भीरुता हर लीजिये ।

                    हमको सुपथ पर ले चलो सर्वत्र गुण उपलब्ध हों 
                    हम तिमिर तापों से वचें आशीष हमको दीजिये ।

हम नेत्र कर्णेव वाक सुख देखे सुने वोले सदा 
हम कुटिल तापों से वचें हे मात करुणा कीजिए ।

                    मै इन्द्र हूँ मेरी इन्द्रियाँ वश में रहें मेरे सदा 
                    ये परास्त हो सकती नहीं यह भावना भर दीजिये ।

झोली पसारे हम सभी दर पर उपस्थित हैं सभी 
हम भक्ति भिच्छा माँगते हे मात हमको दीजिये ।।      

शुक्रवार, 3 फ़रवरी 2012

कथनी और करनी में सामंजस्य क्यों हो

          यद्यपि कथनी और करनी में पूर्णत:समानता संभव नहीं ,किन्तु फिर भी हमें सोच-समझ कर वोलना चाहिए ।क्योंकि कथनी और करनी में समानता होने से हमारी वात का सामने वाले पर अच्छा प्रभाव पड़ता है।साथ ही विश्वास होने से व्यवस्था भी ठीक रहती है।कथनी करनी एक होने पर कहने वाले की वाणी प्रभावशाली हो जाती है।इससे श्रेष्ठ चरित्र का निर्माण होता है।एक सी वात कहने वाले के प्रति और लोगों के मन में श्रद्धा उत्पन्न हो जाती है।राजा दशरथ एबं मोरद्वजआदि महापुरुषों ने वचन पूरा करने के लिए ही अपने प्राणों की भी परवाह नहीं की।इसलिए जो संकल्प लिया जाय वह व्यवहार में भी हो। 

गुरुवार, 2 फ़रवरी 2012

कुछ विचार करें

       आज की वर्तमान परिस्थितियों में पर्यावरण को कैसे वचाया जा सकता है । पर्यावरण के घटक कौन -कौन से हैं ? जल का दुरुपयोग कैसे रोका जा सकता है। नगर मौहल्ले गली को कैसे स्वच्छ रखा जा सकता है? पोलीथिन का उपयोग स्वयं के व्यवहार में कैसे कम करें?मानसिक-बौद्घिक स्वच्छता का विकास कैसे हो? परिवार को संस्कारित करने में हमारी क्या भूमिका हो सकती है ? सांस्कृतिक प्रदूषण को रोकने के लिए क्या किया जा सकता है ? इन सव कार्यों में हमारा क्या योगदान है और इस मापदंड पर हम कितने खरे उतरते   है?यह विचारणीय है।