मासिक गीत-
गीत १- दीप यह जलता रहे
त्याग और तेजस्विता का दीप यह जलता रहे।
ज्ञान और संस्कार पथ पर।
सेविका चलती रहे ध्येय पथ पर बढती रहे,
सूर्य से ले अग्नि ज्वाला,सागर से गाम्भीर्य गहरा,
धरणी से ले धैर्य अनुपम,गगन सा विस्तार न्यारा,
गंग का निर्मल सलिल सा,परित नित गड़ती रहे।
भ्रष्टता के भंबरपथ में, कंटकों का जाल फैला,
स्वार्थ के मोहक पलों में,डूबता जन-मन विषेला,
राष्ट्र भक्ति कसक मन में,चरित नित गड़ती चले।२।
नित्य शाखा प्रार्थना के,स्वर गहन मुखरित रहें,
हिन्दू मन संस्कार लेकर,यज्ञमय जीवन करें,
वीरवर बृत्ति निरंतर,जय-विजय मिलती रहे।३।।
गीत २- नित्य साधना की ज्योति से
नित्य साधना की ज्योति से,राष्ट्रदेव का ध्यान धरें
राष्ट्रधर्म की ध्वजा हाथ ले, भारत का उत्थान करें
दिग दिगन्त जयगान करें,दिग दिगन्त जयगान करें।।
धर्मतत्व की कर्मभूमि यह
ऋषि-मुनियों की पुन्यधरा
सप्त सरित के निर्मल जल से
ह्रदय हमारा शुद्ध वना
दिव्यमार्ग पर चलते-चलते
जीवन को हम सार्थ करें।\१।।
शाश्वत संस्कृति धर्म धरा पर
संकट की काली छाया
भोगवाद के भ्रमजालों में
सत्व हमारा क्यों खोया
भारत माँ के व्रतधारी हम
स्वार्थभाव का त्याग करें।।२।।
जागे जननी जागे भारत
शक्ती का उद्घोष करें
होगी विजय सुनिश्चित सत की
ऐसा हम व्यवहार करें
सुप्त शक्ति को जागृत करने
जन मन में संचार भरें।।३।।
सुभाषितम-
अध्यापनं ब्रह्म यज्ञ: पितृ यज्ञस्तू तर्पणम।
होमो देवो बलिर्भूतो नृयज्ञो$तिथि पूजनम।।१।।
अर्थात-पदना पदाना यह बह्म यज्ञ,पितरों का तर्पण पितृ यज्ञ,होम करना देवयज्ञ,बलि देना भूतयज्ञ ,अतिथि पूजा मानव यज्ञ है।
प्रिय वाक्य प्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति जन्तव:।
तस्मात् तदेव वक्तव्यं वचने का दरिद्रता।।२।\
अर्थात-प्रिय वाक्य बोलने से सभी लोग संतुष्ट हो जाते हैइ इसलिए हमेशा प्रिय ही बोलना चाहिए।मधुर बचन बोलने में क्या दरिद्रता।
विद्या विवादाय धनं मदाय शक्ति परेषां परपीडनाय।
खलस्य साधोर्विपरीतमेतत ज्ञानाय दानाय च रक्षणाय।।३।।
अर्थात-दुष्टों के लिए विद्या विवाद के लिए,धन मद के लिए और शक्ति दूसरों को पीड़ा पहुचाने के लिए होती है।इसके विपरीत सज्जनों के पास विद्या ज्ञान के लिए,धन दान के लिए और शक्ति दूसरों की रक्ष। के लिए होती है।
*चर्चा के विषय
बाल शाखा के लिए-
१-शिक्ष। का समाज में प्रभाव-
#शिक्ष। समाज की प्रगति में योगदान करती है।
# शिक्ष। से अंधविश्वासों की समाप्ति होती है।
# समाज की संस्कृति का संरक्षण।
# समाज के आदर्शों की स्थापना में योगदान देना।
# सामाजिक नियंत्रण।
# सामाजिक परिवर्तन की संवाहक।
२-पर्यावरण प्रदूषण का बच्चों पर प्रभाव-
# जल प्रदूषण विषैले पदार्थ जल में मिल जाने से होता है।ऐसे जल को पीने से हैजा,डायरिया,और पीलिया आदि हो जाता है।
# वायु प्रदूषण कारखानों,बाहनों,धरों आदि से निकलने बाली गैसों के वायु में मिलने से होता है। इससे आँखें,अस्थमा,अंधापन,फेंफड़े आदि खराव हो जाते है।
# ध्वनी प्रदूषण जैसे-मशीनों,सभाओं में तेज स्वर लाउडस्पीकर ,टी.वी.के शोर से मानसिक संतुलन विगड़ सकता है।
# रासायनिक खादों और कीटनाशकों का अधिक मात्रा में प्रयोग करने से भूमि प्रदूषण होता है। इससे अन्न,फल, सब्जी,दालें प्रदूषित हो जाती है\
# प्लास्टिक पोलोथिन,परमाणु वम, परमाणु ऊर्जा प्रदूषण आदि के व्दारा रासायनिक प्रदूषण होता है।इसके प्रभाव से लम्बी बीमारी पैदा हो जाती हैजिसका प्रभाव कई पीदियों तक रहता है\
तरुणी शाखा के लिए-
१-समिति प्रार्थना का महत्त्व-
#समर्पण के लिए प्रार्थना की जाती है\
#बार-बार किसी चीज को कहने से बह सिध्द हो जाती है\
# राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण करने के लिए प्रार्थना कही जाती है\
# ईश्वर का संबल मिलते ही हमारा आत्मबल मजबूत होने लगता है\
# प्रार्थना से तात्पर्य है- जीवात्मा की परमात्मा के समक्ष निज भाव की अभिव्यक्ति।
#प्रार्थना से अंतर्मन की सोई हुई ऊर्जा सक्रिय हो जाती है\
# प्रार्थना एक प्रकार का योग है जिसका अभ्यास प्रतिदिन करना चाहिए।
२- शाखा संजीबनी-
# शाखा में हम तीन वातें सीखते हैं-संस्कार,भाव जागरण और गुण बर्धन।
# शाखा ब्दारा हम जीवन में अनुशासन सीखते हैं।
# निस्वार्थ सेवा करना भी हम शाखा से ही सीखते हैं।
# शाखा से नेतृत्व करने की क्षमता बिकसित होती है।
# समाय पालन भी शाखा से आता है\
# शारीरिक क्षमता, बौध्दिक विकास एवं ईमानदारी की भावना भी शाखा से हमें प्राप्त होती है।
महिला शाखा के लिए-
१-वर्ग की तैयारी-
# जून के महीने में ग्रीष्मकालीन वर्ग लगता है अत: पहले से अन्य कोई कार्यक्रम ना रखा जाए।
#वर्ग की तैयारी के लिए अप्रैल से वैठकें लेनी प्रारम्भ कर देनी चाहिए।
# उन बहिनों से संपर्क-जो व्यवस्था में पूरे समय सहयोग दे सके।
# स्वस्थ्य बहिनें ही वर्ग में आयें।
#अपना गणवेश निकाल कर अच्छे से धोकर एवं परस करके मई माह में ही तैयार कर लें\
# सुखद अनुभव बहिनों को सुनाये ताकि वे वर्ग में आने का मन वनाएं।
२-समिति उत्सव-
# समिति में मुख्य रूप से पांच उत्सव मनाये जाते हैं।
# नवबर्ष चैत्र माह की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मनाया जाता है।
# गुरू पूर्णिमा आषा ढ मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है\इसे व्यास पूर्णिमा भी कहते हैं।
# रक्ष। बंधन,यह श्रावण मॉस की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस दिन परम पूज्य भगवा ध्वज को भी राखी बांधते हैं।
# समिति स्थापना का दिन विजयादशमी हम समिति की बहिनें उत्सव के रूप में मनाती हैं\
# सूर्य व्दारा द क्षि णायण से उत्तरायण की और प्रस्थान अर्थात मकर संक्रांति उत्सव।
बोध कथा
१-व्यर्थ वस्तु की खोज- एक ऋषि के पास एक युवक ज्ञान प्राप्ति के लिए पहुंचा।ज्ञान प्राप्ति के बाद उसने
दक्षिणा देनी चाही।गुरू ने बह बस्तु मांगी जो बिलकुल ब्यर्थ हो। युवक ब्यर्थ बस्तु की खोज में निकल पडा \उसने माटी की और हाथ बढाया।मिट्टी चीख पड़ी- तुम मुझे ब्यर्थ समझ रहे हो। धरती का समस्त बैभव मेरे गर्भ से ही प्रकट होता है। शिष्य पत्थर की और बढा, उसने कहा- इन भवनों,नदी नालों और पर्वतों में क्या मैं नही हूँ? धूमते-धूमते उसे कूड़े का देर मिला, उसने घृणा के साथ जैसे ही गंदगी की और हाथ बढाया तो आवाज आयी- क्या मुझसे बदिया खाद धरती पर मिलेगी? ये अन्न, फल, सब्जी सब मेरे ही प्रभाब से उगते हैं। युवक सोच में पड गया कि जब मिट्टी, पत्थर, कूड़े का देर आदि सब इतने उपयोगी हैं तो व्यर्थ क्या हो सकता है? बह पुन: गुरू के पास गया और क्षमा मांगकर उनसे निवेदन किया की बह दक्षिणा में अपना अहंकार देने आया है।
२-जीवन का सत्य-एक व्यक्ति साधू के पास आकर बोला-स्वामी जी मुझे कोई ऐसा उपदेश दीजिए जो जीबन भर याद रहे।मेरै पास इतना समय नही है जो मै रोज आपके पास आऊँ और आपका उपदेश सुनूँ । साधू उसे आश्रम के निकट एक श्मशान में ले गए,बहां कुछ लोग एक सेठ का शव लेकर पहुंचे।फिर कुछ देर बाद एक दरिद्र का शव भी लाया गया। दोनों की चिताएं बनायी गयीं और फिर अग्नि को समर्पित कर दिया गया\साधू ने उस व्यक्ति को अगले दिन आने के लिए कहकर घर जाने को कहा। बह व्यक्ति अगले दिन श्मशान भूमि में पहुंचा।साधू महाराज पहले से ही बहां उपस्थित थे। उन्होंने एक मुट्ठी में सेठ की और दूसरी मुठ्ठी में दरिद्र की चिता की थोड़ी-थोड़ी राख ली,फिर उस आदमी को बह राख दिखाते हुए बोले- इन दोनों मुठ्ठियों में ही तुम्हारा उपदेश छुपा हुआ है। अमीर हो या गरीब,अंत में दोनों एक समान हो जाते हैं।उनमें कोई अंतर नहीं रह जाता। जीबन की सार्थक परिभाषा समझ बह ब्यक्ति धन्य हो गया।
प्रेरक प्रसंग
१-सौभाग्यशाली कौन-चित्रकूट में श्री राम और सीता एक वृक्ष के नीचे वैठे थे। श्रीराम ने कहा-यह वृक्ष कितना सौभाग्यशाली है। इसे एक लता ने दक रखा है, मैं भी इसी की तरह तुम्हें पाकर धन्य हो गया हूँ।सीता जी ने उत्तर दिया-वृ क्ष नहीं यह लता सौभाग्यशाली है जिसे इस वृ क्ष ने शरण दे रखी है, ठीक उसी प्रकार जैसे मुझे आपका सहारा मिला हुआ है\ तभी बहां लक्ष्मण आ पहुंचे। सीता ने उनसे प्रश्न किया-बताओ यह वृ क्ष सौभाग्यशाली है या लता? लक्ष्मण बोले-न यह वृ क्ष सौभाग्यशाली है और न यह लता , बल्कि इसकी छाया में वैठने बाले पथिक सौभाग्यशाली हैं, जैसे मैं आप दोनों की छाया में सुखी हूँ।
२-आदर्शवादी शिक्षक- प्रसिध्द क्रांतिकारी सूर्यसेन बंगाल के एक बिद्यालय में अध्यापक थे।उन दिनों बिद्यालय में परी क्ष। चल रही थी। जिस कमरे में सूर्यसेन की ड्यूटी लगी थी,उसमें प्रधानाध्यापक का पुत्र भी परी क्ष। दे रहा था। सूर्यसेन ने उसे नक़ल करते हुए पकड़ लिया और परी क्ष। से बाहर कर दिया।जब परिणाम आया तो बह बिद्यार्थी अनुत्तीर्ण था।बिद्यालय के सभी शिक्षकों को लगा कि अब सूर्यसेन की नौकरी चली जायेगी। एक दिन अचानक सूर्यसेन को प्रधानाध्यापक का बुलावा आया।प्रधानाध्यापक ने सूर्यसेन से स्नेहपूर्वक कहा- मुझे यह जानकर अच्छा लगा की मेरे बिद्यालय में आप जैसे कर्त्तव्यनिष्ठ और आदर्शबादी अध्यापक भी हैं, जिन्होंने मेरे वेटे को भी दंड देने में संकोच नहीं किया।यदि आपने उसे नक़ल करने के बावजूद भी पास कर दिया होता तो मैं आपको पदच्युत कर देता। उस दिन से प्रधानाध्यापक महोदय सूर्यसेन के प्रशंसक बन गए।
प्रश्न मंजूषा-
१-शिबाजी के गुरू का नाम?
२- समिति की व्दितीय संचालिका का नाम?
३- नवबर्ष कब मनाया जाता है?
४- सती प्रथा किसके प्रयास से बंद हुई?
५- चार धाम कौन से हैं?
६- पृथ्वी सूर्य का चक्कर कितने दिनों में पूरा करती है?
७- मनुष्य के जीवन में कितने संस्कार होते हैं?
८- मदन मोहन मालवीय जी का उपनाम क्या था।
९- १९५७ की प्रथम क्रान्ति कहाँ से प्रारम्भ हुई?
१०- भारतीय रिजर्व बैक की स्थापना कब हुई?
उत्तर-
१- समर्थ गुरू रामदास।
२- बंदनीया सरस्वती ताई आप्टे जी।
३- चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को।
४- राजा राममोहन राय।
५- बद्रीनाथ, रामेश्वरम, जगन्नाथ पुरी एवं व्दारिका पुरी।
६- ३६५ दिन में।
७- सोलह संस्कार।
८- महामना।
९- मेरठ से ।
१०- भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना १९३५ में हुई,१ जनवरी १९४९ को इसका राष्ट्रीयकरण किया गया।
गीत १- दीप यह जलता रहे
त्याग और तेजस्विता का दीप यह जलता रहे।
ज्ञान और संस्कार पथ पर।
सेविका चलती रहे ध्येय पथ पर बढती रहे,
सूर्य से ले अग्नि ज्वाला,सागर से गाम्भीर्य गहरा,
धरणी से ले धैर्य अनुपम,गगन सा विस्तार न्यारा,
गंग का निर्मल सलिल सा,परित नित गड़ती रहे।
भ्रष्टता के भंबरपथ में, कंटकों का जाल फैला,
स्वार्थ के मोहक पलों में,डूबता जन-मन विषेला,
राष्ट्र भक्ति कसक मन में,चरित नित गड़ती चले।२।
नित्य शाखा प्रार्थना के,स्वर गहन मुखरित रहें,
हिन्दू मन संस्कार लेकर,यज्ञमय जीवन करें,
वीरवर बृत्ति निरंतर,जय-विजय मिलती रहे।३।।
गीत २- नित्य साधना की ज्योति से
नित्य साधना की ज्योति से,राष्ट्रदेव का ध्यान धरें
राष्ट्रधर्म की ध्वजा हाथ ले, भारत का उत्थान करें
दिग दिगन्त जयगान करें,दिग दिगन्त जयगान करें।।
धर्मतत्व की कर्मभूमि यह
ऋषि-मुनियों की पुन्यधरा
सप्त सरित के निर्मल जल से
ह्रदय हमारा शुद्ध वना
दिव्यमार्ग पर चलते-चलते
जीवन को हम सार्थ करें।\१।।
शाश्वत संस्कृति धर्म धरा पर
संकट की काली छाया
भोगवाद के भ्रमजालों में
सत्व हमारा क्यों खोया
भारत माँ के व्रतधारी हम
स्वार्थभाव का त्याग करें।।२।।
जागे जननी जागे भारत
शक्ती का उद्घोष करें
होगी विजय सुनिश्चित सत की
ऐसा हम व्यवहार करें
सुप्त शक्ति को जागृत करने
जन मन में संचार भरें।।३।।
सुभाषितम-
अध्यापनं ब्रह्म यज्ञ: पितृ यज्ञस्तू तर्पणम।
होमो देवो बलिर्भूतो नृयज्ञो$तिथि पूजनम।।१।।
अर्थात-पदना पदाना यह बह्म यज्ञ,पितरों का तर्पण पितृ यज्ञ,होम करना देवयज्ञ,बलि देना भूतयज्ञ ,अतिथि पूजा मानव यज्ञ है।
प्रिय वाक्य प्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति जन्तव:।
तस्मात् तदेव वक्तव्यं वचने का दरिद्रता।।२।\
अर्थात-प्रिय वाक्य बोलने से सभी लोग संतुष्ट हो जाते हैइ इसलिए हमेशा प्रिय ही बोलना चाहिए।मधुर बचन बोलने में क्या दरिद्रता।
विद्या विवादाय धनं मदाय शक्ति परेषां परपीडनाय।
खलस्य साधोर्विपरीतमेतत ज्ञानाय दानाय च रक्षणाय।।३।।
अर्थात-दुष्टों के लिए विद्या विवाद के लिए,धन मद के लिए और शक्ति दूसरों को पीड़ा पहुचाने के लिए होती है।इसके विपरीत सज्जनों के पास विद्या ज्ञान के लिए,धन दान के लिए और शक्ति दूसरों की रक्ष। के लिए होती है।
*चर्चा के विषय
बाल शाखा के लिए-
१-शिक्ष। का समाज में प्रभाव-
#शिक्ष। समाज की प्रगति में योगदान करती है।
# शिक्ष। से अंधविश्वासों की समाप्ति होती है।
# समाज की संस्कृति का संरक्षण।
# समाज के आदर्शों की स्थापना में योगदान देना।
# सामाजिक नियंत्रण।
# सामाजिक परिवर्तन की संवाहक।
२-पर्यावरण प्रदूषण का बच्चों पर प्रभाव-
# जल प्रदूषण विषैले पदार्थ जल में मिल जाने से होता है।ऐसे जल को पीने से हैजा,डायरिया,और पीलिया आदि हो जाता है।
# वायु प्रदूषण कारखानों,बाहनों,धरों आदि से निकलने बाली गैसों के वायु में मिलने से होता है। इससे आँखें,अस्थमा,अंधापन,फेंफड़े आदि खराव हो जाते है।
# ध्वनी प्रदूषण जैसे-मशीनों,सभाओं में तेज स्वर लाउडस्पीकर ,टी.वी.के शोर से मानसिक संतुलन विगड़ सकता है।
# रासायनिक खादों और कीटनाशकों का अधिक मात्रा में प्रयोग करने से भूमि प्रदूषण होता है। इससे अन्न,फल, सब्जी,दालें प्रदूषित हो जाती है\
# प्लास्टिक पोलोथिन,परमाणु वम, परमाणु ऊर्जा प्रदूषण आदि के व्दारा रासायनिक प्रदूषण होता है।इसके प्रभाव से लम्बी बीमारी पैदा हो जाती हैजिसका प्रभाव कई पीदियों तक रहता है\
तरुणी शाखा के लिए-
१-समिति प्रार्थना का महत्त्व-
#समर्पण के लिए प्रार्थना की जाती है\
#बार-बार किसी चीज को कहने से बह सिध्द हो जाती है\
# राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण करने के लिए प्रार्थना कही जाती है\
# ईश्वर का संबल मिलते ही हमारा आत्मबल मजबूत होने लगता है\
# प्रार्थना से तात्पर्य है- जीवात्मा की परमात्मा के समक्ष निज भाव की अभिव्यक्ति।
#प्रार्थना से अंतर्मन की सोई हुई ऊर्जा सक्रिय हो जाती है\
# प्रार्थना एक प्रकार का योग है जिसका अभ्यास प्रतिदिन करना चाहिए।
२- शाखा संजीबनी-
# शाखा में हम तीन वातें सीखते हैं-संस्कार,भाव जागरण और गुण बर्धन।
# शाखा ब्दारा हम जीवन में अनुशासन सीखते हैं।
# निस्वार्थ सेवा करना भी हम शाखा से ही सीखते हैं।
# शाखा से नेतृत्व करने की क्षमता बिकसित होती है।
# समाय पालन भी शाखा से आता है\
# शारीरिक क्षमता, बौध्दिक विकास एवं ईमानदारी की भावना भी शाखा से हमें प्राप्त होती है।
महिला शाखा के लिए-
१-वर्ग की तैयारी-
# जून के महीने में ग्रीष्मकालीन वर्ग लगता है अत: पहले से अन्य कोई कार्यक्रम ना रखा जाए।
#वर्ग की तैयारी के लिए अप्रैल से वैठकें लेनी प्रारम्भ कर देनी चाहिए।
# उन बहिनों से संपर्क-जो व्यवस्था में पूरे समय सहयोग दे सके।
# स्वस्थ्य बहिनें ही वर्ग में आयें।
#अपना गणवेश निकाल कर अच्छे से धोकर एवं परस करके मई माह में ही तैयार कर लें\
# सुखद अनुभव बहिनों को सुनाये ताकि वे वर्ग में आने का मन वनाएं।
२-समिति उत्सव-
# समिति में मुख्य रूप से पांच उत्सव मनाये जाते हैं।
# नवबर्ष चैत्र माह की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मनाया जाता है।
# गुरू पूर्णिमा आषा ढ मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है\इसे व्यास पूर्णिमा भी कहते हैं।
# रक्ष। बंधन,यह श्रावण मॉस की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस दिन परम पूज्य भगवा ध्वज को भी राखी बांधते हैं।
# समिति स्थापना का दिन विजयादशमी हम समिति की बहिनें उत्सव के रूप में मनाती हैं\
# सूर्य व्दारा द क्षि णायण से उत्तरायण की और प्रस्थान अर्थात मकर संक्रांति उत्सव।
बोध कथा
१-व्यर्थ वस्तु की खोज- एक ऋषि के पास एक युवक ज्ञान प्राप्ति के लिए पहुंचा।ज्ञान प्राप्ति के बाद उसने
दक्षिणा देनी चाही।गुरू ने बह बस्तु मांगी जो बिलकुल ब्यर्थ हो। युवक ब्यर्थ बस्तु की खोज में निकल पडा \उसने माटी की और हाथ बढाया।मिट्टी चीख पड़ी- तुम मुझे ब्यर्थ समझ रहे हो। धरती का समस्त बैभव मेरे गर्भ से ही प्रकट होता है। शिष्य पत्थर की और बढा, उसने कहा- इन भवनों,नदी नालों और पर्वतों में क्या मैं नही हूँ? धूमते-धूमते उसे कूड़े का देर मिला, उसने घृणा के साथ जैसे ही गंदगी की और हाथ बढाया तो आवाज आयी- क्या मुझसे बदिया खाद धरती पर मिलेगी? ये अन्न, फल, सब्जी सब मेरे ही प्रभाब से उगते हैं। युवक सोच में पड गया कि जब मिट्टी, पत्थर, कूड़े का देर आदि सब इतने उपयोगी हैं तो व्यर्थ क्या हो सकता है? बह पुन: गुरू के पास गया और क्षमा मांगकर उनसे निवेदन किया की बह दक्षिणा में अपना अहंकार देने आया है।
२-जीवन का सत्य-एक व्यक्ति साधू के पास आकर बोला-स्वामी जी मुझे कोई ऐसा उपदेश दीजिए जो जीबन भर याद रहे।मेरै पास इतना समय नही है जो मै रोज आपके पास आऊँ और आपका उपदेश सुनूँ । साधू उसे आश्रम के निकट एक श्मशान में ले गए,बहां कुछ लोग एक सेठ का शव लेकर पहुंचे।फिर कुछ देर बाद एक दरिद्र का शव भी लाया गया। दोनों की चिताएं बनायी गयीं और फिर अग्नि को समर्पित कर दिया गया\साधू ने उस व्यक्ति को अगले दिन आने के लिए कहकर घर जाने को कहा। बह व्यक्ति अगले दिन श्मशान भूमि में पहुंचा।साधू महाराज पहले से ही बहां उपस्थित थे। उन्होंने एक मुट्ठी में सेठ की और दूसरी मुठ्ठी में दरिद्र की चिता की थोड़ी-थोड़ी राख ली,फिर उस आदमी को बह राख दिखाते हुए बोले- इन दोनों मुठ्ठियों में ही तुम्हारा उपदेश छुपा हुआ है। अमीर हो या गरीब,अंत में दोनों एक समान हो जाते हैं।उनमें कोई अंतर नहीं रह जाता। जीबन की सार्थक परिभाषा समझ बह ब्यक्ति धन्य हो गया।
प्रेरक प्रसंग
१-सौभाग्यशाली कौन-चित्रकूट में श्री राम और सीता एक वृक्ष के नीचे वैठे थे। श्रीराम ने कहा-यह वृक्ष कितना सौभाग्यशाली है। इसे एक लता ने दक रखा है, मैं भी इसी की तरह तुम्हें पाकर धन्य हो गया हूँ।सीता जी ने उत्तर दिया-वृ क्ष नहीं यह लता सौभाग्यशाली है जिसे इस वृ क्ष ने शरण दे रखी है, ठीक उसी प्रकार जैसे मुझे आपका सहारा मिला हुआ है\ तभी बहां लक्ष्मण आ पहुंचे। सीता ने उनसे प्रश्न किया-बताओ यह वृ क्ष सौभाग्यशाली है या लता? लक्ष्मण बोले-न यह वृ क्ष सौभाग्यशाली है और न यह लता , बल्कि इसकी छाया में वैठने बाले पथिक सौभाग्यशाली हैं, जैसे मैं आप दोनों की छाया में सुखी हूँ।
२-आदर्शवादी शिक्षक- प्रसिध्द क्रांतिकारी सूर्यसेन बंगाल के एक बिद्यालय में अध्यापक थे।उन दिनों बिद्यालय में परी क्ष। चल रही थी। जिस कमरे में सूर्यसेन की ड्यूटी लगी थी,उसमें प्रधानाध्यापक का पुत्र भी परी क्ष। दे रहा था। सूर्यसेन ने उसे नक़ल करते हुए पकड़ लिया और परी क्ष। से बाहर कर दिया।जब परिणाम आया तो बह बिद्यार्थी अनुत्तीर्ण था।बिद्यालय के सभी शिक्षकों को लगा कि अब सूर्यसेन की नौकरी चली जायेगी। एक दिन अचानक सूर्यसेन को प्रधानाध्यापक का बुलावा आया।प्रधानाध्यापक ने सूर्यसेन से स्नेहपूर्वक कहा- मुझे यह जानकर अच्छा लगा की मेरे बिद्यालय में आप जैसे कर्त्तव्यनिष्ठ और आदर्शबादी अध्यापक भी हैं, जिन्होंने मेरे वेटे को भी दंड देने में संकोच नहीं किया।यदि आपने उसे नक़ल करने के बावजूद भी पास कर दिया होता तो मैं आपको पदच्युत कर देता। उस दिन से प्रधानाध्यापक महोदय सूर्यसेन के प्रशंसक बन गए।
प्रश्न मंजूषा-
१-शिबाजी के गुरू का नाम?
२- समिति की व्दितीय संचालिका का नाम?
३- नवबर्ष कब मनाया जाता है?
४- सती प्रथा किसके प्रयास से बंद हुई?
५- चार धाम कौन से हैं?
६- पृथ्वी सूर्य का चक्कर कितने दिनों में पूरा करती है?
७- मनुष्य के जीवन में कितने संस्कार होते हैं?
८- मदन मोहन मालवीय जी का उपनाम क्या था।
९- १९५७ की प्रथम क्रान्ति कहाँ से प्रारम्भ हुई?
१०- भारतीय रिजर्व बैक की स्थापना कब हुई?
उत्तर-
१- समर्थ गुरू रामदास।
२- बंदनीया सरस्वती ताई आप्टे जी।
३- चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को।
४- राजा राममोहन राय।
५- बद्रीनाथ, रामेश्वरम, जगन्नाथ पुरी एवं व्दारिका पुरी।
६- ३६५ दिन में।
७- सोलह संस्कार।
८- महामना।
९- मेरठ से ।
१०- भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना १९३५ में हुई,१ जनवरी १९४९ को इसका राष्ट्रीयकरण किया गया।