मंगलवार, 16 अप्रैल 2013

भारतीय भाषाओँ की वैज्ञानिकता

भारत की राष्ट्रभाषा हिंदी अपने आप में पूर्णत: वैज्ञानिक भाषा है। कंप्यूटर के लिए संस्कृत को सबसे उपयुक्त भाषा आज के वैज्ञानिकों ने स्वीकार किया है। हिंदी इस भाषा (संस्कृत) की उत्तराधिकारी भाषा है। संस्कृत ने जिन अक्षरों का प्राचीन काल में आविष्कार कर भाषा विज्ञान को विकसित किया उसे हिंदी ने बड़े ही गौरवमयी ढंग से सहेज कर रखा है। अक्षर का अर्थ क्षरण न होने वाले से है। ‘ऊँ’ भी एक अक्षर है, जो प्रलयपर्यन्त भी क्षरित अर्थात नष्ट नही होता। इसका अस्तित्व सदा बना रहता है। इसी प्रकार भाषा के विकास के लिए जिन अक्षरों का आविष्कार किया गया है वो भी नष्टï न होने वाले हैं। उन्हें लिखने का ढंग नई सृष्टि में भिन्न हो सकता है-लेकिन उनका अस्तित्व नष्ट नही होगा। इसी लिए संस्कृत जैसी समृद्घ भाषा ने ‘अक्षर’ नाम देकर अक्षरों के साथ न्याय ही किया है-मानो अक्षर नाम के साथ सृष्टिï से सृष्टि का जो अनवरत क्रम चला आ रहा है और आगे भी चलता रहेगा-इस क्रम का रहस्य खोल दिया गया है-कि इनमें ईश्वर, जीव और प्रकृति की भांति अजर और अमर यदि कोई है तो वह अक्षर ही है। संसार की अन्य भाषाओं ने अक्षर को अक्षर जैसा नाम नही दिया है। संस्कृत ने अक्षर नाम विज्ञान के शाश्वत नियमों को पढ़ व समझकर दिया है कि प्रत्येक वस्तु अपना रूप परिवर्तित करती है-उसके तत्वों का कभी विनाश नही होता। इस विज्ञान को समझने में पश्चिमी जगत को युगों लगे जबकि संस्कृत ने इसे सृष्टि के प्रारंभ में ही समझ लिया था और जब ये सृष्टिï आंखें खोल रही थी। जो संस्कृत मां के रूप में उसे अक्षर की लोरियां सुना रही थी। संसार के वैज्ञानिक सृष्टि प्रारंभ में सर्वप्रथम ध्वनि के उत्पन्न होने की बात कहते हैं-वह ध्वनि ओउम का पवित्र गुंजन था। यह पवित्र गुंजन बहुत देर तक चला और फिर इसी से सृष्टि का निर्माण होना प्रारंभ हुआ। आज भी सनातन धर्म में प्रत्येक शुभ कार्य का प्रारंभ ‘ध्वनि’ (शंख में पवित्र शब्द ओउम की गुंजार) से किये जाने की परंपरा है। मानो आज फिर एक नई सृष्टि की रचना हो रही है    

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