सोमवार, 14 जुलाई 2014

अभियान
समाज जागरण, समाज प्रबोधन और समाज संघटन ऐसे कार्योंमे समितिने अपनी अग्रेसरता हमेशा प्रगट की है| विभिन्न अभियान चलाये है| नारी शक्ति केवल रथपर विराज होने पर संतुष्ट नहीं है अपितु सारथ्य करने मे अपनी भूमिका निर्वाहन करे इस संकल्प से अभियान चलाये जाते है|
१९४२ के चले जाव आंदोलन में सहभाग। समिति का कार्य इतना स्थिर नही हुआ था कि इस आंदोलन में समिति समितिश: भाग लेगी। अत: सेविकाएँ व्यक्तिश: सहयोग देंगी यहतय हुआ और वैसेही हुआ।
१९४८-महात्माजी के वध के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, हिंदुमहासभा पर पाबंदी लगायी गयी। लेकिन चार छहघंयों में छोड दिया गया। संघ पर लगाया गया प्रतिबंध उठाया जाय इसके लिये सभी ओर प्रयास चल रहे थे। यश प्राप्त न हो सका। अत: सत्याग्रह का मार्ग स्वीकारना पडा। समिती कई सेविकाओंने सत्याग्रह में सहभाग लिया। मुंबर्स में तथा नागपुर में विराट मोर्चे निकाले गये और मुख्यमंत्री जी को निवेदन दिया गया। मुंबई के सभी महिला मंडलो को एकत्रित कर एक कार्यक्रम हुआ। अध्यथ थे मुख्यमंत्री मोरारजी भाई देसाई । कार्यक्रम समाप्त होने के बाद जब वे बाहर निकले तब समिती सेविकाओंने उनके हाथ प्रतिबंध हटाया जाय* ऐसे पत्रक दिये। सभी को पकडा गया। अलग अलग पुलिस थानों में रखा गया।चार घंटोंके बाद छोड दिया गया। ऐसे कार्यक्रम कई जगह हुएँ।
१९५६ से १९६१ -गोवा मुक्ति आंदोलन-गोवा विमोचन समिती द्वारा होनेवाले सत्याग्रहों में सेविकाओं का सहभाग था। विविध स्थानों से पुणे में एकत्रित होनेवाले सत्याग्रही गुटों की भोजन की व्यवस्था वं ताई आपटे जी के नियोजन से होती रही। गोलीबारी में मृत लोगों के शव आते थे। दुर्गंध आती थी। फिर भी उनकी व्यवस्था में सेविकाओंने सहयोग दिया।
१९६२ -चीन आक्रमण-प्रथमोपचार में सहयोग -निशानेबाजी केंद्र तथा मंदिरों में  प्रार्थनाकेंद्र चलायें। मा. qसधुताई फाटक ने केन्द्रीय सुरक्षामंत्री श्री यशवंतराव चव्हाण की भेट लेकर नागरी सुरक्षा व्यवस्था के लिये १०० सेविकाएँ किसी भी समय आपकों मिलेंगी, यह आश्वासन दिया था। आक्रमण संबंधी जानकारी दी गयी तथा सामान्य लोग कैसे मदद कर सकते है यह प्रबोधन भी किया गया।
१९६५ -पाकिस्तान का आक्रमण हुआ। जवानों का मनोधैर्य बढाने राखियाँ भेजी गयी। उनको आवश्यक चीजे देना, स्टेशनपर भोजन पहुंचाना आदि कार्य किये। मा.qसधुताई जीने जैसलमेर, जयपुर,बारमोर आदि बेस कँपों को भेट दी। एक स् िप्रत्यक्ष युद्ध केंद्र पर अनेक बाधाओं को पार कर पहुंचती है और जवानों को धीरज बंधाती है।  यह दृश्य ही प्रेरक था। युद्धसमाप्ति के बाद जब प्रधानमंत्री शास्त्रीजी ताश्कंद जानेवाले थे तब मा. qसधुताई और दिल्ली की सेविकाएँ उनसे मिली और *युद्ध की जाँच जिनको सहनी पडी है ऐसी स्त्रियों को न्याय मिले, उनका सम्मान रहे ऐसी ही वार्ता हो। यह निवेदन २५,००० हस्ताक्षर संग्रहित कर उनको दिया गया। जवाहरलाल को भेज दिया।
१९७१ कें युद्धकाल में भी सहायता की। वं. मौसीजी ने पंतप्रधान इंदिराजी को पत्र भेजकर उनके धैर्यपूर्ण निर्णय के लिये अभिनंदन किया था।
१९७५ -आपात्काल । समन्वय समिति के द्वारा किये गये सत्याग्रह में सेंकडो सेविकाओंका सहयोग था। सत्याग्रहियोंकी आरती उतारना,(पकडे जाने का भय होते हुए भी) मिसबंदियों के परिवारों को मिलना, आवश्यक मदद करना। पत्रक बाँटनां संदेश पहुंचाना। भुमिगतों को घर में आश्रय देना, आदि काम सेविकाओं ने किये।
१९७६ की विजयादशमी को संपूर्ण देश में सायं ६ बजे सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके, शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणी नमोऽस्तुते। यह श्लोक बोला गया। कई जगह आपत्ति निवारणार्थश्री सूक्त पारायण भी  किये गये। सामूहिक प्रार्थना से शक्ति उत्पन्न होती है। यह अपना विश्वास है।
१९९९- कारगिल युद्ध -जवानों को ऊ नी वस्त्र भेजे गये। पुणे की qकग्ज मेरी इन्स्ट््िट्यूट में दाखिल विकलांग जवानों को कुछ दवाइयां और जांच हेतु आवश्यक मशीन दिये गये। उनको हर साल दीपावली में मिठाई और संक्रमण के समय तिलगुड भेजा जाता है। मनोरंजन के लिये कुछ कार्यक्रम भी होते है। जगह जगह के शहीद जवानों घर जाकर सांत्वना देने का कार्य पूरे भारत वर्ष में समिति सेविका ओं ने किया। पूर्व सैनिक परिषद जम्मू रा.स्व. संघ और राष्ट्र सेविका समिति ने दिल्ली,जम्मू आदि स्थानों पर कार्यक्रम लेकर सांत्वना के साथ कुछ आवश्यक वस्तुएं भी दी। केंद्रीय कार्यकारिणी की दो सदस्या उसके लिये जम्मू गयी थी।
गोवधबंदी आंदोलन १९५२-५३ लक्षावधी सेविकाओं तथा भारत के नागरिकों की स्वाक्षरी ले कर पत्र पंडीत जवाहरलाल जी को भेजा गया।
जम्मू काश्मीर बचाओ अभियान १९९० -राष्ट्र सेविका समिति की ओर से लिया गया। उसी की एक कडी के रूप में समिति ने वहाँ के राज्यपाल श्री. जगमोहनजी को नागपुर में आमंत्रित किया था। स्वागत में शिकार के आकार का पुष्पगुच्छ और संत्रे तथा सेव से बनी माला भेट की गयी। इस अभियान के अंतर्गत स्थान स्थान पर  मोर्चे निकाले गये। लोगों को जम्मू काश्मीर और उसकी समस्याओं के बारे ंमें जानकारी दी गयी।
स्वदेशी आंदोलन १९९५ - स्वदेशी यह विषय लेकर वं. उषाताई जी का आंध्र और असम में प्रवास हुआ।
१- १५ हिसेंबर देशभर स्वदेशी पखवाडा मानाया गया। कर्नाटक में ५,००० घरों से संपर्क हुआ। भाग्यनगर, आंध्र में मा. सीतालक्ष्मी जी का यहीं विषय लेकर प्रवास हुआ। नांदेड, यवतमाळ, नागपुर(महाराष्ट्र) में स्वदेशी भोजन के संबंध में कार्यक्रम हुए। भारतीय वस्त्र, स्वदेशी खेल के कार्यक्रम दिखाये गये। उत्तर प्रदेश में ८९००० घों से संपर्क हुआ। असम में ३०,००० घरों से संपर्क और ८२ मातृ संम्मेलन हुए।
शताब्दियां
रानी लक्ष्मीबाई
१९२८ जून- रानी लक्ष्मीबाई के बलिदान की शत संवत्सरी के उपलक्ष्य में नासिक में उनका स्मारक निर्माण किया गया। नागपुर और वर्धा में भी एक चौराहें में रानी का पुतला स्थापित हुआ। आज तक पद्धति रही है कि रानी के स्मरण दिन पर सेविकाओं के साथ नगरपालिका की ओर से भी वहां माला चढायी जाती है।
१९८३ रानी लक्ष्मीबाई के १२५ वे पुण्यतिथी के उपलक्ष्य में संपूर्ण भारत में कार्यक्रम हुए। उनकी कर्मभुमि झांसी में उनकी प्रतिमा की भव्य ाोभायात्रा निकली। उनकी जीवन का चित्रदर्शन,संगीतिका तथा कवयित्री संमेलन और परिसंवाद का आयोजन किया गया था।
स्वामी विवेकानंद
१९६३ -जन्मशताब्दी मनायी गयी।
१९९२ में उनकी १२५ वी जयंती थी। यह वर्ष युवती स्वयंप्रेरणा वर्ष के रूप में मनाया गया। विविध सामाजिक कार्यो में युवतियों का सहभाग रहा। गनिनी निवेदिता ने स्वदेशी का समर्थन, प्रचार किया था। अत: सभी जगह निवेदिता के कार्य का कथन, स्वदेशी वस्तुओं का प्रदर्शन, स्वदेशी खेलों की प्रतियोगिताएँ, स्वदेशी संगीत, स्वदेशी खाद्यपदार्थ सिलिगुडी मालदा यहां भी बडा कार्यक्रम हुआ। वहां की निवेदिता जी की समाधि की दुरूस्ती हो जायें और एक रास्ते को उसका नाम दिया जाय ऐसा निवेदन पश्चिम बंगाल के जिल्हाधिकारी को दिया गया। उस वर्षकासेविका वार्षिकांक भी निवेदिता विशेषांक था।
जिजामाता
१९७४ जिजामाता की ३०० वी पुण्यतिथि उनका जन्मस्थान qसदखेडराजा तथा समाधिस्थान पाचाड में विशेष रूप से मनायी गयी। के कार्यक्रम के समय रेल्वे का हडताल था। फिर भी ४०० सेविकाएँ उपस्थिती थी। मुंबई शाखा ने स्वर जिजाई इस संगितीका के ५० कार्यक्रम किये। नागपुर में *स्वप्न हे साकारले* यह भव्य गीत, निवेदन और दृश्य प्रसंगो का कार्यक्रम प्रस्तुत किया गया। सालभर देशभर मेंं अन्य संस्था ओं को संमिलित कर विविध कार्यक्रम हुए।
१९९९ -गुजरात में कर्णावती शहर में एक मार्ग औैर एक चौराहे को जिजामाता नाम दिया गया।
२००१. जिजामाताकी ४०१ वा जन्मदिन। विशेष डाकतिकट जारी किया गया और उस लोकार्पण कार्यक्रम तत्कालीनप्रधानमंत्री में एक दिन का कार्यक्रम हुआ। उनके समाधिस्थान के बाजू में फलक लगाया गया। विशेष घोषरचना के वादन से मानवंदना दी गयी। शोभायात्रा निकाली गयी। पापडोस के गांवों से सार्वजनिक कार्यक्रम के लिये महिला-पुरूष आयेथे। मुंबई शाखा ने मुंबर्स-ठाणे रायगड के ४०० गावों में जाकर जिजामाता का कार्य बताया। समापन समारोह रायगड में हुआ। ४०० सेविकाएँ उपस्थित थी।
प. पू. डॉ. हेडगेवार
१९८८ जन्मशताब्दी -समिति की ओर से भी मनायी गयी। १९३८ के समिति शिक्षा वर्ग में दिया गया डॉक्टरजी का बौद्धिक छपवाकर देशभर वितरित किया।
देवी अहल्याबाई होलकर
१९९४-२५ डिसेंबर को देवी अहल्याबाई द्विशताब्दी महोत्सव उनके जन्स्थान चौडी में मनाया गया।छोटासा गाव होने के कारण बहुतसी व्यवस्थाये बाहर से करनी पडी। एक दिन कार्यक्रम का समापन वं उषाताईजी ने किया। पडोस गावों से ३०० लोग आये थे। इस वर्ष का समापन महोत्सव उनकी कर्मभूमि महेश्वर में हुआ। चौडी में उनके मायके के qशदे कुल तथा माहेश्वर में होलकर कुल के सदस्य शामील हुए थे।
सुभाषचंद्र बोस
१९९६ -जन्मशताब्दी वर्ष २३ जनवरी १९९६ को कोलकता के गोयाबागान मैदान से पथसंचलन निकला।
१९९९ - रानी चेन्नमा की १७५ वी पुण्यतिथि थी। उनका चरित्र कथन हुआ।
आचार्य शंकरदेव, असम-५५१ वी जयंती के उपलक्ष्य में सेविका प्रकाशन ने एक पुस्तिका प्रकाशित की।
खालसा पंथ त्रिशताब्दी -शाखाओं ने खालसा पंथ और दसों गुरूओंके देशप्रेम की कथांएँ बतायी गयी। सिक्ख लोगों के कार्यक्रमोंमें सहभाग लिया।
सोमनाथ पुनर्निर्माण
२००० -स्वर्णजयंती वर्ष सोमनाथ सहित सभी ज्योतिर्लिंग स्थानों पर अभिषेक और सार्वजनिक कार्यक्रम हुए। सोमनाथ का इतिहास अखिल भारतीय स्तर पर बताया गया। समाचार पत्रों में लेख छपवाये गये। विज्ञान और शिवqलग का साधम्र्य प्रकट किया गया।
समिति की रजतजयंती(१९६०), वं मौसीजी का षष्ट्पूर्ति वं मौसीजी का षष्ट्यब्दिपूर्ति समारोह (१९६५) वं.ताईजी का अमृतोत्सव (१९८५), वं. ताईजी का अमृतोत्सव (२००२), य कार्यक्रम भी समिति कार्य विस्तार के विविध कार्यक्रमोंसे संपन्न हुए। वं मौसी जी के षष्ट्यब्दिपूर्तिसमारोह से प्राप्त निधि  देवी अहल्या मंदिर के निर्माण के लिये तो वं. उषाताई जी के अमृतमहोत्सव में प्राप्त निधि बडा हाफलाँग,असम स्थित रानी माँ गाईदेन्ल्यू कन्या छात्रावास के लिये समर्पित हुआ।  वं. मौसी जी की जन्शताब्दी के निमित्त आयोजित वं. मौसीजी की स्मृति प्रदर्शनी परिक्रमामें ही मा. प्रमिलाताई जी का अमृतमहोत्सवी वर्ष ता। उसमें जगह जगह प्राप्त राशि अन्यान्य संस्थाओं को दी गयी।
विविध कार्यक्रम
१९७१ में बेलगांव में समिति और स्थानिक महिला मंडल के सहयोग से शारदोत्सव प्रारंभ हुआ। आज भी वह परंपरा कायम है। महाराष्ट्र में अन्य शहरों में भी अब इसकी प्रथा रूढ हो गयी।
दि. २३ फरवरी १९८५ को त्रचूर में केरल प्रांत संमेलन हुआ। १००० सेविकाएँ उपस्थित थी। पथसंचलन हुआ।
१९८८ अहमदनगर जिले का राहुरी ग्राम देवी तुळजाभवानी का मायका माना जाता है। वहां पाच घंटों का शिबिर हुआ। देवी की पालकी बनानेवालोंका सत्कार किया। इसी वर्ष ठाणें में अखिल भारतीय कीर्तन वर्ग संपन्न हुआ।
१९९२ हुबली के ईदगाह मैदान पर १५ अगस्त के दिन राष्ट्रध्वज फहराने को मुस्लिमोंका विरोध था।
उनके आतंक के कारण वह परंपरा खंडित हो रही थी। अत: युवक युवतियों ने स्वातंत्र्यदिन को वहां ध्वज फहराने का प्रण किया। इस उपक्रम में समिति सेविकाओं का भी सहभाग था। विरोध के लिये एकत्रित आये मुस्लिम, दंगा रोकने के लिये नियुक्त पुलिस व्यवस्था सभी को भेदकर सेविकाओं ने छाते में छिपाया हुआ ध्वज फहराया। पुलिस को भी दक्ष आज्ञा देकर राष्ट्रगीत गााया। उसके पश्चातहु पुलिस उन्हें पकड पायी। पुलिस थानें जाने पर वहां के ध्वजवंदन के कार्यक्रम के बाद भी संपूर्ण वन्दे मातरम् का गायन किया।
१९९४ से मुंबई से सायन हॉस्पिटल के सामनेवाले, आंबेडकर चौक तक जानेवाले रास्ते को वं लक्ष्मीबाई केळकर रास्ता नाम दिया गया।
१९९६ -बंगलोर में आयोजित सौंदर्यप्रतियोगिता  रोकने हेतु मा. शांताक्का की अध्यक्षता में समिति द्वारा प्रयत्न हुए। प्रदर्शनकारियों पर हुआ लाठी हल्ला सेविकाओं ने सह लिया। आखिर उनको स्थान बदलना पडा।लेकिन स्थान बदलकर प्रतियोगिता संपन्न हुई इसका दुख है।
१९९९ समिति की ओर से भगवद्गीता वर्ष मनाया गया। कर्मण्येवाधिकारस्त, यदिच्छसि तत्करू, हतो वा प्राप्यसि स्वर्ग जैसे विषयों पर विवेचन हुआ।
२००० नयी सहस्त्राब्दि के प्रारंभ में हिंदु नूतन वर्ष शुभेच्छा पत्रक पूर देश में वितरित किये गये। कई शहरों में चौराहें में खहे होकर आनेजानेवालों को मंगल तिलक लगाकर प्रसाद बाटा गया। आज भी यह कार्यक्रम अनेक नगरों में होता है।
मंगलोर में ४६,००० संख्या में मातृसंगम हुआ। समिति और चालीस महिला संगठनों ने संयुक्त आयोजन किया था। उसीके साथ ९०० सेवकाओं का अभ्यासवर्ग भी हुआ था। तमिलनाडू में अश्लील चित्रपट दिखानेवाले केबल ऑपरेटर के घर को घेराव किया गयो। इरोड कमें मंदिर के स्थान पर अन्य धर्मियों की गृहयोजनाबन रही थी। उसको विरोध कर समिति न वह आक्रमण रोका। आंर्ध में १०१ दीप जलाकर कारगिल विजय दिन मनाया गया।
जुनागड, गुजरात में श्रमदान से तालाब खोदा जा रहा था। उसमें समिति की ५०० सेविकाएं संमिलित हुई। लेह में ओयोजित qसधुदर्शन यात्रा में सभी सेविकाओं का सहभाग था। वाराणसी में लक्ष्मीबाई का जन्मस्थान साफसुथरा किया और वह वैसा ही रहें इसलिये शासकीय अधिकारियों को निवेदन किया। वाराणसी शाखा हरसाल भव्य कार्यक्रम का आयोजन करती है।
२००१ -भारत तिब्बत संघ की ओर से आयोजित शिबिर में समिति की सेविका डोलमा ने शिक्षिका के नाते सहयोग दिया। इसी वर्ष दलाई लामा के भारत आगमन को ४० वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में आयोजित कार्यक्रम में समिति का प्रतिनिधित्व मा. प्रमिलाताई मेढे ने किया था।
२००३ रक्तदान श्रेष्ठदान इस विषय पर नगर में प्रदर्शनी लगायी गयी। ठाणे, डोंबिवली,(मुंबई)में बाल सेविकाओं ने रेल्वे स्थानक पर खडे होकर भीड को अनुशासन देने का प्रयास किया। सभी को बायी ओर से चलो ऐसा आवाहन किया जाता था।
राष्ट्रपुरूष श्रीराम वं मौसी जी के आराध्य थे। अत: सन २००३ में रामक्षा कंठस्थ हो सस दृष्टि से पाठशालाओं मंडलों विविध संस्थाओं में जाकर सामूहिक रामरक्षा पठन किया गया। रामायण पर आधारित विविध कार्यक्रमों का आयोजन भी हुआ। नागपुर में श्रीरामचेतना जागरण सप्ताह के अंतर्गत ४० विद्यालय, अनेक महिला मंडल और विविध संस्थाओं से संपर्क किया। 
सन २००५ यह वं. मौसीजी का जन्मशताब्दी वर्ष, उनकी जीवनी पर आधारित प्रदर्शनी के साथ मा. प्रमिलाताई जी का संपूर्ण भारत में २६६ दिनों में प्रवास हुआ। मूलत: १०० कार्यक्रमों की योजना थी। प्रत्यक्ष में १०७ स्थानपरकार्यक्रम हुएँ। इन सभी कार्यक्रमों का समापन नागपुर में दिनांक ६,७,८ नवंबर २००५ को आयोजित किया गया।
राष्ट्र सेविका समिति की द्वितिय प्रमुख संचालिका वं. ताई आपटेजी की जन्मशताब्दि वर्ष २००९-१० में मनाया गया। वं. ताईजी के अंजर्ले इस जन्मस्थानपर शताब्दिवर्ष का शुभारंभ हुआ। और ताईजी की कर्मभूमि पुणे में २४, २५, २६ दिसंबर २०१० क्षेत्र संमेलन में समापन समारंभ हुआ। महाराष्ट्र क्षेत्र द्वारा निरंतर सौ घंटोंका सूर्यनमस्कार अभियान संकल्पपूर्वक पूर्ण किया गया। अपने आप में अपूर्व ऐसे इस कार्यक्रम की विशेषता रही। लिम्का बुक में इस अभियान का रेकॉर्ड संमिलीत किया गया।
२००५ से २०१२ तक की कालावधी में अनेक सारे प्रांतों में प्रांत संमेलन हुए।
समितीद्वाारा भ. निवेदिता का स्मृती शताब्दीवर्ष २०१०-११ में संपूर्ण भारत वर्ष में मनाया गया।
तात्कालिक कार्य
इसमें समाविष्ट है कुछ प्रशिक्षण कार्यक्रम ।
पूर्वांचल में कार्यरत हमारी कार्यकर्ता बहने तथा अन्य स्वयंसेवी संस्थांओं के के काय्रकर्ताओं के ध्यान में आया है, कि छोटे छोटे गावों में प्राथमिक वैद्यकीय उपचार करनेवाले लोगों की आवश्यकता है। अपनी वत्सलता तथा मातृभाव के कारण सेवा और शुश्रूषा महिलाएंअच्छी तरह करती है यह सर्वकष अनुभव है। अत: सभी ने तय किया और अन्यान्य ग्रामों से २० बहनों को नागपुर में भेजा गया। विवेकानंद मेडिकल मिशन खापरी के सहयोग से उनको दाअी का प्रशिक्षण दिया गया। कालावधी था दो माह। उस शिक्षण के साथ सात्विक और पौष्टिक आहार बनाना, सर्वेक्षण करना, प्राप्त साधनोंसे उपचार करना यह भी सिखांयां गया। साथ ही साथ समाजसेवा भाव, समितिकार्य, सेवाभाव, कर्तव्य भाव जागरण भी हुआ। और यह सब नियोजन बद्धता से हुआ। परिणामत: सभी को अनुभव हुआ कि यह बहनें अपनें गांव की दीदी बन चुकी है। विशेषत: बाढ के समय उनकी मदद एकमेवाद्वितीय रही। स्थिती ऐसी है कि वहाँ प्राथमिक उपचार के लियेदवाइंयां भी उपलब्ध नही होती है। कर्स बार नागपुर से दवाइयां भी भेजी  जाती है। वैद्यकीय मदद के साथ इसका अप्रत्यक्ष लाभ है मतांतरण पर रोक। उनमें से २ बहनों का सिलाई काम तथा बुनकाम भी सिखाया गया। स्वाभिमान से वे सब अपनी जीविका प्राप्त कर रही है। स्त्रीजीवन विकास परिषद, ठाणे यहां भी वनवासी युवतियों को सिलाई, बुनाई, रसोईघर में कुछ चीजें बनाना, खास कर उनके स्थान पर मिलनेवाले पेड, पौधों का उपयोग कैसा हो सकता है यह सिखाया जाता है। बार बार ऐसी ६, ७ लडकियां आतीहै। उनको निवास और शिक्षा उपलब्ध करायी जाती है। उन्होंने तैयार की वस्तुओं की विक्री व्यवस्था होती है। कल्याण में एक माह के लिये किसी कोर्स के लिये आयी हुईवनवासी दो बहनों की निवास व्यवस्थ की जाती है। जळगांव में एक सेविका ने कहाँ, एक दो महिनों के कोर्स के लिये आयी हुईदो क्नयाओं को निवास व्यवस्था के साथ क्रोाावर्क भी सिखायां। अमरावती में एक सेविका ने मूकबधीर बच्चों को भाषा-उच्चारण सिखांया।  एक पुस्तिा भी पुणे की एक सेविका ने छपायी है। पुणें में एक अनपढ वसती के बच्चोंके लिये झुलाघर चलता है। मुलुंड का,क सेविका जरूरतमंद सेविकाओं को सिलाईकाम सिखाकर उन्हें स्वावलंबी बनाने का प्रयास करती है।
अन्य सहायता
युद्ध में विकलांग जवानों के लिये चलाये जानेवाले क्वीन मेरी इन्स्ट्ट्यिूट , पुणे यहां पुणे की सेविकाएँ मनोरंजक और संस्कारप्रद कार्यक्रम साल में दो बार प्रस्तुत करती है। द. कर्नाटक में सेवावस्ती में नेत्र चिकित्सा शिबिर लिया गया। ८० लोगों को ऐनक दिये गये। तथा ४लोगों को शस्त्रक्रिया े लिये आर्थिक सहायता की।
नागपुर में रूग्णोपयोगी साहित्य केंद्र में नाममात्र किरायें पर व्हील चेअर, वॉटर बेड,वॉकर आदि वस्तुएँ उपलब्ध करायी जाती है। उस उपक्रम सेप्राप्त राशि का व्यय भी रूग्णों के लिये ही होता है।
मध्यप्रदेश के सागर जिलें में पथारियां गांव में ठाकुर लोगों की रखेंलियां बहोत है। आयु के ४० साल के बाद वे निराधार बनती है। १९८७ में वहां संपर्क कर ऐसी निराधशर महिलाओं की पुनर्वसन और नयी बनानेवाली रखेंलियां पर रोक लगाने का प्रयास हुआ। बिलासपूर के पास होली के पूर्व १५ दिन स्त्रियोंका बाजार लगता है। उसका विरोेध कर संबंधित अधिकारियों से भेट लेकर बंद करने का प्रयास किया। लेकिन सभी का अनुभव है कि,ऐसे प्रयासों का फल तात्कालिक रहता है।
कर्नाटक में हिंदू विवाह वेदिका यह संसतश स्थापित कर विवाह संबंधी समस्याओं को सुलझाने के लिये मार्गदर्शन और सहायता दी जाती है। तामिळनाडू के सेलम में एक सिलाई शाखा चलायी जाती है। हिंदी भी पढाया जाता है।
हमारें सीमावर्ती कार्यक्षेत्रों में अपह्रत बालिकाओं की मुक्तता बलात धर्मांतरितों की वापसी और पुनर्वसन,आतंकवादी  हमलों के संबंध में सजगता और संबंधित लोगों को जानकारी देना ऐसे कार्य चलते रहते है। उस व्यक्ति की सुरक्षा की दृष्टी से वह प्रसिद्ध नही किया जाता है।
धार्मिक कार्यक्रम भी सेवाभावना से जोडे जा रहें है। एक सेविका का ६१ वे वर्षगाठ का कार्यक्रम था। उसने जांभवली गांव में जाकर ६१ कातकरी महिलाओं को टॉवेल /कपडा देकर नारियल से गोद भरी। १९७१ के बांगला युद्ध के बाद घायल जवान वानवडी ऑस्पिटल में थे। तब पुणे की सेविकाओं ने संक्रमणवायन उन जवानों की पतिनयों को दिये।
हमारे अष्टभुजा मंदिर जहाँ जहाँ है वहां एकत्रित धान्य, कपडे,हमेशा वनवासी पाडों पर, झुग्गी झोपहीयों में जाकर दिये जाते है। अकाल के समय पुणे के पास का राऊतवाडी गांव समिति ने गोद लिया था। आज भी वहां संपर्क  है। केवल अनाज धन ही नही शिक्षा संस्कारों का भी दान दिया गया।
नैसर्गिक तथा मानवनिर्मित आपदाओं में हर प्रकार की मदद यह तात्कालिक कार्य महत्वपूर्ण तथा उल्लेखनीय अंग है। और सस तात्कालिक कार्य के लिये एक स्थायी कोश रा. से समिति ने स्थापित किया है। आधारनिधी इस आकर्षक नाम से वह देवी अहल्याबाई स्मारक समिति, नागपुर का एक विभाग उस नाते कार्यरत है। चातुर्मास व्रत समाप्ती का दान हो किसी का कारण वयच बचा हुआ धन हो, किसी के स्मरणार्थ कुछ देना है। कुछ लोगों की वार्षिक दान की पद्धती के अनुरूप कुछ राशि, ऐसी छोटी बडीं राशियां इसमें सेविकाओंकी ओर से तथा कुछ सामान्य व्यक्तियों से सदैव एकत्रित होती रहती है। अपने धन का योग्य समय, योग्य जगह,योग्य ढंग स उपयोग होगा इस विश्वास से समाज के कई लोग नैसर्गिक आपदा के समय धन देते है। इस कारण आपदा के समय धन देते है। इस कारण आपदा आने के बाद उसमें तुरंत मदद दी जाती है। वह मदद भी आपदाग्रस्त लोगों की आवश्यकता जान कर दी जाती है। जैसे ही वातचक्र के कारण ओरिसा में मानवी जीवन उद्वस्त हो गया था। उस समयकपडों साथ तुरंत पोहा और गुड भेजा गया।जो हाथ पर लेकर भी खा सकते थे। ८-१० दिनों के बाद परिस्थिती जरासी सुधरी। पकाने के लिए कुछ साधन उपलब्ध हुए तब चावल भेजा गया। किलारी भुकंप के समय भी अत्यावश्यक चीजों का एक पॅकेट बनवाकर घर घर जाकर उन लोगों का सांत्वना दे कर वितरित कर दिए। हमारे पास यह है वही हम देंगे। चाहें तो लो यहीं भाव नही है ना ट्रक खाली करवाकर वापस जाने की जल्दी है। देश के किसी भी भाग में नदीबाढ,  भूकंप, वातचक्र, बीमारी ऐसी आपदा में मदद पहुंचायी जाती है। अभी अभी गुजरात भूकंप से नष्ट हुए मयापूर ग्राम का पुननिर्माण समिति की ओर से हुआ है। त्सुनामी ग्रस्त धीवरों को मछली पकहने की जालियां दी गयी है। महाराष्ट्र में वर्षाग्रस्त लोगों को आवश्यक वस्तुएँ दी गई है।
कुछ आपदाएँ मानवनिर्मित भी होती है। ऐस समय भी समिति अपना कर्तव्य निभाती है। उदा- १९८५ में भोपाळ वायू दुर्घटना के समय खाद्य पाकिट वितरित हुए। ४ सिलाई केंद्र शुरू किये गये। कपडा भी दिया गया। गुजरात में आरक्षण समस्या गंभीर बनीऔर कई लोग बेघर हुए। उस समय साडियां और ब्लाउज पीस दिये गयें। १९९५ में डोढा,भद्रवाह किस्तवाड आदि भाग आतंकग्रस्त हो गये। उनको सलवार कमीज और शाले वितरित हुई। उसी वर्ष नागपूर में गोवारी हत्याकांड हुआ। ६८ महिलाएंसरकारी अस्पताल में थी उनको साडियोंके साथ दवाइयाँ भी दी गयी। १९९० में जम्मू में आधार केंद्र स्थापित कर १ लाख रू. की दवाईयाँ और ४०० साडियां ,सलवार सूट, चद्दरे दी गयी। नगरों में सिलाई केद्र स्थापित कर सिलाई मशीन दिये गयें। शिक्षा के लिये उपयुक्त साहित्य भी दिया गया। ऐसे कई प्रसंग है जहाँ मदद पहुंचायी गयी है।
नैसर्गिक हो या मानवनिर्मित हो कुछ भी आपदा आ गुजरी तो उस स्थान की सेविकाएं तुरंत मदद कार्य में जुट जाती है। चाहे रोटी बनानी है,घायल लोगों की शुश्रूषा करनी है, चाहे उनको सुरक्षित स्थान तक लाना है या तात्कालिक निवास प्रदान करना है। अभी अभी जलप्रकोप हुआ तब महाराष्ट्र की एक सेविका के घर ७५ लोग ८ दिन रहें थे। स्वयं की qचता न करते हुए दिनरात सेविकाएं इस कार्य में जुट जाती है। अर्थात स्वयंप्रेरणा से। क्योंकी संस्कार ही है-समाज मेरा है और मै समाज की हूँ। अधिकारी से आदेश या आज्ञा आने तक रूकना यह भाव नही रहता है।
ऐसे समय और एक मदद अवश्यभावी हो जाती है-आपदग्रस्तों को सांत्वना देना, उनके मन में संकट के उपर उठनें की हिंमत निर्माण करना।, उनके दु:खमय जीवन में कुछ आनंद के क्षण निर्माण करना, उनके मन का निराधार भाव नष्ट करना। समिति की स्थानीय अधिकारी और सेविका कितनी भी कठिन स्थिती हो वहाँ पहुंच जाती है। लोगों के घर तथा अस्पताल जाकर लोगों की पुछताछ करती है। प्रसिद्धी विन्मुखता के कारण ना यह समाचार पत्रों आता है ना फोटो खींचे जाते है। लेकिन आपदग्रस्तों के मन में उनककी ममता एक विश्वास जरूर निर्माण करती है। आवश्यकतावश पथक भी भेजे जाते है। ये सविकाए उनकी मदद भी करती है। साथ साथ कहानियां, गीत, खेल, भजन के माध्यम से उनको उत्साह उमंग देती है। जब एक गृहिणी ऐसे मदद कार्य में सम्मिलित होती है तब स्वाभाविक ही वह अमिट संस्कार परिवार में भी निर्माण हो जाता है।
कर्तव्यपूर्ती के आनंद यह मूल्यवान धन है। पीठ पर फरा गया हाथ यह अनोखा प्रशस्तिपत्र है।
संकलित-

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