शनिवार, 12 जुलाई 2014

गुरुपूर्णिमा उत्सव


गुरुब्रह्मा गुरुविष्णु गुरुदेवो महेश्वर:
गुरु साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरुवे नम:||

अखण्डमण्डलाकारम् व्याप्तं ये चराचरम्
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरुवे नम:||

मातृवत् लालयेत् च पितृवत् मार्गदर्शिका
नमो गुरुसत्तायै श्रध्दाप्रज्ञायुतौ च य:||

अज्ञानतिमिरान्धकारस्य  ज्ञानाञ्जनसदाकया
चक्षुन्मीलितम् येन तस्मै श्रीगुरुवे नम:||

रामचरित मानस में तुलसीदास जी ने कहा है -
गुरु विनु भवनिधि तरइ न कोई
जो विरञ्चि शंकर सम होई ।

                किसी संत ने कहा-गुरु यदि पूर्णिमा का चन्द्रमा है तो शिष्य मावस का चाँद,गुरु मूल है तो शिष्यफूल ,गुरु प्राण है तो शिष्य शरीर,गुरु सामर्थ्य है तो शिष्य पात्र,गुरु स्नेह है तो शिष्य श्रध्दा,गुरु अनुशासन है तो शिष्य अनुगमन,गुरु सिध्दि है तो शिष्य साधना,गुरु प्रेरणा है तो शिष्य सक्रियता। अनेक आधातों  के होने पर भी आज सनातन धर्म अस्तित्व में है तो उसका एक बहुत बड़ा कारण भारत की गुरु शिष्य परम्परा है।
     
        भारतीय संस्कृति में गुरु शिष्यों की एक लम्वी श्रखला रही है-देवताओं के गुरु वृहस्पति,दानवों के गुरु शुक्राचार्य,राम के गुरु वसिष्ठ,विश्वामित्र,बाल्मीकि,कृष्णगुरु संदीपनि,गर्गाचार्य,दुर्वासा,पाण्डवगुरु द्रोणाचार्य,कृपाचार्य,चन्द्रगुप्त के गुरु चाणक्य,कवीर के रामानन्द,सूर के बल्लभाचार्य,स्वामी दयानन्द के गुरु विरजानन्द,शिवाजी के समर्थ गुरु रामदास,रामकृष्ण परमहंस के तोतापुरी,स्वामी विवेकानंद के गुरु रामकृष्ण परमहंस,स्वतन्त्रता से पूर्व लोगों में भारत भक्ति का संचार करने वाले जन-जन के गुरु रवीन्द्र नाथ टैगोर।       आजकापर्वअपनेगुरुकेपूजनकापर्वहैगुरुकेप्रतिसमर्पण,आत्मविश्लेषण,आत्मावलोकन,आत्मानुशासन,आत्मनिरीक्षण का पर्व है। 

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