नित्य साधना की ज्योति से,राष्ट्रदेव का ध्यान धरें
राष्ट्रधर्म की ध्वजा हाथ ले, भारत का उत्थान करें
दिग दिगन्त जयगान करें,दिग दिगन्त जयगान करें।।
धर्मतत्व की कर्मभूमि यह
ऋषि-मुनियों की पुन्यधरा
सप्त सरित के निर्मल जल से
ह्रदय हमारा शुद्ध वना
दिव्यमार्ग पर चलते-चलते
जीवन को हम सार्थ करें।\१।।
शाश्वत संस्कृति धर्म धरा पर
संकट की का ली छाया
भोगवाद के भ्रमजालों में
सत्व हमारा क्यों खोया
भारत माँ के व्रतधारी हम
स्वार्थभाव का त्याग करें।।२।।
जागे जननी जागे भारत
शक्ती का उद्घोष करें
होगी विजय सुनिश्चित सत की
ऐसा हम व्यवहार करें
सुप्त शक्ति को जागृत करने
जन मन में संचार भरें।।३।\
राष्ट्रधर्म की ध्वजा हाथ ले, भारत का उत्थान करें
दिग दिगन्त जयगान करें,दिग दिगन्त जयगान करें।।
धर्मतत्व की कर्मभूमि यह
ऋषि-मुनियों की पुन्यधरा
सप्त सरित के निर्मल जल से
ह्रदय हमारा शुद्ध वना
दिव्यमार्ग पर चलते-चलते
जीवन को हम सार्थ करें।\१।।
शाश्वत संस्कृति धर्म धरा पर
संकट की का ली छाया
भोगवाद के भ्रमजालों में
सत्व हमारा क्यों खोया
भारत माँ के व्रतधारी हम
स्वार्थभाव का त्याग करें।।२।।
जागे जननी जागे भारत
शक्ती का उद्घोष करें
होगी विजय सुनिश्चित सत की
ऐसा हम व्यवहार करें
सुप्त शक्ति को जागृत करने
जन मन में संचार भरें।।३।\
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