चाहे विबश लेखनी हो पर,
मन तो गाता ही रहता|
कितने-कितने संतापों को
कितने-कितने संतापों को
हँस-हँस कर सहता रहता|
लगा कल्पना के पंखों को,
सरल दूर नभ में उड़ना|
सरल नहीं पर पल-पल,मिट-मिट,
गीत-मालिका में गुंथना|
कहता कौन गीत में सागर-
की लहरों का कम्पन है|
गीतों में उर की लहरों का
क्या कुछ कम स्पंदन है|
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