शनिवार, 12 मई 2012

बंदेमातरम

3 नवंबर से 6 नवंबर 2009 तक देवबंद में चले देश के मुस्लिमों के एक बडे सम्मेलन में देश के गृहमंत्री चिदंबरम और प्रसिद्ध योगगुरु बाबा रामदेव को भी अतिथियों के रुप में आमंत्रित किया गया था। जहां बाबा रामदेव ने अपनी योगक्रियाओं का भी प्रदर्शन किया। इस सम्मेलन में 3 नवंबर को जो पच्चीस प्रस्ताव पारित किए गए उनमें एक प्रस्ताव वंदेमातरम्‌ को गैर-इस्लामिक करार देने का भी था। इस समय जब देश में वंदेमातरम्‌ का कोई मुद्दा ही नहीं था तब देवबंद में 10,000 से अधिक मौलवियों के समर्थन से इस तरह का फतवा जारी करना और फिर सम्मेलन के चौथे दिन आमंत्रित अतिथि बाबा रामदेव के बारे में यह जानते हुए भी कि उनके शिविरों में वंदेमातरम्‌ गाया जाता है, उनको अपमानित करनेवाला यह आदेश जारी करना कि बाबा रामदेव के शिविरों में भाग न लें क्योंकि, वहां वंदेमातरम्‌ गाया जाता है। यह साफ-साफ दर्शाता है कि यह सब जानबूझकर किया गया कृत्य है और इससे राजनीति की बू आती है। अन्यथा क्यों नहीं वे उन मुस्लिम लोगों-नेताओं को इस्लाम से खारिज करते जिन्होंने फतवे का विरोध किया, कर रहे हैं या वंदेमातरम्‌ गाते हैं। उदा. प्रसिद्ध गायक-संगीतकार ए. आर. रहमान जिन्होंने तो एक अल्बम ही वंदेमातरम्‌ पर निकाला था जिसकी रिकार्ड तोड बिक्री भी हुई थी। इस परिप्रेक्ष्य में बाबा रामदेव की यह घोषणा निश्चय ही स्वागत योग्य है कि 'मेरे जो कार्यक्रम होते हैं उनमें तिरंगा फहराया जाता है परंतु वंदेमातरम्‌ प्रतिदिन नहीं गाया जाता था। परंतु, अब वंदेमातरम्‌ का गान प्रतिदिन होगा, नियमित रुप से होगा।" इसके लिए वे निश्चय ही धन्यवाद के पात्र हैं।  

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