सोमवार, 22 जुलाई 2013

गुरु पूर्णिमा

नमस्कार,
       गुरु पूर्णिमा की हार्दिक बधाई।  गुरु शिष्य की परम्परा को दृढ़ करने बाला यह पर्व भारतबर्ष में अनादिकाल से मनाया जाता है। भगवान बिष्णु के अवतार महर्षि वेदव्यास का जन्मदिन होने के कारण  इसे व्यास पूर्णिमा भी कहते हैं। गुरुपूर्णिमा अर्थात ज्ञान के स्रोत की उपासना का दिन।और जिस स्रोत से हमें यह ज्ञान प्राप्त  हुआ,हम भारतीयों की दृष्टि में सवसे बड़ा ,आदरणीय श्रध्दा स्पद या गुरु रूप में पूजनीय हैं।
                                      महर्षि वेदव्यास ने सम्पूर्ण विश्व को अथाह ज्ञान सम्पदा प्रदान की,अत इस शुभ पर्व पर उनका परिचय जानना भी आवश्यक हो जाता है। ऋषि पराशर एवं सत्यवती के पुत्र वेदव्यास का
जन्म जम्बुव्दीप में हुआ।जन्म से श्यामवर्ण का होने के कारण  उनका नाम कृष्ण व्दैपायन पड़ा। नर  और नारायण की साधनास्थली बदरीवन में तपस्या करने के कारण  उनका एक नाम वादरायण भी है। महर्षि व्यास नेलोगों की धारणा -शक्ति को कम होता हुआ देख मूल बेद को चार भागों में बिभाजित किया और मन्त्रों एवं सूक्तोंको संहिता रूप में व्यवस्थित किया।प्रत्येक संहिता की अनेक शाखा -प्रशाखा बनीं।वेदों का सम्पादन विस्तार से करने के कारण  ही उनका नाम वेदव्यास पड़ा। आदिपुराण  को लुप्त होते देख 18पुराण  और उपपुराणों की संरचना की।18000श्लोकों बाली श्रीमद्भागवत पुराण  की रचना की। उपनिषदों के सार  को समझने के लिए ब्रम्हसुत्र बनाया। महाभारत के रूप में भारत के सांस्कृतिक विश्वकोश की रचना महर्षि वेदव्यास ने की। जिसकेबिषय में कहा  जाता है-यन्ना भारते ,तन्ना भारते , अर्थात जो महाभारत में नहीं,बह  कहीं  नहीं। इसीलिए प्रसिध्द है-व्यासोच्छिष्टं जगत्सर्वं ।
                                                           इस प्रकार विश्व को अथाह ज्ञान संपदा देने के कारण  महर्षि वेदव्यास विश्वगुरु के रूप में बंदित हुए।और इस महान ऋषि के प्रति श्रध्दा प्रकट करने के लिए उनके जन्मदिन को व्यास पूर्णिमा के रूप में हम भारतीयों ने स्वीकार किया।तभी से इस दिन को अपने गुरु के प्रति समर्पण प्रकट करने के रूप में मनाया जाने लगा।





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