शनिवार, 27 जुलाई 2013

व्यक्तिगत जीवन को राष्ट्रजीवन से जोड़ने का आदर्श उदाहर

स्रोत: News Bharati Hindi      तारीख: 7/18/2013 7:30:09 PM

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(18 जुलाई, जयन्ती पर विशेष)
आज व्यक्तिगत जीवन की उन्नति के लिए हर कोई भरसक प्रयत्न करता है। परन्तु व्यक्तिगत जीवन को राष्ट्रजीवन से अलग नहीं किया जा सकता। राष्ट्रजीवन यदि सुरक्षित न रहे तो व्यक्तिगत जीवन भी असुरक्षित रहता है। समाजहित के लिए मैंने मेरे व्यक्तिगत जीवन में क्या किया, यह प्रश्न प्रत्येक व्यक्ति द्वारा स्वयं को पूछा जाना चाहिए। इस परिवेश में व्यक्तिगत जीवन को राष्ट्रजीवन से जोड़ने का आदर्श उदाहरण है - राष्ट्र सेविका समिति की संस्थापिका वन्दनीय मौसी केलकर।
- अलका इनामदार
स्वतंत्रता के पूर्व महिलाओं में समाज के प्रति दायित्व का बोध नगण्य था। जनसंख्यात्मक दृष्टि से देश में पचास प्रतिशत महिलाएं सामाजिक दायित्वों के प्रति उदासीन थीं। परन्तु वन्दनीय मौसी (कमल दाते) इस सन्दर्भ में सबसे अलग थीं। गोरक्षण एवं भूदान आन्दोलन में उनके पिता और उनकी बुआ की सक्रिय सहभागिता कु.कमल दाते के मन को संस्कारित कर रहे थे। घर पर लोकमान्य तिलक द्वारा सम्पादित दैनिक केसरी का नियमित रूप से वाचन होता था। इस प्रकार कु.कमल बड़ी हो रही थी। विवाह की स्थिति में बिन वरदक्षिणा के विवाह करने का उन्होंने निश्चय किया और इसमें वे सफल रहीं। समाज की कुप्रथाओं के विरुद्ध उन्होंने संघर्ष किया। आगे चलकर उन्होंने राष्ट्र सेविका समिति की स्थापना की। उनका मानना था कि सड़कों पर आकर आन्दोलन के बजाय व्यक्तिगत आचरण के द्वारा होने वाला सामाजिक परिवर्तन अधिक स्थायी होता है। और यही कारण है कि वह व्यक्तिगत शीलता का आग्रह रखती थीं, चाहे वह दहेज़प्रथा का विषय हो अथवा स्त्री शिक्षा का।
समय, क्षमता और सदगुण
विवाह के पश्चात कु.कमल दाते लक्ष्मीबाई केलकर हो गई। पति के सामाजिक प्रतिष्ठा के चलते वर्धा स्थित महिला क्लब में उनको प्रवेश मिला। परन्तु वहां के वातावरण में उनका मन नहीं लगा। मिलनसार स्वभाव के कारण उन्होंने वहां के महिला सदस्यों को करीब से जाना। तब उन्हें ज्ञात हुआ कि सभी लोग सदगुणी हैं। परन्तु क्लब में आकर वे अपना समय और क्षमता व्यर्थ गवांते हैं। इसलिए, बाद में उन महिलाओं को संगठित कर उन्होंने वर्धा में कन्या शाला की स्थापना की। इस माध्यम से मौसी ने समाज को सन्देश दिया कि समाज में क्षमताशील सदगुणी महिलाओं की कमी नहीं है। सही दिशा देकर विविध प्रकल्पों में उनकी सहभागिता बढ़ायी जा सकती है। सिर्फ कार्यकर्ताओं को इस दृष्टि से अपने स्वभाव में थोड़ा परिवर्तन लाने की आवश्यकता है।  
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स्वयं दृष्टि, समाज दृष्टि
स्वतंत्रता आन्दोलन में धीरे-धीरे महिलाओं की सहभागिता बढ़ने लगी थी। देश की राष्ट्रीय एवं सामाजिक परिवेश के बदलते पृष्ठभूमि में स्त्री का स्वयं की ओर देखने की दृष्टि और समाज द्वारा स्त्री की ओर देखने की दृष्टि किस तरह की है, इसपर मौसी का चिंतन शुरू था।
अपने सभी प्रकार के पारिवारिक और व्यक्तिगत कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए, शिक्षा और संगठन के माध्यम से महिलाओं की स्थिति में सुधार लाने का उन्होंने निश्चय किया। उनके इस चिंतन का प्रगट रूप अर्थात ‘राष्ट्र सेविका समिति’ की शाखा।
सीता और द्रोपदी की तरह प्रत्येक स्त्री के हृदय में आत्मतेज जाग्रत होना चाहिए, और इसी के बल पर उसने आत्मरक्षा करना चाहिए, जिससे कि उसे अपनी पवित्रता और मान-सम्मान की हानी का दंश न झेलना पड़े। ऐसी धारणा उन्होंने शाखाओं के माध्यम से प्रत्येक सेविका के मन में दृढ़ किया।
श्रीरामकथा
भारतीयों के मन पर राज करनेवाले रामायण की कथा को पूजाघरों की सीमा से बाहर निकालकर उसे समाजाभिमुख करने की दृष्टि से कार्य किया। प्रभु श्रीरामचन्द्र की सत्यनिष्ठा, प्रामाणिकता, समाज के प्रति ममत्व, ये सभी सदगुण सामान्य व्यक्ति के लिए भी सहज आचरणीय है। ऐसा कहा जाता है कि रामायण काल में सभी सुन्दर थे। परन्तु उन सबकी सुन्दरता शारीरिक सौंदर्य से सम्बंधित नहीं था, वरन नैतिकता, स्वाभिमान, सत्यनिष्ठा आदि का तेज प्रत्येक के मुखमंडल पर प्रतिबिम्बित होता था। रामकथा के माध्यम से रामराज्य कैसा था, तत्कालीन समाज का आचरण किस प्रकार था, इसका बड़ा मार्मिक चित्रण मौसी करती थी।
समिति के कार्यों का सैद्धांतिक पक्ष समाजपर्यंत पहुंचाने के लिए मौसी ने रामकथा को आधार बनाया, और जगह-जगह रामायण पर प्रवचन के कार्यक्रमों का आयोजन किया।
समाज का नब्ज टटोलने में उन्हें विशेषज्ञता प्राप्त थी। इसी प्रकार समाज स्वस्थ्य और सुदृढ़ रहे इस दृष्टि से अनेकविध उन्होंने उपाय योजना बनाई। स्त्री जीवन विकास परिषद, विभिन्न स्थानों पर प्रकल्पों का निर्माण, विविध विषयों पर प्रदर्शनी तैयार करना, आदि इसके कुछ उदाहरण हैं।
सामान्य महिला, सेविका और कार्यकर्ता
संगठन के लिए मौसी ने सर्वप्रथम स्वयं के जीवन में परिवर्तन लाया और इसके बाद दूसरों को भी इस दृष्टि से तैयार किया। सम्पर्क के लिए अधिक समय मिले इसलिए उन्होंने साइकल सीखी। मन के विचारों को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करने के लिए उन्होंने प्रयत्नपूर्वक वक्तृता सीखी। गैर मराठी राज्यों में कार्य करने के लिए हिन्दी भाषा में निपुणता प्राप्त की। महिलाओं के उत्तम गुणों की पहचान कर उन्हें समिति के कार्य से जोड़ा। मौसी जिस प्रान्त में जाती, वहां की बोली-भाषा के आत्मीयता प्रकट करनेवाले कुछ शब्दों को आग्रहपूर्वक अवश्य सीख लेतीं।
उनके सम्पर्क में आनेवाली प्रत्येक स्त्री का सेविका, और सेविका से कार्यकर्ता के रूप में परिवर्तन सहजता से हो जाता। इस तरह वह स्वयं के और दूसरों के व्यक्तिगत जीवन को सामाजिक व राष्ट्रजीवन से जोड़ती गईं।
मिट्टी की मूर्ति जिस प्रकार पानी में घुल जाती है उसी प्रकार समिति की सेविका ने भी समाजरूपी सागर में उतर जाना चाहिए, रोम-रोम में उसे अंगीकृत करना चाहिए और उसके प्रत्येक स्पंदन वह प्रगट होना चाहिए। अर्थात व्यक्तिगत जीवन को राष्ट्रजीवन से जोड़ने की यह प्रक्रिया सतत शुरू रहनी चाहिए, ऐसी उनकी अपेक्षा थी।
वन्दनीय मौसी के जन्मदिन पर उनकी इस अपेक्षा को पूर्ण दायित्व बोध के साथ स्वीकार करना ही उनके प्रति सच्ची आदरांजलि होगी।
सह कार्यवाहिका,
राष्ट्र सेविका समिति

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