शनिवार, 26 जनवरी 2013

राष्ट्र-शक्ति

आत्मीया भगिनी एवं बन्धु,
                                 गणतन्त्र दिवस की हार्दिक बधाई।आज हम 64बाँ गणतन्त्र दिवस मनाने जा रहे हैं। यह गणतन्त्र भारत के  जन-गन-मन का राष्ट्रीय उल्लास है।भारत ने तमाम अंतर्विरोधों के होते हुए भी गणतंत्रीय व्यवस्था को आगे बढ़ाया है।राष्ट्रजीवन के सभी क्षेत्रो में हम आगे वढ़े हैं।किन्तु एक कसक भी है इस देश के प्रत्येक देशभक्त के मन में। इस राष्ट्रीय पर्व पर भारतीय संबिधान की उद्देशिका में स्थापित किये गये शब्दों का स्मरण करें-हम भारत के लोग भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न राष्ट्र वनाने के लिए द्दढ-संकल्प हैं----संबिधान पारित होने के आखिरी भाषण में सभाध्यक्ष डाँ राजेन्द्र प्रसाद जी ने कहा -हम एक गणराज्य वना रहे हैं।उन्होंने गणतंत्रीय व्यवस्था को भारतीय संस्कृति का भाग वताया।क्योंकि भारत में प्राचीन काल में भी गणराज्य थे,यह व्यवस्था 2000बर्ष पूर्व थी,उससे पहले भी थी।राजेन्द्र प्रसाद जी ने कहा -यद्यपि संबिधान हमारी अविचल निष्ठा है ,लेकिन राष्ट्रजीवन की मूल ऊर्जा है -हमारी भारतीय संस्कृति। इसीलिए संबिधान की हस्तलिखित मूल प्रति के मुखपृष्ठ पर रामकृष्ण के चित्र थे।भीतर बैदिक काल के आश्रम,राम की लंका विजय, अर्जुन को गीता सुनाते श्री कृष्ण, बुध्द, स्वामी महावीर और अशोक,विक्रमादित्य, नालंदा विश्वविद्यालय, नेताजी सुभाषचन्द्र वोस आदि की चित्रावली थीं। ये सब चित्र कहाँ गये? राष्ट्र एक है किन्तु संबिधान में भारत के दो नाम क्यों ?-इण्डिया दैट इज भारत,राष्ट्र स्तुति के दो गीत-जनगणमन और वन्देमातरम।राष्ट्रभाषा,राज्यभाषा हिंदी किन्तु अंग्रेजी अब भी राज्यभाषा?~हिन्दू आतंकबाद `नई गाली है भारत के मूल गन,जन और मन को।राजनैतिक द्लतंत्र ने गणतन्त्र को असफल वना के रख दिया है।इसलिए आज आवश्यकता है-वास्तविक इतिहास बोध की,आत्मविश्लेषण की।तभी इस गणतन्त्र दिवस की सार्थकता सिध्द होगी।  

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें