मंगलवार, 14 मई 2013

क्षमाशीलता,स्थिरिता एवं आत्मसम्मान के प्रवल उद्घोषक स्वामी विवेकानन्द


विश्व मानवता का बीजारोपण करने वाले स्वामी विवेकानंद के बारे में वर्षों पूर्व एक विदेशी पत्र ने टिप्पणी की थी कि धर्मों की संसद में सबसे महान व्यक्ति विवेकानंद हैं। इनका भाषण सुन लेने पर अनायास यह प्रश्न उठता है कि ऐसे ज्ञानी देश को सुधारने के लिए धर्म प्रचारक भेजने की बात कितनी मूर्खतापूर्ण है। 
    निःसंदेह आधुनिक युग में स्वामीजी पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने पश्चिमी मंच बनाकर पश्चिम के समक्ष पूर्वीय वेदान्त के सर्वोच्च सत्य की घोषणा की। उनके प्रखर उद्घोषक रूप से पश्चिमी समाज इतना प्रभावित हुआ कि 11 सितंबर 1893 को उन्हें बोलने के लिए दिया गया केवल 5 मिनट का समय घंटों में परिवर्तित हो गया। पश्चिमी जनमानस मंत्रमुग्ध होकर घंटों उन्हें सुनता रहा। 
    परिवर्तन के पक्षधर स्वामीजी आज भी युवा पीढ़ी के प्रकाश-स्तम्भ हैं। उन्होंने आत्मा, स्व, बल आदि सकारात्मक प्रतीकों का खुलकर समर्थन किया है। साथ ही भारतीयता, धर्म आध्यात्मिकता आदि की सटीक व्याख्या कर उसके भ्रम का निवारण किया है। उनकी कथन, विचार-शैली एवं प्रतिपादन कौशल के कारण ही वे न केवल भारत में वरन विदेशों के गणमान्यजनों के अध्ययन एवं गहन चर्चा के विषय बन गए। 
   उनके पश्चिमी दौरे से वहाँ के समाज में भारत की समस्याओं के प्रति सहानुभूति और समझ के सिंह-द्वार खुल गए तथा देश में आत्म-गौरव और विकास के नए युग का सूत्रपात हुआ। लुंजपुंज, मृतप्रायः राष्ट्रीयता में कसावट आने को हुई और देश के स्वातंत्र्य संघर्ष की सच्ची आधारशिला जमी जिसका प्रभाव पूरे देश पर होना था। 
   स्वामीजी निश्चित ही भारतवर्ष को उसके एकाकीपन से बाहर लाए। उन्होंने भारत की नाव को जिसकी तली में अनेक छिद्र हो गए थे, सुधारा और अंतरराष्ट्रीय जीवनधारा में पुनः खैने के लिए प्रतिष्ठित किया। 
    स्वामीजी आत्मविश्वास के प्रबल पक्षधर हैं। कृष्ण एवं नचिकेता के त्याग, आदर्श से अभिभूत स्वामीजी का यह दृढ़ विश्वास था कि आत्मविश्वास का आदर्श ही हमारी सबसे अधिक सहायता कर सकता है। वे मानते थे कि आत्मविश्वास का प्रचार और क्रियान्वयन, दुःख और अशुभ को कम करता है। उनके अनुसार सभी महान व्यक्तियों में आत्मविश्वास की सशक्त प्रेरणा-शक्ति जन्म से होती है। उन्होंने भी इसी ज्ञान के साथ जन्म लेकर स्वयं को स्थापित करने का प्रयास किया।

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