सोमवार, 13 मई 2013

आज पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हैं उनके विचार



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आध्यात्मिक जगत में स्वामी विवेकानंद का अद्वितीय स्थान है। भारत के इस युवा संन्यासी ने भारतीय दर्शन एवं अध्यात्म के उत्कृष्ट विचारों एवं गूढ़ रहस्यों को संसार के समक्ष रखकर संपूर्ण मानव जाति के कल्याण एवं उत्थान के लिए अभूतपूर्व कार्य किया है। 
  स्वामी विवेकानंद भारतीय एवं पाश्चात्य दर्शन के प्रकांड विद्वान थे। अपनी जादुई वक्तृत्व कला एवं ओजस्वी शैली के माध्यम से शिकागो धर्म संसद में भारतीय वेदांत के व्यावहारिक पक्ष को जिस ढंग से उन्होंने प्रस्तुत किया, उसे सुनकर सभी श्रोता विस्मय-विभोर हो गए। इसके पूर्व धर्मसभा ने धर्मकी ऐसी व्याख्या कभी सुनी ही नहीं थी और न ही ऐसी अद्भुत अभिव्यक्ति से कभी उनका साक्षात्कार हुआ था। 
  स्वामी विवेकानंद भारतीय ज्ञान के अमृत को दुनिया के लोगों में बाँटना चाहते थे। इसी उद्देश्य से अनेक कठिनाइयों एवं परेशानियों को झेलते हुए भी वे शिकागो धर्म संसद में पहुँचे थे। वे भारत की सांस्कृतिक विरासत से दुनिया को अवगत कराना चाहते थे और यह बताना चाहते थे कि जब तुम भौतिकवादी संस्कृति के दुष्प्रभावों से ऊब जाओगे और शांति की तलाश करोगे तो वह केवल भारतीय दर्शन एवं वेदांत के दिव्य विचारों से ही पा सकोगे। भारत की दिव्य संस्कृति से ही तुम्हारे जीवन-पथ आलोकित हो सकेंगे। इस उद्देश्य में स्वामीजी पूर्णतः सफल भी रहे। पूरी दुनिया ने उनकी दिव्य वाणी से निःसृत दिव्य जीवन संदेश को मंत्रमुग्ध होकर सुना। 

  आध्यात्मिक जगत में स्वामी विवेकानंद का अद्वितीय स्थान है। भारत के इस युवा संन्यासी ने भारतीय दर्शन एवं अध्यात्म के उत्कृष्ट विचारों एवं गूढ़ रहस्यों को संसार के समक्ष रखकर संपूर्ण मानव जाति के कल्याण एवं उत्थान के लिए अभूतपूर्व कार्य किया है।      
  गजब का चुंबकीय व्यक्तित्व था स्वामीजी का। श्रोता सुध-बुध खोकर उनके अमृत वचनों का पान किया करते थे। इससे उन्हें एक अद्भुत तृप्ति मिलती थी। किंतु बड़े खेद की बात है कि हम भारतवासियों ने स्वामीजी के उपदेशों एवं संदेशों की ओर समुचित ध्यान नहीं दिया। स्वामीजी देशवासियों एवं देश की दुर्दशा से अत्यंत दुःखी थे। 
  वे भारत के स्वर्णिम अतीत को फिर से लौटते हुए देखना चाहते थे। इसी उद्देश्य से वे देश की तरुणाई में प्राण फूँकने का सतत प्रयास करते रहे। उनके सपने अभी तक तो पूरे नहीं हुए, पर भविष्य में पूरे हो सकें इसलिएतरुणों एवं युवाओं को विवेकानंद साहित्य पढ़ने हेतु प्रेरित करना आज की आवश्यकता है। 
    स्वामीजी के अनुसार व्यक्ति की शक्ति पर ही समाज की शक्ति निर्भर करती है और व्यक्ति तभी शक्ति संपन्ना बनेगा जब उसका सोच, चरित्र तथा आचरण पवित्र एवं आदर्श होगा। उनका कहना था कि हमारे देश को इस समय आवश्यकता है लोहे की तरह मांसपेशियों और फौलाद की तरह मजबूत स्नायु वाले शरीर की। आज स्वामीजी के ये शब्द उससे कहीं अधिक प्रासंगिक हैं, जितने उनके जीवनकाल में थे। स्वामी विवेकानंद का आह्वान था- 'उठो, जागो और प्रमाद एवं आलस्य को त्यागकर कर्मठता का मार्ग अपनाओ। 

  अकर्मण्य बनकर भाग्य के भरोसे मत बैठो।' वे कहतेथे- 'परमात्मा ने तुम्हें समाज एवं राष्ट्र की सेवा के लिए भेजा है। अतः पूरे समर्पण भाव से सेवा करो। यही ईश्वर की सच्ची उपासना है।' स्वामीजी का संदेश था कि केवल अध्यात्म एवं वेदांत दर्शन ही मनुष्य के चरित्र एवं आचरण को परिमार्जित कर पाएँगे। आज देश में जो चारित्रिक अधःपतन और नैतिकता का गिरता स्तर है, उसे केवल स्वामी विवेकानंद की विचार-शक्ति से ही रोका जा सकता है। 
       आज देश की स्थिति अत्यंत शोचनीय एवं चिंताजनक है। देश में नैतिक मूल्यों का अकाल पड़ा हुआ है। मूल्यों की पुनर्स्थापना कर राष्ट्र का नैतिक उत्थान यदि नहीं किया गया तो स्थिति गंभीर हो जाएगी। इस गंभीर स्थिति से यदि देश को बचाना है, तो युवाओं को सुसंस्कारित एवं चरित्रवान बनाना होगा और यह कार्य केवल विवेकानंद का प्रेरणादायी साहित्य तथा उनके कहे का अनुसरण ही कर सकता है। इसलिए सभी शिक्षण संस्थाओं में स्वामीजी के साहित्य को अनिवार्य रूप से पढ़ाया जाना चाहिए।

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