बुधवार, 8 मई 2013

महिला विषयक विचार: स्वामी विवेकानन्द


एक बार न्यूयार्क में भाषण देते हुए स्वामी विवेकानंद ने कहा  था-मुझे बड़ी प्रसन्नता होगी,यदि भारतीय स्त्रियों की भी ऐसी ही बौध्दिक प्रगति हो जैसी इस देश की स्त्रियों में हुई है । परन्तु बह  उन्नति तभी अभीष्ट है जव बह उनके पवित्र जीवन और सतीत्व को अक्षुण वनाये रखते हुए हो।  मैं अमेरिका की स्त्रियों के ज्ञान और विव्दता की प्रशंसा  करता हूँ, किन्तु यहाँ नारी भक्ति के नाम पर जो कुछ चलता है उसे देखकर मेरी आत्मा ग्लानि से भर जाती है पहले पश्चिम के लोग नीचे झुकते  हैं,स्त्रियों को कुर्सी देते हैं और फिर अगले ही क्षण उनकी  प्रशंसा में कहना शुरू कर देते हैं-देवी जी तुम्हारी आखें कितनी सुंदर हैं, उन्हें यह कहने का क्या अधिकार है? एक पुरुष इतना साहस क्यों कर पाता है, और तुम स्त्रियाँ इसकी अनुमति कैसे दे सकती हो, हमारी स्त्रियाँ इतनी विदुषी नहीं, किन्तु वे अधिक पवित्र हैं।  भारत में स्त्रियों का आदर्श सीता ,सावित्री,दमयन्ती हैं इसलिए पूर्व की स्त्रियों को पश्चिमी मापदंड से मापना ठीक नहीं । पश्चिम में स्त्री पत्नी है पूर्व में बह माँ है।
                      भारतबर्ष में स्त्रीत्व मातृत्व का ही बोधक है।  मातृत्व में महानता,निस्वार्थता,कष्ट-सहिष्णुता और क्षमाशीलता का भाव निहित है भारतीय स्त्री का सारा जीवन इस बात से ओत-प्रोत है कि बह माँ है, और पूर्ण माँ बनने के लिए के लिए उसे पतिव्रता रहना आवश्यक है।  प्रत्येक स्त्री के लिए अपने पति को छोड़ अन्य कोई भी पुरुष पुत्र जैसा और प्रत्येक पुरुष के लिए अपनी पत्नी को छोड़ प्रत्येक स्त्री माता के समान होती है।
               भारत में नारी ईश्वर की साक्षात अभिव्यक्ति मानी जाती रही है- या देवि सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता----।मनु ने कहा है-यत्र नार्यस्तु पूजन्ते रमन्ते तत्र देवता। यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला:क्रिया:। अर्थात जहाँ स्त्रियों का आदर होता है वहां देवता प्रसन्न होते हैं और जहाँ उनका सम्मान   नहीं होता वहाँ सारे कार्य तथा प्रयत्न असफल हो जाते हैं जहाँ स्त्रियों का सम्मान नहीं होता वे दुखी रहती हैं उस परिवार की उस देश की उन्नति की आशा नहीं की जा सकती।वास्तव में भारत का अध्:पतन तभी से प्रारम्भ हुआ जव से स्त्रियों के सारे अधिकार छीन लिए गये । नहीं तो वेदों उपनिषदों के युग में मैत्रेयी गार्गी आदि प्रात:स्मरणीया स्त्रियाँ ब्रह्म-विचार में ऋषि तुल्य थीं । हजार वेदज्ञ ब्राह्मणों की सभा में गार्गी ने गर्व के साथ याज्ञवल्क्य को ब्रह्म ज्ञान में शास्त्रार्थ के लिए चुनोती दी थी। इन आदर्श स्त्रियों को जव उन दिनों आध्यात्म ज्ञान का अधिकार था तो फिर आज की स्त्रियों को यह अधिकार क्यों नहीं।स्वामी जी कहा करते थे कि जिस देश में जिस राष्ट्र में स्त्रियों की पूजा नहीं होती वह देश बह राष्ट्र न कभी बड़ा बना है और न कभी बड़ा वन सकेगा। भारत का जो इतना अध्:पतन हुआ है उसका प्रधान कारण  है-इन शक्ति मूर्तियों का अपमान।आज संसार के सब देशों में हमारा देश ही सबसे अधम है, शक्तिहीन है, पिछड़ा हुआ है, इसका कारण यही है कि यहाँ शक्ति का अनादर हॊता है और शक्ति के विना जगत का उध्दार नहीं है । अमेरिका के पुरुष अपनी स्त्रियों के साथ  अच्छा व्यवहार करते हैं इसीलिए वे सुखी विव्दान स्वतंत्र और उद्योगी हैं।  दूसरी ओर हम भारत के लोग स्त्री जाति को नीच, अधम ,परम हेय  तथा अपवित्र कहते हैं अत: हम लोग पशु दास उध्दम  हीन  और दरिद्र हो गये ।
          स्वामी जी कहा  करते थे कि स्त्री-पुरुष के बीच भेदभाव करना उचित नहीं है।  उनके अनुसार -आत्मा में भी क्या कहीं कोई  लिंग- भेद है?जो हम स्त्री-पुरुष के बीच भेदभाव करते हैं । वे कहते थे-स्त्री में जो दिव्यता निहित है,उसे हम कभी ठग नहीं सकते।  बह ना कभी ठगी गयी है और ना कभी ठगी जाएगी बह  सदैब अपना प्रभाव जमा लेती है तथा अचूक रूप से बेईमानी और दोंग को पहचान लेती है और सत्य के तेज आध्यात्मिकता के आलोक तथा पवित्रता की शक्ति का उसे निश्चित रूप से पता चल जाता है। यदि हम वास्तविक धर्मलाभ करना चाहते है तो स्त्री की पवित्रता अनिवार्य है। स्त्रियों की दशा सुधारे विना जगत के कल्याण की कोई सम्भावना नहीं है।  पक्षी के लिए एक पंख से उड़ना सम्भव नहीं है इसीलिए बालिकाओं के लिए गाँव-गाँव में विद्यालय खोलने की वात कहता हूँ स्त्रियाँ जव शिक्षित  होगीं तभी तो उनकी संतानों व्दारा देश का मुख उज्जल होगा और देश में विद्या ,ज्ञान ,शक्ति, भक्ति जाग उठेगी
                        निश्चित रूप से भारत में महिलाओं की समस्याएं बहुत सी और गंभीर भी हैं, किन्तु उन सभी समस्याओं का समाधान उनकी शिक्षा व्दारा किया जा सकता है। शिक्षित होने पर वे स्वयं ही बतायेंगीं कि  उनके लिए कौन से सुधार आवश्यक हैं।अत:पहले उन्हें उठाना होगा।सीता भारत की आदर्श है,भारतीय भावों की प्रतिनिधि है,मूर्तिमती भारतमाता है,भारत में जो कुछ पवित्र है विशुध्द है पावन है उस सवका बोध सीता शब्द से हो जाता है । भारत में कुलबधू को आर्शीवाद देते हैं तो कहते हैं-सीता बनो।  सब हिन्दू सीता की संतान हैं सीता का चरित्र अव्दितीय है यह चरित्र सदा के लिए सिर्फ एक ही बार चित्रित हुआ है। राम तो कदाचित कई हो गये हैं किन्तु सीता दूसरी नहीं हुई। स्त्री चरित्र के जितने भारतीय आदर्श हैं वे सब सीता के ही चरित्र से उद्घृत हुए हैं । स्वयं पवित्रता से भी पवित्र, धैर्य एवं सहनशीलता का  सर्वोच्च आदर्श, नित्य साध्वी, सदा शुध्द स्वभाव, आदर्श पत्नी सीता मनुष्य लोक की आदर्श पुण्य चरित्र सीता सदा हमारी राष्ट्रिय देवी बनी रहेंगीं।
                         स्त्री शिक्षा कैसी हो?सीता का आदर्श हमारे सामने है। प्रथम तो हिन्दू स्त्री के लिए सतीत्व का अर्थ समझना सरल है क्यंकि यह उसकी विरासत है, परम्परागत सम्पति है,भारतीय नारी के ह्रदय में यह ज्वलन्त आदर्श सर्वोपरी रहे। ताकि वे इतनी दृढ़चरित्र बनें कि जीवन की हर अवस्था में अपने सतीत्व से डिगने की अपेक्षा निडर भाव से जीवन की आहुति दे दें साथ ही महिलाओं को विज्ञानं तथा अन्य बिषय सिखाये जाएँ जिनसे न केवल उनका अपितु अन्य लोगों का  भी हित हो।
                   हमारी नारियों को आधुनिक भावों में रंगने की जो चेष्टाये हो रही है उन सब  प्रयत्नों में यदि उनको सीता चरित्र के आदर्श से भ्रष्ट करने की चेष्टा होगी तो वे सब असफल होंगीं।  भारतीय नारियों में सीता के चरण-चिन्हों का अनुसरण कराकर हमें अपनी उन्नति की चेष्टा करनी चाहिए।सीता,सावित्री और दमयन्ती के आदर्श के साथ आधुनिक युग में एक आदर्श और महिलाओं के सामने स्थित है। और बह है-श्री रामकृष्ण परमहंस की अर्धांगिनी माँ सारदा।   महाशक्ति को भारत में पुन: जगाने के लिए ही शारदा माँ  का आविर्भाव हुआ है और उन्हें केंद्र बनाकर जगत में फिर से गार्गी और मैत्रेयी जैसी नारियों का जन्म होगा।  हमारी भारतीय नारियां संसार की अन्य किन्ही भी नारियों की भांति अपनी समस्याओं को स्वयं ही सुलझाने की क्षमता रखती हैं।  इस देश की नारियों से मैं यही कहूँगा कि  भारत में विश्वास रखो और अपने भारतीय धर्म पर विश्वास करो, शक्तिवान बनो, आशावान बनो, संकोच छोडो और याद् रखो- किसी भी अन्य देश की तुलना में दूसरों को देने के लिए आपके पास उनसे कई गुना अधिक है।
                   भारत के लिए नारियों में एक सच्ची सिंहिनी की आवश्यकता है।  गौरी माँ के समान महान और तेजोमय भाव धारण करो।   स्वामी जी कहा करते थे-पांच सौ पुरुषों के द्वारा भारत को जय करने में पचास बर्ष लग सकते हैं परन्तु पांच सौ नारियों के द्वारा यह मात्र कुछ सप्ताहों में ही सम्पन्न हो सकता है

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