शुक्रवार, 30 नवंबर 2012

संगति का प्रभाव

एक धनी व्यक्ति ने रामकृष्ण परमहंस जी से निवेदन किया-भगवन,यह रुपयों की थैली मैं आपके चरणों में भेंट करना चाहता हूँ।कृपया आप इसे स्वीकार करें।इसे आप परोपकार के कामों में लगा दीजिये।`स्वामी जी ने कहा-भाई,अगर मैं तुम्हारा धन ले लूगाँ,तो मेरा मन इसमें लग जाएगा,और इससे मेरी मानसिक शांति भंग हो जाएगी।धनिक ने तर्क दिया -स्वामी जी आप तो परम हंस हैं।आपका मन तेल के बिन्दु के समान है।जो कामिनी-कंचन के महासमुद्र में रह कर भी सदैव उससे अलग रहता है।परमहंस जी गम्भीर हो गये,ओर कहा-`भाई, क्या तुम नहीं जानते कि अच्छे से अच्छा तेल भी बहुत दिनों तक पानी के सम्पर्क में रहकर अशुध्द हो जाता है।`यह सुनकर धनिक ने अपना आग्रह त्याग दिया।   

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