शनिवार, 19 मई 2012
शुक्रवार, 18 मई 2012
आज सारी दुनियाँ संस्कृत भाषा के महत्व को स्वीकार कर रही है|अमेरिका संस्कृत को नासा के तकनीकी संदेशों के लिए अपनाना चाहता है|आज संस्कृत बर्णमाला कम्प्यूटर के लिए सर्वश्रेष्ठ भाषा मानी गयी है| ऐसे समय में यह देववाणी अपनी ही धरती पर स्वयं को अपमानित महसूस कर रही है| मेरठ के चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के कुलपति बिक्रमचन्द्र गोयल ने कहा-मैं नास्तिक हूँ,मेरा संस्कृत से कोई प्रेम नहीं| संस्कृत केवल हिन्दुओं की भाषा है,और ग्लोवलाइजेशन के दौर में इसका कोई मतलब नही रह गया है|इसलिए कुलपति वनने के बाद पहला फैसला यह किया कि विश्वविद्यालय में संस्कृत के एम फिल पाठ्यक्रम को बंद करवा दिया| उनकी ही तर्ज पर अव डाँ भीमराव अम्वेड़कर विश्वविद्यालय भी नए सत्र में संस्कृत पाठ्यक्रम को बंद करने की योजना बना रहा है|
अपनी ही भूमि पर राष्ट्रीय भावना को शर्मसार करने बाला यह कृत्य अपने पैरों में कुल्हाड़ी मारने जैसा है| यदि भारत को समझना है तो संस्कृत जानो|`यह बात पाश्चात्य विद्वान भी स्वीकार करते हैं| ऐसे में इस धरती को अपनी माँ मानने बाले विद्वत सुधीजन? इस विषय पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है|
शनिवार, 12 मई 2012
बंदेमातरम
3 नवंबर से 6 नवंबर 2009 तक देवबंद में चले देश के मुस्लिमों के एक बडे सम्मेलन में देश के गृहमंत्री चिदंबरम और प्रसिद्ध योगगुरु बाबा रामदेव को भी अतिथियों के रुप में आमंत्रित किया गया था। जहां बाबा रामदेव ने अपनी योगक्रियाओं का भी प्रदर्शन किया। इस सम्मेलन में 3 नवंबर को जो पच्चीस प्रस्ताव पारित किए गए उनमें एक प्रस्ताव वंदेमातरम् को गैर-इस्लामिक करार देने का भी था। इस समय जब देश में वंदेमातरम् का कोई मुद्दा ही नहीं था तब देवबंद में 10,000 से अधिक मौलवियों के समर्थन से इस तरह का फतवा जारी करना और फिर सम्मेलन के चौथे दिन आमंत्रित अतिथि बाबा रामदेव के बारे में यह जानते हुए भी कि उनके शिविरों में वंदेमातरम् गाया जाता है, उनको अपमानित करनेवाला यह आदेश जारी करना कि बाबा रामदेव के शिविरों में भाग न लें क्योंकि, वहां वंदेमातरम् गाया जाता है। यह साफ-साफ दर्शाता है कि यह सब जानबूझकर किया गया कृत्य है और इससे राजनीति की बू आती है। अन्यथा क्यों नहीं वे उन मुस्लिम लोगों-नेताओं को इस्लाम से खारिज करते जिन्होंने फतवे का विरोध किया, कर रहे हैं या वंदेमातरम् गाते हैं। उदा. प्रसिद्ध गायक-संगीतकार ए. आर. रहमान जिन्होंने तो एक अल्बम ही वंदेमातरम् पर निकाला था जिसकी रिकार्ड तोड बिक्री भी हुई थी। इस परिप्रेक्ष्य में बाबा रामदेव की यह घोषणा निश्चय ही स्वागत योग्य है कि 'मेरे जो कार्यक्रम होते हैं उनमें तिरंगा फहराया जाता है परंतु वंदेमातरम् प्रतिदिन नहीं गाया जाता था। परंतु, अब वंदेमातरम् का गान प्रतिदिन होगा, नियमित रुप से होगा।" इसके लिए वे निश्चय ही धन्यवाद के पात्र हैं।
सोमवार, 7 मई 2012
ग़ीत
चाहे विबश लेखनी हो पर,
मन तो गाता ही रहता|
कितने-कितने संतापों को
कितने-कितने संतापों को
हँस-हँस कर सहता रहता|
लगा कल्पना के पंखों को,
सरल दूर नभ में उड़ना|
सरल नहीं पर पल-पल,मिट-मिट,
गीत-मालिका में गुंथना|
कहता कौन गीत में सागर-
की लहरों का कम्पन है|
गीतों में उर की लहरों का
क्या कुछ कम स्पंदन है|
शनिवार, 31 मार्च 2012
त्रैमासिक बौध्दिक योजना (अप्रैल,मई,जून-२०१२)
मासिक गीत-
गीत १- दीप यह जलता रहे
त्याग और तेजस्विता का दीप यह जलता रहे।
ज्ञान और संस्कार पथ पर।
सेविका चलती रहे ध्येय पथ पर बढती रहे,
सूर्य से ले अग्नि ज्वाला,सागर से गाम्भीर्य गहरा,
धरणी से ले धैर्य अनुपम,गगन सा विस्तार न्यारा,
गंग का निर्मल सलिल सा,परित नित गड़ती रहे।
भ्रष्टता के भंबरपथ में, कंटकों का जाल फैला,
स्वार्थ के मोहक पलों में,डूबता जन-मन विषेला,
राष्ट्र भक्ति कसक मन में,चरित नित गड़ती चले।२।
नित्य शाखा प्रार्थना के,स्वर गहन मुखरित रहें,
हिन्दू मन संस्कार लेकर,यज्ञमय जीवन करें,
वीरवर बृत्ति निरंतर,जय-विजय मिलती रहे।३।।
गीत २- नित्य साधना की ज्योति से
नित्य साधना की ज्योति से,राष्ट्रदेव का ध्यान धरें
राष्ट्रधर्म की ध्वजा हाथ ले, भारत का उत्थान करें
दिग दिगन्त जयगान करें,दिग दिगन्त जयगान करें।।
धर्मतत्व की कर्मभूमि यह
ऋषि-मुनियों की पुन्यधरा
सप्त सरित के निर्मल जल से
ह्रदय हमारा शुद्ध वना
दिव्यमार्ग पर चलते-चलते
जीवन को हम सार्थ करें।\१।।
शाश्वत संस्कृति धर्म धरा पर
संकट की काली छाया
भोगवाद के भ्रमजालों में
सत्व हमारा क्यों खोया
भारत माँ के व्रतधारी हम
स्वार्थभाव का त्याग करें।।२।।
जागे जननी जागे भारत
शक्ती का उद्घोष करें
होगी विजय सुनिश्चित सत की
ऐसा हम व्यवहार करें
सुप्त शक्ति को जागृत करने
जन मन में संचार भरें।।३।।
सुभाषितम-
अध्यापनं ब्रह्म यज्ञ: पितृ यज्ञस्तू तर्पणम।
होमो देवो बलिर्भूतो नृयज्ञो$तिथि पूजनम।।१।।
अर्थात-पदना पदाना यह बह्म यज्ञ,पितरों का तर्पण पितृ यज्ञ,होम करना देवयज्ञ,बलि देना भूतयज्ञ ,अतिथि पूजा मानव यज्ञ है।
प्रिय वाक्य प्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति जन्तव:।
तस्मात् तदेव वक्तव्यं वचने का दरिद्रता।।२।\
अर्थात-प्रिय वाक्य बोलने से सभी लोग संतुष्ट हो जाते हैइ इसलिए हमेशा प्रिय ही बोलना चाहिए।मधुर बचन बोलने में क्या दरिद्रता।
विद्या विवादाय धनं मदाय शक्ति परेषां परपीडनाय।
खलस्य साधोर्विपरीतमेतत ज्ञानाय दानाय च रक्षणाय।।३।।
अर्थात-दुष्टों के लिए विद्या विवाद के लिए,धन मद के लिए और शक्ति दूसरों को पीड़ा पहुचाने के लिए होती है।इसके विपरीत सज्जनों के पास विद्या ज्ञान के लिए,धन दान के लिए और शक्ति दूसरों की रक्ष। के लिए होती है।
*चर्चा के विषय
बाल शाखा के लिए-
१-शिक्ष। का समाज में प्रभाव-
#शिक्ष। समाज की प्रगति में योगदान करती है।
# शिक्ष। से अंधविश्वासों की समाप्ति होती है।
# समाज की संस्कृति का संरक्षण।
# समाज के आदर्शों की स्थापना में योगदान देना।
# सामाजिक नियंत्रण।
# सामाजिक परिवर्तन की संवाहक।
२-पर्यावरण प्रदूषण का बच्चों पर प्रभाव-
# जल प्रदूषण विषैले पदार्थ जल में मिल जाने से होता है।ऐसे जल को पीने से हैजा,डायरिया,और पीलिया आदि हो जाता है।
# वायु प्रदूषण कारखानों,बाहनों,धरों आदि से निकलने बाली गैसों के वायु में मिलने से होता है। इससे आँखें,अस्थमा,अंधापन,फेंफड़े आदि खराव हो जाते है।
# ध्वनी प्रदूषण जैसे-मशीनों,सभाओं में तेज स्वर लाउडस्पीकर ,टी.वी.के शोर से मानसिक संतुलन विगड़ सकता है।
# रासायनिक खादों और कीटनाशकों का अधिक मात्रा में प्रयोग करने से भूमि प्रदूषण होता है। इससे अन्न,फल, सब्जी,दालें प्रदूषित हो जाती है\
# प्लास्टिक पोलोथिन,परमाणु वम, परमाणु ऊर्जा प्रदूषण आदि के व्दारा रासायनिक प्रदूषण होता है।इसके प्रभाव से लम्बी बीमारी पैदा हो जाती हैजिसका प्रभाव कई पीदियों तक रहता है\
तरुणी शाखा के लिए-
१-समिति प्रार्थना का महत्त्व-
#समर्पण के लिए प्रार्थना की जाती है\
#बार-बार किसी चीज को कहने से बह सिध्द हो जाती है\
# राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण करने के लिए प्रार्थना कही जाती है\
# ईश्वर का संबल मिलते ही हमारा आत्मबल मजबूत होने लगता है\
# प्रार्थना से तात्पर्य है- जीवात्मा की परमात्मा के समक्ष निज भाव की अभिव्यक्ति।
#प्रार्थना से अंतर्मन की सोई हुई ऊर्जा सक्रिय हो जाती है\
# प्रार्थना एक प्रकार का योग है जिसका अभ्यास प्रतिदिन करना चाहिए।
२- शाखा संजीबनी-
# शाखा में हम तीन वातें सीखते हैं-संस्कार,भाव जागरण और गुण बर्धन।
# शाखा ब्दारा हम जीवन में अनुशासन सीखते हैं।
# निस्वार्थ सेवा करना भी हम शाखा से ही सीखते हैं।
# शाखा से नेतृत्व करने की क्षमता बिकसित होती है।
# समाय पालन भी शाखा से आता है\
# शारीरिक क्षमता, बौध्दिक विकास एवं ईमानदारी की भावना भी शाखा से हमें प्राप्त होती है।
महिला शाखा के लिए-
१-वर्ग की तैयारी-
# जून के महीने में ग्रीष्मकालीन वर्ग लगता है अत: पहले से अन्य कोई कार्यक्रम ना रखा जाए।
#वर्ग की तैयारी के लिए अप्रैल से वैठकें लेनी प्रारम्भ कर देनी चाहिए।
# उन बहिनों से संपर्क-जो व्यवस्था में पूरे समय सहयोग दे सके।
# स्वस्थ्य बहिनें ही वर्ग में आयें।
#अपना गणवेश निकाल कर अच्छे से धोकर एवं परस करके मई माह में ही तैयार कर लें\
# सुखद अनुभव बहिनों को सुनाये ताकि वे वर्ग में आने का मन वनाएं।
२-समिति उत्सव-
# समिति में मुख्य रूप से पांच उत्सव मनाये जाते हैं।
# नवबर्ष चैत्र माह की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मनाया जाता है।
# गुरू पूर्णिमा आषा ढ मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है\इसे व्यास पूर्णिमा भी कहते हैं।
# रक्ष। बंधन,यह श्रावण मॉस की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस दिन परम पूज्य भगवा ध्वज को भी राखी बांधते हैं।
# समिति स्थापना का दिन विजयादशमी हम समिति की बहिनें उत्सव के रूप में मनाती हैं\
# सूर्य व्दारा द क्षि णायण से उत्तरायण की और प्रस्थान अर्थात मकर संक्रांति उत्सव।
बोध कथा
१-व्यर्थ वस्तु की खोज- एक ऋषि के पास एक युवक ज्ञान प्राप्ति के लिए पहुंचा।ज्ञान प्राप्ति के बाद उसने
दक्षिणा देनी चाही।गुरू ने बह बस्तु मांगी जो बिलकुल ब्यर्थ हो। युवक ब्यर्थ बस्तु की खोज में निकल पडा \उसने माटी की और हाथ बढाया।मिट्टी चीख पड़ी- तुम मुझे ब्यर्थ समझ रहे हो। धरती का समस्त बैभव मेरे गर्भ से ही प्रकट होता है। शिष्य पत्थर की और बढा, उसने कहा- इन भवनों,नदी नालों और पर्वतों में क्या मैं नही हूँ? धूमते-धूमते उसे कूड़े का देर मिला, उसने घृणा के साथ जैसे ही गंदगी की और हाथ बढाया तो आवाज आयी- क्या मुझसे बदिया खाद धरती पर मिलेगी? ये अन्न, फल, सब्जी सब मेरे ही प्रभाब से उगते हैं। युवक सोच में पड गया कि जब मिट्टी, पत्थर, कूड़े का देर आदि सब इतने उपयोगी हैं तो व्यर्थ क्या हो सकता है? बह पुन: गुरू के पास गया और क्षमा मांगकर उनसे निवेदन किया की बह दक्षिणा में अपना अहंकार देने आया है।
२-जीवन का सत्य-एक व्यक्ति साधू के पास आकर बोला-स्वामी जी मुझे कोई ऐसा उपदेश दीजिए जो जीबन भर याद रहे।मेरै पास इतना समय नही है जो मै रोज आपके पास आऊँ और आपका उपदेश सुनूँ । साधू उसे आश्रम के निकट एक श्मशान में ले गए,बहां कुछ लोग एक सेठ का शव लेकर पहुंचे।फिर कुछ देर बाद एक दरिद्र का शव भी लाया गया। दोनों की चिताएं बनायी गयीं और फिर अग्नि को समर्पित कर दिया गया\साधू ने उस व्यक्ति को अगले दिन आने के लिए कहकर घर जाने को कहा। बह व्यक्ति अगले दिन श्मशान भूमि में पहुंचा।साधू महाराज पहले से ही बहां उपस्थित थे। उन्होंने एक मुट्ठी में सेठ की और दूसरी मुठ्ठी में दरिद्र की चिता की थोड़ी-थोड़ी राख ली,फिर उस आदमी को बह राख दिखाते हुए बोले- इन दोनों मुठ्ठियों में ही तुम्हारा उपदेश छुपा हुआ है। अमीर हो या गरीब,अंत में दोनों एक समान हो जाते हैं।उनमें कोई अंतर नहीं रह जाता। जीबन की सार्थक परिभाषा समझ बह ब्यक्ति धन्य हो गया।
प्रेरक प्रसंग
१-सौभाग्यशाली कौन-चित्रकूट में श्री राम और सीता एक वृक्ष के नीचे वैठे थे। श्रीराम ने कहा-यह वृक्ष कितना सौभाग्यशाली है। इसे एक लता ने दक रखा है, मैं भी इसी की तरह तुम्हें पाकर धन्य हो गया हूँ।सीता जी ने उत्तर दिया-वृ क्ष नहीं यह लता सौभाग्यशाली है जिसे इस वृ क्ष ने शरण दे रखी है, ठीक उसी प्रकार जैसे मुझे आपका सहारा मिला हुआ है\ तभी बहां लक्ष्मण आ पहुंचे। सीता ने उनसे प्रश्न किया-बताओ यह वृ क्ष सौभाग्यशाली है या लता? लक्ष्मण बोले-न यह वृ क्ष सौभाग्यशाली है और न यह लता , बल्कि इसकी छाया में वैठने बाले पथिक सौभाग्यशाली हैं, जैसे मैं आप दोनों की छाया में सुखी हूँ।
२-आदर्शवादी शिक्षक- प्रसिध्द क्रांतिकारी सूर्यसेन बंगाल के एक बिद्यालय में अध्यापक थे।उन दिनों बिद्यालय में परी क्ष। चल रही थी। जिस कमरे में सूर्यसेन की ड्यूटी लगी थी,उसमें प्रधानाध्यापक का पुत्र भी परी क्ष। दे रहा था। सूर्यसेन ने उसे नक़ल करते हुए पकड़ लिया और परी क्ष। से बाहर कर दिया।जब परिणाम आया तो बह बिद्यार्थी अनुत्तीर्ण था।बिद्यालय के सभी शिक्षकों को लगा कि अब सूर्यसेन की नौकरी चली जायेगी। एक दिन अचानक सूर्यसेन को प्रधानाध्यापक का बुलावा आया।प्रधानाध्यापक ने सूर्यसेन से स्नेहपूर्वक कहा- मुझे यह जानकर अच्छा लगा की मेरे बिद्यालय में आप जैसे कर्त्तव्यनिष्ठ और आदर्शबादी अध्यापक भी हैं, जिन्होंने मेरे वेटे को भी दंड देने में संकोच नहीं किया।यदि आपने उसे नक़ल करने के बावजूद भी पास कर दिया होता तो मैं आपको पदच्युत कर देता। उस दिन से प्रधानाध्यापक महोदय सूर्यसेन के प्रशंसक बन गए।
प्रश्न मंजूषा-
१-शिबाजी के गुरू का नाम?
२- समिति की व्दितीय संचालिका का नाम?
३- नवबर्ष कब मनाया जाता है?
४- सती प्रथा किसके प्रयास से बंद हुई?
५- चार धाम कौन से हैं?
६- पृथ्वी सूर्य का चक्कर कितने दिनों में पूरा करती है?
७- मनुष्य के जीवन में कितने संस्कार होते हैं?
८- मदन मोहन मालवीय जी का उपनाम क्या था।
९- १९५७ की प्रथम क्रान्ति कहाँ से प्रारम्भ हुई?
१०- भारतीय रिजर्व बैक की स्थापना कब हुई?
उत्तर-
१- समर्थ गुरू रामदास।
२- बंदनीया सरस्वती ताई आप्टे जी।
३- चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को।
४- राजा राममोहन राय।
५- बद्रीनाथ, रामेश्वरम, जगन्नाथ पुरी एवं व्दारिका पुरी।
६- ३६५ दिन में।
७- सोलह संस्कार।
८- महामना।
९- मेरठ से ।
१०- भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना १९३५ में हुई,१ जनवरी १९४९ को इसका राष्ट्रीयकरण किया गया।
गीत १- दीप यह जलता रहे
त्याग और तेजस्विता का दीप यह जलता रहे।
ज्ञान और संस्कार पथ पर।
सेविका चलती रहे ध्येय पथ पर बढती रहे,
सूर्य से ले अग्नि ज्वाला,सागर से गाम्भीर्य गहरा,
धरणी से ले धैर्य अनुपम,गगन सा विस्तार न्यारा,
गंग का निर्मल सलिल सा,परित नित गड़ती रहे।
भ्रष्टता के भंबरपथ में, कंटकों का जाल फैला,
स्वार्थ के मोहक पलों में,डूबता जन-मन विषेला,
राष्ट्र भक्ति कसक मन में,चरित नित गड़ती चले।२।
नित्य शाखा प्रार्थना के,स्वर गहन मुखरित रहें,
हिन्दू मन संस्कार लेकर,यज्ञमय जीवन करें,
वीरवर बृत्ति निरंतर,जय-विजय मिलती रहे।३।।
गीत २- नित्य साधना की ज्योति से
नित्य साधना की ज्योति से,राष्ट्रदेव का ध्यान धरें
राष्ट्रधर्म की ध्वजा हाथ ले, भारत का उत्थान करें
दिग दिगन्त जयगान करें,दिग दिगन्त जयगान करें।।
धर्मतत्व की कर्मभूमि यह
ऋषि-मुनियों की पुन्यधरा
सप्त सरित के निर्मल जल से
ह्रदय हमारा शुद्ध वना
दिव्यमार्ग पर चलते-चलते
जीवन को हम सार्थ करें।\१।।
शाश्वत संस्कृति धर्म धरा पर
संकट की काली छाया
भोगवाद के भ्रमजालों में
सत्व हमारा क्यों खोया
भारत माँ के व्रतधारी हम
स्वार्थभाव का त्याग करें।।२।।
जागे जननी जागे भारत
शक्ती का उद्घोष करें
होगी विजय सुनिश्चित सत की
ऐसा हम व्यवहार करें
सुप्त शक्ति को जागृत करने
जन मन में संचार भरें।।३।।
सुभाषितम-
अध्यापनं ब्रह्म यज्ञ: पितृ यज्ञस्तू तर्पणम।
होमो देवो बलिर्भूतो नृयज्ञो$तिथि पूजनम।।१।।
अर्थात-पदना पदाना यह बह्म यज्ञ,पितरों का तर्पण पितृ यज्ञ,होम करना देवयज्ञ,बलि देना भूतयज्ञ ,अतिथि पूजा मानव यज्ञ है।
प्रिय वाक्य प्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति जन्तव:।
तस्मात् तदेव वक्तव्यं वचने का दरिद्रता।।२।\
अर्थात-प्रिय वाक्य बोलने से सभी लोग संतुष्ट हो जाते हैइ इसलिए हमेशा प्रिय ही बोलना चाहिए।मधुर बचन बोलने में क्या दरिद्रता।
विद्या विवादाय धनं मदाय शक्ति परेषां परपीडनाय।
खलस्य साधोर्विपरीतमेतत ज्ञानाय दानाय च रक्षणाय।।३।।
अर्थात-दुष्टों के लिए विद्या विवाद के लिए,धन मद के लिए और शक्ति दूसरों को पीड़ा पहुचाने के लिए होती है।इसके विपरीत सज्जनों के पास विद्या ज्ञान के लिए,धन दान के लिए और शक्ति दूसरों की रक्ष। के लिए होती है।
*चर्चा के विषय
बाल शाखा के लिए-
१-शिक्ष। का समाज में प्रभाव-
#शिक्ष। समाज की प्रगति में योगदान करती है।
# शिक्ष। से अंधविश्वासों की समाप्ति होती है।
# समाज की संस्कृति का संरक्षण।
# समाज के आदर्शों की स्थापना में योगदान देना।
# सामाजिक नियंत्रण।
# सामाजिक परिवर्तन की संवाहक।
२-पर्यावरण प्रदूषण का बच्चों पर प्रभाव-
# जल प्रदूषण विषैले पदार्थ जल में मिल जाने से होता है।ऐसे जल को पीने से हैजा,डायरिया,और पीलिया आदि हो जाता है।
# वायु प्रदूषण कारखानों,बाहनों,धरों आदि से निकलने बाली गैसों के वायु में मिलने से होता है। इससे आँखें,अस्थमा,अंधापन,फेंफड़े आदि खराव हो जाते है।
# ध्वनी प्रदूषण जैसे-मशीनों,सभाओं में तेज स्वर लाउडस्पीकर ,टी.वी.के शोर से मानसिक संतुलन विगड़ सकता है।
# रासायनिक खादों और कीटनाशकों का अधिक मात्रा में प्रयोग करने से भूमि प्रदूषण होता है। इससे अन्न,फल, सब्जी,दालें प्रदूषित हो जाती है\
# प्लास्टिक पोलोथिन,परमाणु वम, परमाणु ऊर्जा प्रदूषण आदि के व्दारा रासायनिक प्रदूषण होता है।इसके प्रभाव से लम्बी बीमारी पैदा हो जाती हैजिसका प्रभाव कई पीदियों तक रहता है\
तरुणी शाखा के लिए-
१-समिति प्रार्थना का महत्त्व-
#समर्पण के लिए प्रार्थना की जाती है\
#बार-बार किसी चीज को कहने से बह सिध्द हो जाती है\
# राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण करने के लिए प्रार्थना कही जाती है\
# ईश्वर का संबल मिलते ही हमारा आत्मबल मजबूत होने लगता है\
# प्रार्थना से तात्पर्य है- जीवात्मा की परमात्मा के समक्ष निज भाव की अभिव्यक्ति।
#प्रार्थना से अंतर्मन की सोई हुई ऊर्जा सक्रिय हो जाती है\
# प्रार्थना एक प्रकार का योग है जिसका अभ्यास प्रतिदिन करना चाहिए।
२- शाखा संजीबनी-
# शाखा में हम तीन वातें सीखते हैं-संस्कार,भाव जागरण और गुण बर्धन।
# शाखा ब्दारा हम जीवन में अनुशासन सीखते हैं।
# निस्वार्थ सेवा करना भी हम शाखा से ही सीखते हैं।
# शाखा से नेतृत्व करने की क्षमता बिकसित होती है।
# समाय पालन भी शाखा से आता है\
# शारीरिक क्षमता, बौध्दिक विकास एवं ईमानदारी की भावना भी शाखा से हमें प्राप्त होती है।
महिला शाखा के लिए-
१-वर्ग की तैयारी-
# जून के महीने में ग्रीष्मकालीन वर्ग लगता है अत: पहले से अन्य कोई कार्यक्रम ना रखा जाए।
#वर्ग की तैयारी के लिए अप्रैल से वैठकें लेनी प्रारम्भ कर देनी चाहिए।
# उन बहिनों से संपर्क-जो व्यवस्था में पूरे समय सहयोग दे सके।
# स्वस्थ्य बहिनें ही वर्ग में आयें।
#अपना गणवेश निकाल कर अच्छे से धोकर एवं परस करके मई माह में ही तैयार कर लें\
# सुखद अनुभव बहिनों को सुनाये ताकि वे वर्ग में आने का मन वनाएं।
२-समिति उत्सव-
# समिति में मुख्य रूप से पांच उत्सव मनाये जाते हैं।
# नवबर्ष चैत्र माह की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मनाया जाता है।
# गुरू पूर्णिमा आषा ढ मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है\इसे व्यास पूर्णिमा भी कहते हैं।
# रक्ष। बंधन,यह श्रावण मॉस की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस दिन परम पूज्य भगवा ध्वज को भी राखी बांधते हैं।
# समिति स्थापना का दिन विजयादशमी हम समिति की बहिनें उत्सव के रूप में मनाती हैं\
# सूर्य व्दारा द क्षि णायण से उत्तरायण की और प्रस्थान अर्थात मकर संक्रांति उत्सव।
बोध कथा
१-व्यर्थ वस्तु की खोज- एक ऋषि के पास एक युवक ज्ञान प्राप्ति के लिए पहुंचा।ज्ञान प्राप्ति के बाद उसने
दक्षिणा देनी चाही।गुरू ने बह बस्तु मांगी जो बिलकुल ब्यर्थ हो। युवक ब्यर्थ बस्तु की खोज में निकल पडा \उसने माटी की और हाथ बढाया।मिट्टी चीख पड़ी- तुम मुझे ब्यर्थ समझ रहे हो। धरती का समस्त बैभव मेरे गर्भ से ही प्रकट होता है। शिष्य पत्थर की और बढा, उसने कहा- इन भवनों,नदी नालों और पर्वतों में क्या मैं नही हूँ? धूमते-धूमते उसे कूड़े का देर मिला, उसने घृणा के साथ जैसे ही गंदगी की और हाथ बढाया तो आवाज आयी- क्या मुझसे बदिया खाद धरती पर मिलेगी? ये अन्न, फल, सब्जी सब मेरे ही प्रभाब से उगते हैं। युवक सोच में पड गया कि जब मिट्टी, पत्थर, कूड़े का देर आदि सब इतने उपयोगी हैं तो व्यर्थ क्या हो सकता है? बह पुन: गुरू के पास गया और क्षमा मांगकर उनसे निवेदन किया की बह दक्षिणा में अपना अहंकार देने आया है।
२-जीवन का सत्य-एक व्यक्ति साधू के पास आकर बोला-स्वामी जी मुझे कोई ऐसा उपदेश दीजिए जो जीबन भर याद रहे।मेरै पास इतना समय नही है जो मै रोज आपके पास आऊँ और आपका उपदेश सुनूँ । साधू उसे आश्रम के निकट एक श्मशान में ले गए,बहां कुछ लोग एक सेठ का शव लेकर पहुंचे।फिर कुछ देर बाद एक दरिद्र का शव भी लाया गया। दोनों की चिताएं बनायी गयीं और फिर अग्नि को समर्पित कर दिया गया\साधू ने उस व्यक्ति को अगले दिन आने के लिए कहकर घर जाने को कहा। बह व्यक्ति अगले दिन श्मशान भूमि में पहुंचा।साधू महाराज पहले से ही बहां उपस्थित थे। उन्होंने एक मुट्ठी में सेठ की और दूसरी मुठ्ठी में दरिद्र की चिता की थोड़ी-थोड़ी राख ली,फिर उस आदमी को बह राख दिखाते हुए बोले- इन दोनों मुठ्ठियों में ही तुम्हारा उपदेश छुपा हुआ है। अमीर हो या गरीब,अंत में दोनों एक समान हो जाते हैं।उनमें कोई अंतर नहीं रह जाता। जीबन की सार्थक परिभाषा समझ बह ब्यक्ति धन्य हो गया।
प्रेरक प्रसंग
१-सौभाग्यशाली कौन-चित्रकूट में श्री राम और सीता एक वृक्ष के नीचे वैठे थे। श्रीराम ने कहा-यह वृक्ष कितना सौभाग्यशाली है। इसे एक लता ने दक रखा है, मैं भी इसी की तरह तुम्हें पाकर धन्य हो गया हूँ।सीता जी ने उत्तर दिया-वृ क्ष नहीं यह लता सौभाग्यशाली है जिसे इस वृ क्ष ने शरण दे रखी है, ठीक उसी प्रकार जैसे मुझे आपका सहारा मिला हुआ है\ तभी बहां लक्ष्मण आ पहुंचे। सीता ने उनसे प्रश्न किया-बताओ यह वृ क्ष सौभाग्यशाली है या लता? लक्ष्मण बोले-न यह वृ क्ष सौभाग्यशाली है और न यह लता , बल्कि इसकी छाया में वैठने बाले पथिक सौभाग्यशाली हैं, जैसे मैं आप दोनों की छाया में सुखी हूँ।
२-आदर्शवादी शिक्षक- प्रसिध्द क्रांतिकारी सूर्यसेन बंगाल के एक बिद्यालय में अध्यापक थे।उन दिनों बिद्यालय में परी क्ष। चल रही थी। जिस कमरे में सूर्यसेन की ड्यूटी लगी थी,उसमें प्रधानाध्यापक का पुत्र भी परी क्ष। दे रहा था। सूर्यसेन ने उसे नक़ल करते हुए पकड़ लिया और परी क्ष। से बाहर कर दिया।जब परिणाम आया तो बह बिद्यार्थी अनुत्तीर्ण था।बिद्यालय के सभी शिक्षकों को लगा कि अब सूर्यसेन की नौकरी चली जायेगी। एक दिन अचानक सूर्यसेन को प्रधानाध्यापक का बुलावा आया।प्रधानाध्यापक ने सूर्यसेन से स्नेहपूर्वक कहा- मुझे यह जानकर अच्छा लगा की मेरे बिद्यालय में आप जैसे कर्त्तव्यनिष्ठ और आदर्शबादी अध्यापक भी हैं, जिन्होंने मेरे वेटे को भी दंड देने में संकोच नहीं किया।यदि आपने उसे नक़ल करने के बावजूद भी पास कर दिया होता तो मैं आपको पदच्युत कर देता। उस दिन से प्रधानाध्यापक महोदय सूर्यसेन के प्रशंसक बन गए।
प्रश्न मंजूषा-
१-शिबाजी के गुरू का नाम?
२- समिति की व्दितीय संचालिका का नाम?
३- नवबर्ष कब मनाया जाता है?
४- सती प्रथा किसके प्रयास से बंद हुई?
५- चार धाम कौन से हैं?
६- पृथ्वी सूर्य का चक्कर कितने दिनों में पूरा करती है?
७- मनुष्य के जीवन में कितने संस्कार होते हैं?
८- मदन मोहन मालवीय जी का उपनाम क्या था।
९- १९५७ की प्रथम क्रान्ति कहाँ से प्रारम्भ हुई?
१०- भारतीय रिजर्व बैक की स्थापना कब हुई?
उत्तर-
१- समर्थ गुरू रामदास।
२- बंदनीया सरस्वती ताई आप्टे जी।
३- चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को।
४- राजा राममोहन राय।
५- बद्रीनाथ, रामेश्वरम, जगन्नाथ पुरी एवं व्दारिका पुरी।
६- ३६५ दिन में।
७- सोलह संस्कार।
८- महामना।
९- मेरठ से ।
१०- भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना १९३५ में हुई,१ जनवरी १९४९ को इसका राष्ट्रीयकरण किया गया।
शुक्रवार, 30 मार्च 2012
नेतृत्व कैसा हो
स्वामी विवेकानंद यह आध्यात्मिक नेतृत्व था, ऐसा हम कहते है| लेकिन उन्होंने, विज्ञान, पर्यावरण, संस्कृति, धर्म इन सब विषयों के बारे में अपने मौलिक विचार रखे| उनका चिंतन आज भी मार्गदर्शक है| उन्होंने जो विचार रखे, उनसे स्वाधीनता आंदोलन को भी दिशा मिली थी| युवकों का नेतृत्व संवेदनशील, नि:स्वार्थ, पारदर्शक, जवाबदेही और त्यागी होना चाहिए| लालबहादूर शास्त्री प्रधान मंत्री बनने के बाद उनका लड़का जिस कंपनी में नौकरी करता था, उस कंपनी ने उसे वेतनवृद्धि और पदोन्नति दी थी| शास्त्री जी को यह बात पता चली तब उन्होंने अपने लड़के से कहा, ‘‘तू उस कंपनी से त्यागपत्र दे|’’ लड़के ने कहा, ‘‘उन्होंने मुझे पदोन्नति दी और मैं त्यागपत्र कैसे दे दूँ?’’ शास्त्री जी ने कहा, ‘‘तुम त्यागपत्र नहीं दोगे तो मैं मेरे पद से त्यागपत्र देता हूँ|’’ इतनी नि:स्पृहता नेतृत्व में होनी चाहिए| नेतृत्व के मार्ग में मोहमाया के कई प्रसंग आते है| उनमें फँसना नहीं चाहिए| तत्त्वों के साथ कहीं भी समझौता नहीं करना चाहिए|
कृपया अपनी राय अवश्य लिखें। सधन्यवाद-------
कृपया अपनी राय अवश्य लिखें। सधन्यवाद-------
शुक्रवार, 9 मार्च 2012
त्रैमासिक बौद्धिक योजना (जनवरी,फरवरी,मार्च,2012 )
मासिक गीत-
गीत १-हमको अपने भारत की------
गीत २-संगठन का महामंत्र ले------
गीत ३-लिए प्रखर संकल्प ह्दय में------
सुभाषितम-
स्वदेशं पतितं कष्टं दूरस्था आलोकयार्तं ये।
नैव च प्रति कुर्वन्ति ते नरा:शत्रुनंदना।।१।।
अर्थात-जब देश में संकट हो, तब जो लोग दूर खड़े होकर केबल देखते रहते हैं, उसका प्रतिकार नहीं करते हैं,बे लोग शत्रु को आनंदित करने बाले होते हैं।
नाभिषेको न संस्कारो, सिंहस्य क्रियते भ्र्गा:।
विक्रमार्जित राजस्ब, स्वयमेव मृगेन्द्रता:।।२।।
अर्थात- सिंह का पशुओं के द्वारा राजतिलक संस्कार नहीं किया जाता, उसे बन का राज्य अपनी शक्ति के कारण अपने आप ही प्राप्त होता है।
अधमा धनं इच्छन्ति, धनं मानं च मध्यमा।
उत्तमा मानामिच्छान्ति, मानो ही महतां धनं।।३।।
अर्थात- अधम कोटि के व्यक्ति धन चाहते हैं।मध्यम धन एवं मान तथा उत्तम कोटि के व्यक्ति सम्मान को ही श्रेष्ठ धन मानते हैं।
अमृत बचन-
1-भारतबर्ष में शक्तिरूप में नारी की मूर्ति ही मान्य हुई,पुरुष की
नहीं। परिणाम आया की बह स्त्री-शक्ति नारियों में तो है ही,साथ ही पुरुषों में भी है। इसलिए हम कहते हैं-सीता राम, राधा कृष्ण।केबल राम और कृष्ण का नाम नहीं लेते।दोनों को एकत्र करके चिन्तन करते हैं।इसके फलस्वरूप एक ऐसा विचित्र चित्र देखने को मिलता है,जिसकी दुनिया के किसी चित्रकार ने कल्पना नहीं की होगी।बह है-अर्धनारी नटेश्वर का चित्र।उसी स्त्री शक्ति का उपयोग करने की,बिकसित करने की योजना बनाने से भारत के विकास को दिशा मिल जायेगी।
(विनोबा जी)
२- सुनो हिन्दुओ, यदि हिन्दू जात बचेगी तो हिन्दुस्तान बचेगा,देश का स्वर्णिम इतिहास बचेगा,सनातन धर्म बचेगा,वेद बचेंगे, रामायण, गीता भागवत बचेगी,हिन्दू तीर्थ और मंदिर तथा हमारी भाबी पीढी बचेगी।नहीं तो सव कुछ समाप्त हो जाएगा।अत: जाति-पांत, ऊँच-नीच को छोडो और देखो की क्या हो रहा है।जागो आँखें खोलो,देश और धर्मद्रोहियों को पहिचानो और पतितों की शुद्धि के लिए अपनी बाहें खोलो।
(बीर सावरकर)
३- तभी और केबल तब ही तुम हिन्दू कहलाने के अधिकारी हो, जब इस नाम को सुनते ही तुम्हारे रगों में शक्ति की विद्धुत-तरंग दौड़ जाये।तभी और केबल तभी तुम हिन्दू कहलाने के अधिकारी हो, जब इस नाम को धारण करने बाला प्रत्येक व्यक्ति,बह चाहे जिस देश में रहता हो, बह चाहे तुम्हारी भाषा बोलता हो अथवा और कोई अन्य ,प्रथम मिलन में ही तुम्हारा सगा तथा प्रिय बन जाए। तभी और केबल तब ही तुम हिन्दू कहलाने के अधिकारी हो सकोगे, जब तुम उनके लिए सब कुछ सहने और करने को तत्पर रहोगे।
(स्वामी बिबेकानन्द)
*चर्चा के बिषय *
बाल शाखा के लिए-
१.संक्रांति का अर्थ एवं मकर संक्रांति उत्सव की तैयारी- संक्रांति अर्थात सम्यक दिशा में ऎसी क्रान्ति लाना जो शुभ और उन्नति करने बाली हो।उत्सव की तैयारी निम्नलिखित रूप से करें-
* मकर संक्रांति उत्सव कार्यक्रम की सूचना बहिनों को देना।
*अध्यक्षता के लिए नाम तय करना।
*वक्ता का निश्चय।
*गीत,अवतरण कहने बाली सेविका बहिनों के नाम निश्चय करना।
*बं.मौसी जी एवं देवी अष्टभुजा का चित्र,मालायें एवं पुष्प।
*ध्बज मंडल का रेखांकन एवं शाखा स्थान स्बच्छ होना चाहिए।उत्सवों के द्वारा प्रबंधन,स्नेह से रहना,दान की वृति का विकास,सामंजस्य की भावना,कला के प्रति रुझान,आनंदमय जीवन जीने की प्रेरणा मिलती है। 2- स्वामी विवेकानंद- स्वामी जी का १५०वी जयन्ती का प्रारम्भ १५ जनवरी से हुआ है। उनके अमृत बचन के कुछ अंश इस प्रकार है-
*जव कभी तुम्हें अवसर मिले, यदि प्रभु की इच्छा से तुम उनकी किसी संतान की सेवा कर सको, तो तुम धन्य हो कि बह अवसर तुम्हें दिया गया।उसे पूजा की दृष्टि से देखो।
*सेवा को फुरसत की घड़ियों का खेल अथवा यश प्राप्ति का साधन नहीं,बल्कि दरिद्र नारायण की उपासना का मन्त्र मानो और उसके लिए जीवन की बाजी लगा दो।सेवा के पुनीत माध्यम से ही हम समाज को अपना बना सकते हैं।
३-स्बस्थ व सामंजस्यपूर्ण जीवन कौशल- जल प्रदूषण रोकने के लिए पोलीथिन का उपयोग रोकें।पर्यावरण को स्वस्थ वनाने के लिए वृक्ष।रोपण कर उनका संरक्षण करें। कम से कम पेट्रोल एवं डीजल का प्रयोग करें।जल का दुरुपयोग कैसे रोका जा सकता है? नगर मौहल्ले और गली को कैसे स्वच्छ रखा जा सकता है? मानसिक तथा बौद्धिक स्वच्छता का विकास कैसे हो? सांस्कृतिक प्रदूषण को रोकने के लिए क्या किया जा सकता है? कैसे हम स्वस्थ समाज की रचना में अपना योगदान कर सकते हैं?
तरुणी शाखा के लिए-
१-आधुनिक संचार माध्यमों द्वारा राष्ट्र भक्ति का प्रचार-
*राष्ट्र भक्ति से युक्त कविताओं,गीतों,लेखों,निबंधों का लेखन व ई-मेल के द्वारा अपने परिचितों,मित्रों,रिश्तेदारों और पड़ोसियों को उसका सम्प्रेषण।
*राष्ट्र भक्त तथा महान व्यक्तियों के बारे में सटीक जानकारी व उनके महान कृत्यों की जानकारी वेबसाईट पर डालकर सबको सम्प्रेषण।
*राष्ट्र प्रेम व भक्ति का प्रचार प्रसार करने हेतु किसी का भी फोन मिलने पर जयहिंद या जय भारत कहकर स्वागत, परस्पर चर्चा करें।
*राष्ट्रीय समस्याओं, राष्ट्रीय योजनाओं व राष्ट्रीय विकास व ज्वलंत मुद्दों पर परस्पर चर्चा कर उनके समाधान हेतु सबके सुझाव आमंत्रित करें तथा उन सुझावों पर अमल भी करें।
२-संगठित महिला शक्ति समाज परिवर्तन का आधार-
*भारत की स्थिति अत्यंत शोचनीय है।चारों ओर अराजकता,हिंसा, लूटमार,भ्रष्टाचार तथा अनैतिकता का बोलवाला है।
*आज आवश्यकता है समाज परिवर्तन की। उस समाज परिवर्तन की जो अपना हो, अपने अस्तित्व का परिचायक हो अपनी भारतीय संस्कृति का पोषक हो।
*स्त्री जागृत होने पर पूरा समाज जागृत होगा क्योंकि स्त्री कन्या,भगिनी,पत्नी और माता भी है।
*स्त्री समाज तथा परिवार की धुरी है,परिवार से ही देश भक्त तैयार होते हैं।स्त्री को सुसंस्कारित तथा शारीरिक एवं मानसिक रूप से सुद्द्द होना आवश्यक है।
३-हमारा गणवेश-हमारा गणवेश श्रद्धा का बिषय है\गणवेश समानता और समरसता का प्रतीक है।समान वेश से ऊँच-नीच,अमीर-गरीब तथा व्यक्तिगत रूचि-अरुचि का भेदभाव समाप्त हो जाता है।एक प्रकार का वेश पहनने से पहले एकरूपता फिर एकता और अंत में एकात्मता
का भाव प्रकट होता है।
महिला शाखा के लिए-
*छोटी बालिकाओं की ओर ध्यान न देने की वजह से बढ़ती हुई मृत्युदर।
*लिंग सापेक्ष गर्भपात-लड़कियों की भ्रूण ह्त्या।
*गर्भपात की बजह से स्त्रियों का स्वास्थ्य खराव होता है तथा मानसिक तनाव बढ़ता है।
इसलिए लिंग जांच एवं स्त्री भ्रूण ह्त्या रोकने के लिए सभी को सतर्कता बरतनी जरूरी है। जाग्रत डाक्टर्स,सुजान नागरिक तथा सामाजिक संस्थाओं को भ्रूण ह्त्या रोकने की कोशिश करनी चाहिए। सशक्त राष्ट्र निर्माण के लिए सुदृढ़ एवं सशक्त बालक-बालिकाओं की आवश्यकता है।
बोध कथा
१-एक मोती मेहनत का- एक गाँव में एक लड़का रहता था।बह बड़ा अत्याचारी था।एक बार गाँव में एक सिध्द पुरुष आये।रामू दौड़कर उनके पास पहूँचा, और कहने लगा की यदि उसे कोई बड़ा खजाना मिल जाए तो बह एक आलीशान कोठी बनवाएगा।इसे सुनकर सिध्द पुरुष मुस्कराए और अपने झोले में से मोतियों का सुन्दर हार निकालकर उसे देते हुए बोले- राम यह एक मंत्रयुक्त हार है।इसमें निन्यानवे कीमती मोती हैं।पर एक मोती की कमी के कारण सभी खोटे हैं। यदि तुम ठीक ऐसा ही मोती खरीद कर इसमें गूँथ दो तो ये सब मोती असली हो जायेंगे और तुम धनवान बन जाओगे।लेकिन ध्यान रहे,सौवां मोती तुम्हारी अपनी मेहनत की कमाई का होना चाहिए।सिर्फ एक मोती खरीदने से मैं धनवान बन जाऊंगा।रामू ललचाया।उसने खूव परिश्रम किया। लगन और मेहनत से बह एक व्यापारी बन गया।व्यापार की भागदौड़ में मोती की बात ही भूल गया। कुछ साल बाद बही सिध्द पुरुष रामू के पास आये।रामू ने उन्हें खुशी -खुशी सारी बातें वतायीं।सिध्द पुरुष मुस्कराए।उन्होंने कहा-रामू इस हार का सौबाँ मोती हमेशा मेहनत का मोती होता है। अच्छा, मोती का बह हार अब तू मुझे लौटा दो, किसी और आलसी के काम आयेगा।लगन और परिश्रम ही मनुष्य का सच्चा खजाना है,जिसमें से बह मनचाहे मोती निकाल सकता है।
२-पुरुषार्थ- एक राजा अपने मंत्रियों में से प्रधानमंत्री का चुनाव करना चाहता था।तीन उम्मीदवार थे।राजा ने उनकी क्षमताओं को परखने के लिए परीक्ष। ली।राजा ने तीनों को पास वुलाकर कहा- देखो बह कोठरी है।इसमें आप तीनों उम्मीदवार जायेंगे।बाहर से ताला लगा दिया जाएगा।जो व्यक्ति भीतर से ताला खोलकर बाहर आ जाएगा उसे प्रधानमंत्री बना दिया जाएगा।तीनों उम्मीदवार कमरे के अन्दर बंद कर दिए गए।पहले व्यक्ति ने सोचा कि अन्दर से बाहर का ताला खोलना असंभव है। बह अन्दर चुपचाप बैठा रहा।कोई कोशिश नहीं की। दूसरा व्यक्ति उठा, पर यह सोचकर तत्काल बैठ गया कि इस असंभव शर्त का पूरा होना मुश्किल है। तीसरे व्यक्ति ने सोचा इस तरह की वेतुकी शर्त में जरूर कोई रहस्य है।शर्त लगाने बाले भी बुध्दिमान आदमी हैं,राजा हैं।बह उठा और दरवाजे पर धक्का दिया दरवाजा खुल गया। उसमें ताला जरूर लगा था पर चाभी नहीं घुमाई गयी थी।बह बाहर निकल आया।उसे प्रधानमंत्री का पद मिल गया। जो हाथ पर हाथ रखकर बैठने की बजाय समस्या के हल के लिए पुरुषार्थ करता है बह अपने गंतब्य तक पहुँचने में सफल होता है।
प्रेरक प्रसंग
१-धब्वे का सोंदर्य-इग्लैण्ड के प्रसिद्द लेखक जान रस्किन एक समारोह में गए। उनके पास वैठी युवती के हाथ में एक सुन्दर रुमाल था। उसे वह उपहार में मिला था। अकस्मात् उस रुमाल पर कुछ गिर गया। उस पर गहरा धब्बा हो गया। वह इससे परेशान हो गयी। वगल में वैठे रस्किन ने उस लड़की से कहा-कुछ देर के लिए अपना रुमाल मुझे दे दो।युवती ने अपना रुमाल जान रस्किन को दे दिया।रस्किन वडे चित्रकार भी थे।वे रुमाल लेकर एकांत में चले गए और थोड़ी देर में उस लड़की को रुमाल लौटा दिया।लड़की रुमाल देख कर वोली-यह मेरा नही है।मेरे रुमाल पर तो धब्बा था।रस्किन ने मुस्कराते हुए कहा-बहन ,यह वही धब्बों वाला रुमाल है। तुम देखो जिस जगह धब्बा था बहाँ उसी के सहारे एक सुन्दर चित्र वना दिया है।युवती ने जव ध्यान से देखा तो अपना रुमाल और भी सुन्दर रूप में देख कर खुश हो गयी।जान रस्किन बोले- हम यदि चाहें तो अपने व्यक्तित्व के धब्बों को भी इसी तरह सुन्दरता में बदल सकते हैं।
२-अर्जुन का अहंकार- महाभारत समाप्त हो चुका था।कृष्ण रथ को युध्दभूमि से वाहर ला रहे थे।रथ में वैठा अर्जुन विजय पर फूला नहीं समा रहा था।भीष्म द्रोण कर्ण जैसे महारथियों का विनाश असाधारण बात थी। अर्जुन को लगा यह उसके बाहुवल का प्रताप है।कृष्ण उसके मन की बात ताड़ गए।युध्द्छेत्र से बाहर आने पर कृष्ण ने अर्जुन से कहा कि बह रथ से उतर जाए। परन्तु गर्वोन्मत्त अर्जुन बोला कि पहले सारथी रथ से उतरता है फिर योध्दा।कृष्ण ने बार-बार अर्जुन से अनुरोध किया परन्तु अर्जुन नहीं माना। क्रुध्द होकर कृष्ण ने अर्जुन को रथ से पहले उतरने का आदेश दिया। अर्जुन उतर गया तत्पश्चात कृष्ण जब रथ से उतरे तो रथ में आग लग गयी। देखते ही देखते रथ केवल राख का ढेर रह गया। अर्जुन ने कृष्ण से इसका कारण पूछा तो उन्होंने कहा-तुम विजयी होकर भी भीष्मादी के बाणों की छमता नहीं समझते। भीष्म द्रोण कर्ण आदि के अग्निबाणों से यह रथ पहले ही जर्जर हो चुका था।अगर पहले में रथ से उतरता तो तुम रथ के साथ ही भस्म हो जाते।और इस बिजय का कोई अर्थ ना रहता। अर्जुन का सारा अहंकार छणभर में समाप्त हो गया।
प्रश्न मंजूषा-
१-भारत का सबसे छोटा राष्ट्रीय राजमार्ग कौन सा है?
२-अंडमान निकोबार ब्दीप समूह किस उच्च न्यायालय के क्षत्राधिकार में आते हैं?
३-महात्मा गांधी भूत की तरह धूल उड़ाते हैं स्तर नहीं उठाते"किसने कहा था?
४-विश्व में सबसे ऊंचा सड़क मार्ग कौन सा है?
५-एक खतरनाक बिल जिसका नाम है "साम्प्रदायिक एवं लक्षित हिंसा रोकथाम विधेयक-२०११"।इस विधेयक को तैयार करने बाली टोली का क्या नाम है?
६-विधेयक तैयार करने बाली टोली की मुखिया का क्या नाम है?
७-भ्रष्टाचार के विरुध्द एक मजबूत जनलोकपाल कानून बनाने की माँग के लिए किस जननेता के नेतृत्व में एक राष्ट्रव्यापी अभियान शुरू हुआ है।
८-भगवान सूर्यनारायण दक्षिण।यन से उत्तरायण की ओर प्रस्थान किस दिन करते हैं?
९-दासबोध"यह ग्रन्थ किसने लिखा है?
१०-धर्म के दस लक्षण क्या हैं?
उत्तर-
१-४७-ए, लम्बाई ६कि.मी.तथा जो वेलिंगटन आइसलैंड से कोचीन बाईपास तक है।
२-कलकत्ता।
३-सुभाषचंद्र बोस।
४-लेह-मनाली मार्ग।
५-राष्ट्रीय सलाहकार परिषद्।
६-श्रीमती सोनिया गांधी।
७-माननीय अन्ना हजारे जी।
८-मकर संक्रांति से।
९-स्बामी रामतीर्थ जी ने।
१०-धृति,क्षमा,दम,अस्तेय,शौच,इन्द्रियनिग्रह,धी, बिद्या,सत्य,अक्रोध।
गीत १-हमको अपने भारत की------
गीत २-संगठन का महामंत्र ले------
गीत ३-लिए प्रखर संकल्प ह्दय में------
सुभाषितम-
स्वदेशं पतितं कष्टं दूरस्था आलोकयार्तं ये।
नैव च प्रति कुर्वन्ति ते नरा:शत्रुनंदना।।१।।
अर्थात-जब देश में संकट हो, तब जो लोग दूर खड़े होकर केबल देखते रहते हैं, उसका प्रतिकार नहीं करते हैं,बे लोग शत्रु को आनंदित करने बाले होते हैं।
नाभिषेको न संस्कारो, सिंहस्य क्रियते भ्र्गा:।
विक्रमार्जित राजस्ब, स्वयमेव मृगेन्द्रता:।।२।।
अर्थात- सिंह का पशुओं के द्वारा राजतिलक संस्कार नहीं किया जाता, उसे बन का राज्य अपनी शक्ति के कारण अपने आप ही प्राप्त होता है।
अधमा धनं इच्छन्ति, धनं मानं च मध्यमा।
उत्तमा मानामिच्छान्ति, मानो ही महतां धनं।।३।।
अर्थात- अधम कोटि के व्यक्ति धन चाहते हैं।मध्यम धन एवं मान तथा उत्तम कोटि के व्यक्ति सम्मान को ही श्रेष्ठ धन मानते हैं।
अमृत बचन-
1-भारतबर्ष में शक्तिरूप में नारी की मूर्ति ही मान्य हुई,पुरुष की
नहीं। परिणाम आया की बह स्त्री-शक्ति नारियों में तो है ही,साथ ही पुरुषों में भी है। इसलिए हम कहते हैं-सीता राम, राधा कृष्ण।केबल राम और कृष्ण का नाम नहीं लेते।दोनों को एकत्र करके चिन्तन करते हैं।इसके फलस्वरूप एक ऐसा विचित्र चित्र देखने को मिलता है,जिसकी दुनिया के किसी चित्रकार ने कल्पना नहीं की होगी।बह है-अर्धनारी नटेश्वर का चित्र।उसी स्त्री शक्ति का उपयोग करने की,बिकसित करने की योजना बनाने से भारत के विकास को दिशा मिल जायेगी।
(विनोबा जी)
२- सुनो हिन्दुओ, यदि हिन्दू जात बचेगी तो हिन्दुस्तान बचेगा,देश का स्वर्णिम इतिहास बचेगा,सनातन धर्म बचेगा,वेद बचेंगे, रामायण, गीता भागवत बचेगी,हिन्दू तीर्थ और मंदिर तथा हमारी भाबी पीढी बचेगी।नहीं तो सव कुछ समाप्त हो जाएगा।अत: जाति-पांत, ऊँच-नीच को छोडो और देखो की क्या हो रहा है।जागो आँखें खोलो,देश और धर्मद्रोहियों को पहिचानो और पतितों की शुद्धि के लिए अपनी बाहें खोलो।
(बीर सावरकर)
३- तभी और केबल तब ही तुम हिन्दू कहलाने के अधिकारी हो, जब इस नाम को सुनते ही तुम्हारे रगों में शक्ति की विद्धुत-तरंग दौड़ जाये।तभी और केबल तभी तुम हिन्दू कहलाने के अधिकारी हो, जब इस नाम को धारण करने बाला प्रत्येक व्यक्ति,बह चाहे जिस देश में रहता हो, बह चाहे तुम्हारी भाषा बोलता हो अथवा और कोई अन्य ,प्रथम मिलन में ही तुम्हारा सगा तथा प्रिय बन जाए। तभी और केबल तब ही तुम हिन्दू कहलाने के अधिकारी हो सकोगे, जब तुम उनके लिए सब कुछ सहने और करने को तत्पर रहोगे।
(स्वामी बिबेकानन्द)
*चर्चा के बिषय *
बाल शाखा के लिए-
१.संक्रांति का अर्थ एवं मकर संक्रांति उत्सव की तैयारी- संक्रांति अर्थात सम्यक दिशा में ऎसी क्रान्ति लाना जो शुभ और उन्नति करने बाली हो।उत्सव की तैयारी निम्नलिखित रूप से करें-
* मकर संक्रांति उत्सव कार्यक्रम की सूचना बहिनों को देना।
*अध्यक्षता के लिए नाम तय करना।
*वक्ता का निश्चय।
*गीत,अवतरण कहने बाली सेविका बहिनों के नाम निश्चय करना।
*बं.मौसी जी एवं देवी अष्टभुजा का चित्र,मालायें एवं पुष्प।
*ध्बज मंडल का रेखांकन एवं शाखा स्थान स्बच्छ होना चाहिए।उत्सवों के द्वारा प्रबंधन,स्नेह से रहना,दान की वृति का विकास,सामंजस्य की भावना,कला के प्रति रुझान,आनंदमय जीवन जीने की प्रेरणा मिलती है। 2- स्वामी विवेकानंद- स्वामी जी का १५०वी जयन्ती का प्रारम्भ १५ जनवरी से हुआ है। उनके अमृत बचन के कुछ अंश इस प्रकार है-
*जव कभी तुम्हें अवसर मिले, यदि प्रभु की इच्छा से तुम उनकी किसी संतान की सेवा कर सको, तो तुम धन्य हो कि बह अवसर तुम्हें दिया गया।उसे पूजा की दृष्टि से देखो।
*सेवा को फुरसत की घड़ियों का खेल अथवा यश प्राप्ति का साधन नहीं,बल्कि दरिद्र नारायण की उपासना का मन्त्र मानो और उसके लिए जीवन की बाजी लगा दो।सेवा के पुनीत माध्यम से ही हम समाज को अपना बना सकते हैं।
३-स्बस्थ व सामंजस्यपूर्ण जीवन कौशल- जल प्रदूषण रोकने के लिए पोलीथिन का उपयोग रोकें।पर्यावरण को स्वस्थ वनाने के लिए वृक्ष।रोपण कर उनका संरक्षण करें। कम से कम पेट्रोल एवं डीजल का प्रयोग करें।जल का दुरुपयोग कैसे रोका जा सकता है? नगर मौहल्ले और गली को कैसे स्वच्छ रखा जा सकता है? मानसिक तथा बौद्धिक स्वच्छता का विकास कैसे हो? सांस्कृतिक प्रदूषण को रोकने के लिए क्या किया जा सकता है? कैसे हम स्वस्थ समाज की रचना में अपना योगदान कर सकते हैं?
तरुणी शाखा के लिए-
१-आधुनिक संचार माध्यमों द्वारा राष्ट्र भक्ति का प्रचार-
*राष्ट्र भक्ति से युक्त कविताओं,गीतों,लेखों,निबंधों का लेखन व ई-मेल के द्वारा अपने परिचितों,मित्रों,रिश्तेदारों और पड़ोसियों को उसका सम्प्रेषण।
*राष्ट्र भक्त तथा महान व्यक्तियों के बारे में सटीक जानकारी व उनके महान कृत्यों की जानकारी वेबसाईट पर डालकर सबको सम्प्रेषण।
*राष्ट्र प्रेम व भक्ति का प्रचार प्रसार करने हेतु किसी का भी फोन मिलने पर जयहिंद या जय भारत कहकर स्वागत, परस्पर चर्चा करें।
*राष्ट्रीय समस्याओं, राष्ट्रीय योजनाओं व राष्ट्रीय विकास व ज्वलंत मुद्दों पर परस्पर चर्चा कर उनके समाधान हेतु सबके सुझाव आमंत्रित करें तथा उन सुझावों पर अमल भी करें।
२-संगठित महिला शक्ति समाज परिवर्तन का आधार-
*भारत की स्थिति अत्यंत शोचनीय है।चारों ओर अराजकता,हिंसा, लूटमार,भ्रष्टाचार तथा अनैतिकता का बोलवाला है।
*आज आवश्यकता है समाज परिवर्तन की। उस समाज परिवर्तन की जो अपना हो, अपने अस्तित्व का परिचायक हो अपनी भारतीय संस्कृति का पोषक हो।
*स्त्री जागृत होने पर पूरा समाज जागृत होगा क्योंकि स्त्री कन्या,भगिनी,पत्नी और माता भी है।
*स्त्री समाज तथा परिवार की धुरी है,परिवार से ही देश भक्त तैयार होते हैं।स्त्री को सुसंस्कारित तथा शारीरिक एवं मानसिक रूप से सुद्द्द होना आवश्यक है।
३-हमारा गणवेश-हमारा गणवेश श्रद्धा का बिषय है\गणवेश समानता और समरसता का प्रतीक है।समान वेश से ऊँच-नीच,अमीर-गरीब तथा व्यक्तिगत रूचि-अरुचि का भेदभाव समाप्त हो जाता है।एक प्रकार का वेश पहनने से पहले एकरूपता फिर एकता और अंत में एकात्मता
का भाव प्रकट होता है।
महिला शाखा के लिए-
१-मातृत्व बोध-भारत की महान नारियों के समान एक विशेष लछ्य हर महिला का होना चाहिए। माँ का ह्दय वात्सल्य का गहन सागर है।हमारे ऋषि मुनियों,विचारकों,साहित्यकारों को सर्वत्र मातृसत्ता का आभास हुआ है।यह पृथ्वी माँ,गौ, गीता,गायत्री,तुलसी,हरित प्रकृति,संपूर्ण नदियाँ यह सभी माँ हैं। इन सवसे हमें जीवन ममत्व के रूप में प्राप्त होता है। इस वात्सल्य के अभाव में हमारा पोषण असंभव है। माता के इन विभिन्न रूपों के संरक्षण,संवर्धन में ही भारत का अभ्युदय संभब है। भारत की प्रत्येक नारी भूमि का प्रतीक है।सृजनकर्मी आध्याशक्ति माँ दुर्गा का अंश रूप है।जन्मदात्री माँ,मातृभूमि,जगत का निर्माण करने वाली माँ दुर्गा-तीनों एक रूप हैं।महान योगी अरविंद ने कहा-भारत माँ जगन्माता है, वह विश्व की जननी के रूप में जीवंत होगी।
२-महिला स्वास्थ्य,शिक्ष। और संस्कार- शि क्ष। और संस्कार एक सिक्के के दो पहलू हैं। शिक्ष। द्वारा आत्मविश्वास आता है। माँ शिक्षित तो पूरा परिवार शिक्षित और संस्कारित होगा। संस्कार के तीन पहलू हैं-शारीरिक,मानसिक और आध्यात्मिक।शरीर को नियम, अनुशासन में ढालना,शारीरिक व्यक्तित्व का निर्माण।बच्चे को १० बर्ष की आयु तक जैसा बना देंगे,वे बैसे ही बनेंगे।बालसंस्कार केंद्र,चिकित्सीय सहायता के रूप में छोटे-छोटे प्रयोग किये जा सकते हैं।
३-भारत में लड़कियों की घटती संख्या- *देश में घटती हुई लडकियों की संख्या को देखते हुए उसमें गर्म जल लिंग परीक्ष। का बहुत बड़ा हाथ है।*छोटी बालिकाओं की ओर ध्यान न देने की वजह से बढ़ती हुई मृत्युदर।
*लिंग सापेक्ष गर्भपात-लड़कियों की भ्रूण ह्त्या।
*गर्भपात की बजह से स्त्रियों का स्वास्थ्य खराव होता है तथा मानसिक तनाव बढ़ता है।
इसलिए लिंग जांच एवं स्त्री भ्रूण ह्त्या रोकने के लिए सभी को सतर्कता बरतनी जरूरी है। जाग्रत डाक्टर्स,सुजान नागरिक तथा सामाजिक संस्थाओं को भ्रूण ह्त्या रोकने की कोशिश करनी चाहिए। सशक्त राष्ट्र निर्माण के लिए सुदृढ़ एवं सशक्त बालक-बालिकाओं की आवश्यकता है।
बोध कथा
१-एक मोती मेहनत का- एक गाँव में एक लड़का रहता था।बह बड़ा अत्याचारी था।एक बार गाँव में एक सिध्द पुरुष आये।रामू दौड़कर उनके पास पहूँचा, और कहने लगा की यदि उसे कोई बड़ा खजाना मिल जाए तो बह एक आलीशान कोठी बनवाएगा।इसे सुनकर सिध्द पुरुष मुस्कराए और अपने झोले में से मोतियों का सुन्दर हार निकालकर उसे देते हुए बोले- राम यह एक मंत्रयुक्त हार है।इसमें निन्यानवे कीमती मोती हैं।पर एक मोती की कमी के कारण सभी खोटे हैं। यदि तुम ठीक ऐसा ही मोती खरीद कर इसमें गूँथ दो तो ये सब मोती असली हो जायेंगे और तुम धनवान बन जाओगे।लेकिन ध्यान रहे,सौवां मोती तुम्हारी अपनी मेहनत की कमाई का होना चाहिए।सिर्फ एक मोती खरीदने से मैं धनवान बन जाऊंगा।रामू ललचाया।उसने खूव परिश्रम किया। लगन और मेहनत से बह एक व्यापारी बन गया।व्यापार की भागदौड़ में मोती की बात ही भूल गया। कुछ साल बाद बही सिध्द पुरुष रामू के पास आये।रामू ने उन्हें खुशी -खुशी सारी बातें वतायीं।सिध्द पुरुष मुस्कराए।उन्होंने कहा-रामू इस हार का सौबाँ मोती हमेशा मेहनत का मोती होता है। अच्छा, मोती का बह हार अब तू मुझे लौटा दो, किसी और आलसी के काम आयेगा।लगन और परिश्रम ही मनुष्य का सच्चा खजाना है,जिसमें से बह मनचाहे मोती निकाल सकता है।
२-पुरुषार्थ- एक राजा अपने मंत्रियों में से प्रधानमंत्री का चुनाव करना चाहता था।तीन उम्मीदवार थे।राजा ने उनकी क्षमताओं को परखने के लिए परीक्ष। ली।राजा ने तीनों को पास वुलाकर कहा- देखो बह कोठरी है।इसमें आप तीनों उम्मीदवार जायेंगे।बाहर से ताला लगा दिया जाएगा।जो व्यक्ति भीतर से ताला खोलकर बाहर आ जाएगा उसे प्रधानमंत्री बना दिया जाएगा।तीनों उम्मीदवार कमरे के अन्दर बंद कर दिए गए।पहले व्यक्ति ने सोचा कि अन्दर से बाहर का ताला खोलना असंभव है। बह अन्दर चुपचाप बैठा रहा।कोई कोशिश नहीं की। दूसरा व्यक्ति उठा, पर यह सोचकर तत्काल बैठ गया कि इस असंभव शर्त का पूरा होना मुश्किल है। तीसरे व्यक्ति ने सोचा इस तरह की वेतुकी शर्त में जरूर कोई रहस्य है।शर्त लगाने बाले भी बुध्दिमान आदमी हैं,राजा हैं।बह उठा और दरवाजे पर धक्का दिया दरवाजा खुल गया। उसमें ताला जरूर लगा था पर चाभी नहीं घुमाई गयी थी।बह बाहर निकल आया।उसे प्रधानमंत्री का पद मिल गया। जो हाथ पर हाथ रखकर बैठने की बजाय समस्या के हल के लिए पुरुषार्थ करता है बह अपने गंतब्य तक पहुँचने में सफल होता है।
प्रेरक प्रसंग
१-धब्वे का सोंदर्य-इग्लैण्ड के प्रसिद्द लेखक जान रस्किन एक समारोह में गए। उनके पास वैठी युवती के हाथ में एक सुन्दर रुमाल था। उसे वह उपहार में मिला था। अकस्मात् उस रुमाल पर कुछ गिर गया। उस पर गहरा धब्बा हो गया। वह इससे परेशान हो गयी। वगल में वैठे रस्किन ने उस लड़की से कहा-कुछ देर के लिए अपना रुमाल मुझे दे दो।युवती ने अपना रुमाल जान रस्किन को दे दिया।रस्किन वडे चित्रकार भी थे।वे रुमाल लेकर एकांत में चले गए और थोड़ी देर में उस लड़की को रुमाल लौटा दिया।लड़की रुमाल देख कर वोली-यह मेरा नही है।मेरे रुमाल पर तो धब्बा था।रस्किन ने मुस्कराते हुए कहा-बहन ,यह वही धब्बों वाला रुमाल है। तुम देखो जिस जगह धब्बा था बहाँ उसी के सहारे एक सुन्दर चित्र वना दिया है।युवती ने जव ध्यान से देखा तो अपना रुमाल और भी सुन्दर रूप में देख कर खुश हो गयी।जान रस्किन बोले- हम यदि चाहें तो अपने व्यक्तित्व के धब्बों को भी इसी तरह सुन्दरता में बदल सकते हैं।
२-अर्जुन का अहंकार- महाभारत समाप्त हो चुका था।कृष्ण रथ को युध्दभूमि से वाहर ला रहे थे।रथ में वैठा अर्जुन विजय पर फूला नहीं समा रहा था।भीष्म द्रोण कर्ण जैसे महारथियों का विनाश असाधारण बात थी। अर्जुन को लगा यह उसके बाहुवल का प्रताप है।कृष्ण उसके मन की बात ताड़ गए।युध्द्छेत्र से बाहर आने पर कृष्ण ने अर्जुन से कहा कि बह रथ से उतर जाए। परन्तु गर्वोन्मत्त अर्जुन बोला कि पहले सारथी रथ से उतरता है फिर योध्दा।कृष्ण ने बार-बार अर्जुन से अनुरोध किया परन्तु अर्जुन नहीं माना। क्रुध्द होकर कृष्ण ने अर्जुन को रथ से पहले उतरने का आदेश दिया। अर्जुन उतर गया तत्पश्चात कृष्ण जब रथ से उतरे तो रथ में आग लग गयी। देखते ही देखते रथ केवल राख का ढेर रह गया। अर्जुन ने कृष्ण से इसका कारण पूछा तो उन्होंने कहा-तुम विजयी होकर भी भीष्मादी के बाणों की छमता नहीं समझते। भीष्म द्रोण कर्ण आदि के अग्निबाणों से यह रथ पहले ही जर्जर हो चुका था।अगर पहले में रथ से उतरता तो तुम रथ के साथ ही भस्म हो जाते।और इस बिजय का कोई अर्थ ना रहता। अर्जुन का सारा अहंकार छणभर में समाप्त हो गया।
प्रश्न मंजूषा-
१-भारत का सबसे छोटा राष्ट्रीय राजमार्ग कौन सा है?
२-अंडमान निकोबार ब्दीप समूह किस उच्च न्यायालय के क्षत्राधिकार में आते हैं?
३-महात्मा गांधी भूत की तरह धूल उड़ाते हैं स्तर नहीं उठाते"किसने कहा था?
४-विश्व में सबसे ऊंचा सड़क मार्ग कौन सा है?
५-एक खतरनाक बिल जिसका नाम है "साम्प्रदायिक एवं लक्षित हिंसा रोकथाम विधेयक-२०११"।इस विधेयक को तैयार करने बाली टोली का क्या नाम है?
६-विधेयक तैयार करने बाली टोली की मुखिया का क्या नाम है?
७-भ्रष्टाचार के विरुध्द एक मजबूत जनलोकपाल कानून बनाने की माँग के लिए किस जननेता के नेतृत्व में एक राष्ट्रव्यापी अभियान शुरू हुआ है।
८-भगवान सूर्यनारायण दक्षिण।यन से उत्तरायण की ओर प्रस्थान किस दिन करते हैं?
९-दासबोध"यह ग्रन्थ किसने लिखा है?
१०-धर्म के दस लक्षण क्या हैं?
उत्तर-
१-४७-ए, लम्बाई ६कि.मी.तथा जो वेलिंगटन आइसलैंड से कोचीन बाईपास तक है।
२-कलकत्ता।
३-सुभाषचंद्र बोस।
४-लेह-मनाली मार्ग।
५-राष्ट्रीय सलाहकार परिषद्।
६-श्रीमती सोनिया गांधी।
७-माननीय अन्ना हजारे जी।
८-मकर संक्रांति से।
९-स्बामी रामतीर्थ जी ने।
१०-धृति,क्षमा,दम,अस्तेय,शौच,इन्द्रियनिग्रह,धी, बिद्या,सत्य,अक्रोध।
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